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थक गयी हुँ माँ |

2 जुलाई 2015

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बहुत थक गयी हुँ माँ अब सोना चाहती हुँ | तेरे गोद में सर रख कर रोना चाहती हुँ || किस्मत ने दी है बदनसीबी ही बदनसीबी | तेरी दुआओ से खुशनसीबी पाना चाहती हुँ || लोगो ने तोड़ा है विस्वास हमेशा ही हमेशा | तेरे गोद में सर रख कर रोना चाहती हुँ || कुछ नही मिला है इस जीवन धोके क सिवा | बस अब तेरे साथ ही जीना चाहती हुँ || बहुत थक गयी हुँ माँ अब सोना चाहती हुँ | तेरे गोद में सर रख कर रोना चाहती हुँ ||
वर्तिका

वर्तिका

अत्यंत मर्मस्पर्शी रचना!

27 अगस्त 2015

सपना

सपना

धन्यवाद शब्दनगरी संगठन मुझे इतनी अच्छी प्रेरणा देने के लिय |

4 जुलाई 2015

राजीव रंजन सिंह  -राजपूत-

राजीव रंजन सिंह -राजपूत-

बहुत बढ़िया रचना है जी

3 जुलाई 2015

शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

सपना जी, ये अच्छा है कि व्यथित मन के भाव कविता के माध्यम से ही सही लेकिन ह्रदय से बाहर निकलें अवश्य। सुख-दुख, मिलन-विछोह...रात और दिन की भांति जीवन में साथ-साथ चलते हैं। जो इन सबके साथ अपने कर्तव्य-मार्ग पर चलते जाते हैं, वही गंतव्य तक पहुँचते हैं। एक ऐसी रचना करें जिसमें आशा की बात हो, जीवन संघर्षों से जूझने की बात हो, और इसके बाद सकारात्मक सोच दर्शाती रचनाएँ करती ही जाइए, हमें पूर्ण विश्वास है कि सफलता मिलेगी, और जीत आपकी होगी। आपकी अग्रिम रचना की प्रतीक्षा...

3 जुलाई 2015

सपना

सपना

धन्यवाद शिखा जी

3 जुलाई 2015

डॉ. शिखा कौशिक

डॉ. शिखा कौशिक

HRDY KEE VYTHA KO SARTHAK SHABDON ME PRASTUT KIYA HAI AAPNE .AABHAR

2 जुलाई 2015

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मैंने ये महसूस किया

13 मई 2015
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लोग कहते है अच्छे लोगो क साथ कभी बुरा नही होता पर आज तक और अभी तक मेरी जिंदगी में जितने अच्छे लोगो को देखा वो हमेशा ही दुःख पते है कभी अपनों से तो कभी गैरो से पर सबसे ज्यादा दुःख तब होता है जब हम किसी पे बहुत विस्वास करते है और उसके लिए अपनों को भी फैमिली को भी दुखी करते है और वो हमे ऐसा जख्म दे जात

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बेटियाँ खुशियो की सौगात होती

22 मई 2015
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हम लड़कियों के माँ बाप कितने मजबूर होते है यूँ तो हमे लक्ष्मान कहा जाता है पर हमारे जन्म लेते मातम सा छा जाता है अगर सुन्दर है ओ फिर भी थोड़ा ठीक होता है और जो हो जाये थोड़ी श्याम वर्ण फिर तो अभिश्राप बन जाता है पढ़ाओ चाहे जितना खर्च कर लाखो फिर भी सैलरी कहाँ उनके हाथ आ पाता है सुन्द

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तुम

2 जून 2015
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वाचाल थी मेरी जिंदगी खामोश कर गए तुम गम में न थी मेरी जिंदगी गमगीन कर गए तुम

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थक गयी हुँ माँ |

2 जुलाई 2015
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बहुत थक गयी हुँ माँ अब सोना चाहती हुँ | तेरे गोद में सर रख कर रोना चाहती हुँ || किस्मत ने दी है बदनसीबी ही बदनसीबी | तेरी दुआओ से खुशनसीबी पाना चाहती हुँ || लोगो ने तोड़ा है विस्वास हमेशा ही हमेशा | तेरे गोद में सर रख कर रोना चाहती हुँ ||

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आस

24 फरवरी 2020
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पल पल गुजरती हुई साँस हो तुम हमारी, कभी न बुझ पाए वो प्यास हो तुम हमारी. कुछ नहीं मांगा तुम्हारे सिवा हमने प्रभु से, पहली ही आखिरी अरदास हो तुम हमारी. सिर्फ एक झलक से दीवाने से हो जाते हैं, कैसे बताएं हम बेहद खास हो तुम हमारी. जिंदगी में कड

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हार जीत

12 मार्च 2020
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हारते कतई नहीं इतिहास लिख जाते हैं हम, जीतना मायने नहीं रखता सीख जाते हैं हम. कहीं कुछ गलत होता हुआ देख नहीं सकते, रोकने से पहले दहाड़ सी चीख जाते हैं हम. कोई दिल से हमें माने या चाहे कोई न माने, जहां भी हो जरूरत, वहां दिख जाते हैं हम. वादों से हटते नहीं, मुश्किल में झुकत

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जीवन अ से ज्ञ तक

28 मई 2020
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हिंदी वर्णमाला का वैज्ञानिक महत्व समझने समझाने के लिए कईं महापुरुष अपना योगदान देकर हमारा कार्य सरल कर गये हैं. यहाँ इस लेख के माध्यम से अ अनपढ़ से ज्ञ ज्ञानी बनने की यात्रा को अपनी कलम से लिखने का छोटा सा प्रयास किया है. हिंदी वर्णमाला अथ

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विचलित

1 जून 2020
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हालात कैसे भी हों हमें विचलित नहीं होना है, दरिद्रता छा जाए भले ही विवेक नहीं खोना है. अपने मन को सही दिशा की ओर ले जाना है, गलत हो जाए गलती से फिर भी नहीं रोना है. भूलें तो होती रहती है,चिडिया चुगती रहती है, पश्चाताप की लौ जलानी है, पाप नह

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नश्वर

18 जून 2020
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जिसने भी तेरा ख्याल किया वो तुझ में खो गया, मदहोशी सी छाए, खुद को भूलकर तेरा हो गया. अपनी धुन में रम जाये, कब दिन कब रात जाये, काल भी हैरान परेशान, जीवन में सवेरा हो गया. न कल की फिक्र व न ही बीते कल का हो जिक्र, जब भी नश्वर शरीर में परमात्

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