मेरी अंजुमन में कोई आता नहीं है
गम की कोई सौग़ात लाता नहीं है।
टूट कर बिखरा है ज़माने की भीड़ में
अपना सर वो कही झुकाता नहीं है।
तनहा मर जायेगा ली है क़सम
अपने मेहबूब को बुलाता नहीं है।
दी है ख़ुदा ने भर के झोली मगर
रोटी किसी ग़रीब को खिलाता नहीं है।
राज़ से पर्दा हट जाएगा ''अमान ''
ज़ख़्म दिल का दिखाता नहीं है।
- संजय अमान