मुरझाई इक शाम में -
जब तुम मिले -
यादों की अंजुमन में कुछ याद आया -
कह्कशो ,गुफ़्तगू ,कुछ चुभने जैसी बाते -
यादों में लिपटी -
मखमली सी सिलवटों में परत दर परत खुलने लगी -
जैसे सुबह की पहली किरन के साथ -
महकते फूल खिलते हो -
मुरझाई शाम की बेला महक उठी -
तुम्हारे साथ बिताये समय को याद कर के ,
ख़ैर चलो तुम्हारी यादें तो है
भले ही तुम नहीं हो मेरे करीब
यादें भी बहुत है तुम्हारे करीब रहने के लिए -
यैसा लगता है अब अधूरी सी बात बनी है
चिंता नहीं आज तक अभी तक अधूरा हूँ
अधूरी बात कहने की आदत सी हो गयी है ,
शायद इसीलिए उस के बगैर मेरी जिंदगी की तस्वीर अधूरी है .
- संजय अमान