रात मेरी किताब के पन्ने बिछा के सो गई
सुबह तक रात की बेचैनी को पढता रहा।
सूरज उगा ललिमाओं का लबादा लिए
मैं अपने आप में ही चाँद स ढलता रहा।
डूबते सूरज की परछाइयों का पीछा वो करता है
समय की उम्र में मगर वो बढ़ता रहा।
सूरज फिर उगेगा ढलने के लिए
जैसे लोग मरते है जन्म लेने के लिए।
- संजय अमान