भिलाई स्टील प्लांट का अवकाश प्राप्त करमचारी हूँ , गीत ग़ज़ल छंद और अतुकांत विधाओं में रचनायें करने का प्रयास करता हूँ ।
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' मौन को भी जवाब ही समझें ' 2122 1212 112 / 22 *************************** जिन्दगी को हुबाब ही समझें संग काँटे, गुलाब ही समझें बदलियों ने चमक चुरा ली है पर उसे माहताब ही समझें शर्म आखों में है अगर बाक़ी क्यों न उसको नक़ाब ही समझें इक दिया भी जला दिखे घर में तो उसे आफ़ताब ही