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' मौन को भी जवाब ही समझें '

23 फरवरी 2015

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' मौन को भी जवाब ही समझें ' 2122 1212 112 / 22 *************************** जिन्दगी को हुबाब ही समझें संग काँटे, गुलाब ही समझें बदलियों ने चमक चुरा ली है पर उसे माहताब ही समझें शर्म आखों में है अगर बाक़ी क्यों न उसको नक़ाब ही समझें इक दिया भी जला दिखे घर में तो उसे आफ़ताब ही समझें ठीक है , टूटता बिखरता है पर उसे आप ख़्वाब ही समझें दस्ते रस से अगर है दूर कोई क्या उसे हम ख़राब ही समझें बुझ गई आग गंदे पानी से क्या पियें ? और आब ही समझें हाथ उठ्ठे हैं मेरी जानिब से मौन को भी जवाब ही समझें इक नशा है ग़ज़ल सराई भी कहने वाले , शराब ही समझें ***************************

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