गीता की पृष्ठ भूमि है महाभारत का युद्ध . क्या कृष्ण भगवान ये ज्ञान युद्ध से पहले अर्जुन को नहीं दे सकते थे या किसी और समय ? क्यों श्री कृष्ण भगवान ने युद्ध का समय चुना ? युद्ध के मैदान में अर्जुन के अंदर इच्छा जागी की युद्ध से पहले दोनों और की सेनाओ को देखने की यही उचित समय बना अर्जुन को यह ज्ञान देने का और संजय को दिव्य दृष्टि देने का अर्थ सिर्फ ये नहीं था की वो धृतराष्ट्र को युद्ध का वर्णन करे मुख्य कारण था गीता ज्ञान को जनमानस तक पहुचाने का .मनुष्य हर पल युद्ध करता है इस जीवन को बनाये रखने के लिए , यदि एक पल भी इसे छोड़ दे तो वही उसकी मृत्यु का कारण बन जाए . श्वांस लेने से भोजन करने तक पानी पीने से संभोग करने तक वह युद्ध करता है . परन्तु यह युद्ध किस से है , स्वयं से , भूख लगने पर भोजन की आवश्यकता है और उसके लिए उसे कर्म करना पड़ता है , जल से लेकर संभोग तक के लिए उसे कर्म करना पड़ता है . इन सब की प्राप्ति के बहुत से मार्ग है , उचित और अनुचित . मनुष्य को स्वंय यह निर्णय लेना होता है की वो उचित मार्ग को चुने या अनुचित मार्ग को . और यही से युद्ध आरम्भ हो जाता है , स्वयं के भीतर उचित या अनुचित मार्ग को चुनने के लिए . यही कारण था की श्री कृष्ण चाहते थे अर्जुन को दोनों सेनाओ के के मध्य ले जाये और इसके लिए अर्जुन के मन में इच्छा पैदा कर दी . यदि अर्जुन दोनों सेनाओ के मध्य जाकर नहीं देखता तो युद्ध जल्दी आरम्भ हो जाता अर्जुन के मन में कोई विषाद ना होता. अर्जुन के मन में यह विषाद पैदा करने के लिए ही उसके मन में इच्छा पैदा की की वह दोनों ओर की सेनाओ का निरिक्षण करे . अर्जुन योद्धा था , छत्रिय था जिसका धर्म ही युद्ध था , और ना जाने कितने युद्ध कर चूका था ,फिर भी दोनों सेनाओ को देखने के बाद उसके मन में विषाद पैदा हो गया , और युद्ध ना करने का निर्णय लिया . क्यों ? क्योकि यह युद्ध अर्जुन का किसी दुश्मन से नहीं बल्कि अपने प्रिय लोगो से था . अपने गुरु , पितामह , कुल गुरु , भाई और अन्य सगेसम्बन्धी . दुर्योधन ने कितने ही छलकपट किये हो परन्तु था तो भाई . यही उसके मन का विषाद बन गया और युद्ध न करने का निर्णय लिया . और यही श्री कृष्ण को अवसर मिला उसे गीता का ज्ञान देने का . प्रथम अध्याय यही भूमिका बनाने के लिए महत्व पूर्ण है .इसीलिए कुरुछेत्र के मैदान को धर्म छेत्र कहा क्योकि यही यह ज्ञान दिया गया की मनुष्य का धर्म क्या है , उसे हर पल युद्ध करना होता है मार्ग चुनने के लिए उचित और अनुचित . उसका निर्णय कोई और नहीं स्वयं को करना पड़ता है . दोनों सेनाये दिखाकर श्रीकृष्ण चाहते थे अर्जुन स्वयं निर्णय ले क्या उचित है और क्या अनुचित .प्रेम , लगाव ये सब मनुष्य को अनुचित निर्णय् लेने के लिए बाध्य कर देती है और तब गीता का ज्ञान उसका छेदन कर सही निर्णय लेने को प्रेरित करता है .और अर्जुन महान होते हुए भी प्रेम और लगाव में गलत निर्णय ले बैठा .