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जब हम गुनगुना

9 मई 2016

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विशाल शुक्ल की अन्य किताबें

रवि कुमार

रवि कुमार

बहुत ही बढ़िया भाई . बोलने का अलग अंदाज़ है अपका

10 मई 2016

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पत्नी रानी

4 मई 2016
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पत्नी रानी पत्नी रानी दिनभर करती हैं मनमानीमेरी पत्नी पत्नी रानी सुबह जगे से शाम ढले तकशाम से लेकर सूर्य उगे तककिचकिच करतीं दिलवरजानीपत्नी रानी पत्नी रानी...रानी समय से सोना समय से जगनासमय से खाना समय से पीनासबपर चलातीं हुकुम रानीपत्नी रानी पत्नी रानी....भूख लगे चाहे प्यास लगेमन में जब अहसास जगेनहीं

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होली मा बुढ़ऊ बौराय गयव रे

6 मई 2016
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अमवा पर बौर खुब आय गयव रेहोली मा बुढ़ऊ बौराय गयव रेरंग लिहिन मूंछ खिजाब लगाय केधोती से पैंट मा आय गयव रेछोड़ दिहिन लाठी देह सिधाय केकमरियव मा लचक आय गयव रेसांझ सबेरे कन घुसेड़ू सजाय केफिल्मी धुन पर रिझाय गयव रेचल दिहिन ससुरे झोरा उठाय केरस्ता मा चक्कर खाय गयव रेगोरी का मेकअप नजर लाय केबूढ़ा कय गठरी भुला

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मां तुझे सलाम

7 मई 2016
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मां ने बड़े जतन से गांव से भेजा हैडिब्बे में घी का कुछ कतरा अब भी हैजानता हूं वह मेरी मां है, सब जानती हैयाद मेरे दूध न पीने का नखरा अब भी हैसाथ भेज दी हैं भुनी हुई मूंगफलियां भीमेरी सेहत पर लगता उसे खतरा अब भी है

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आसाइशें बहुत हैं मगर यहां मां नहीं है...

8 मई 2016
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ख्वाहिशें बहुत हैं मगर आसमां नहीं हैआसाइशें बहुत हैं मगर यहां मां नहीं हैचांद-सितारों तुम क्या जानो क्या कमी हैरोशनी आये जिससे वह रोशनदां नहीं हैगुल खिलते हैं यहां हर घर के गमले मेंअम्मां का खिलाया वह गुलिस्तां नहीं हैपतंगा कितना ही तड़पे जान देने कोजल जाए हवा के झोंके से शमां नहीं हैक्या सुनाऊंगा म

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जब हम गुनगुना

9 मई 2016
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यहां पर भी हम

11 मई 2016
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https://www.facebook.com/Vishal-Shukla-Akkhad-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2-%E0

17 मई 2016
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https://www.facebook.com/Vishal-Shukla-Akkhad-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2-%E0%A4%85%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%96%E0%A4%A1%E0%A4%BC-153011831527487/

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ऐसे कुछ हालात करें

24 मई 2016
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आओ हम तुम कुछ बात करेंसाझा दिल के जज्बात करेंफिर लौट आएं बिसरे दिनमिलकर ऐसे कुछ हालात करें

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जा पोटली झाड़, पुरस्कार छांट और मीडिया को बुला...

11 जून 2016
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(26 अक्तूबर 2015 को हिन्दुस्तान कानपुर के जमूरे जी कहिन कॉलम में प्रकाशित)का रे जमूरे! तनिक पोटलिया तो खंगाल...।कौन सी हुजूर? प... वाली की द... वाली?का बताएं हम तुहंय...बकलोल कय बकलोल रहिगेव। द अक्षर हम सीखेन हैं का...? प वाली...और उहव सरकारी प वाली..., जेम्मा सब सरकारी प हों। देख कउनव प है जौने का

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अथश्री चहचहाहट कथा...यह कथा है इनकी, उनकी, सबकी...

22 जून 2016
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(06 जुलाई 2015 को हिन्दुस्तान कानपुर में प्रकाशित)चीं चीं...चीं चींचीं चीं...चीं चींअरे हुजूर!यह क्या हाल बना रखा है, चहचहा क्यों रहे हैं? अच्छे-खासे इनसान हैं, चिडि़या बने क्यों घूम रहे हैं?उफ जमूरे! रह गए जमूरे के जमूरे ही।इस चहचहाहट में बड़े-बड़े गुण। निर्गुण, सगुण, दुर्गुण...सारे गुण इसमें समाए

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मां के कदमों में गिरकर फिर बचपन सा खिल जाऊंगा

23 जून 2016
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आशा और निराशा में पल-पल डूबूंगा उतराऊंगादुख की गंगा में बहकर सुखसागर में मिल जाऊंगाकहते हैं जो कहते रहें मैं उनकी बातें क्यों मानूंमां के कदमों में गिरकर फिर बचपन सा खिल जाऊंगा

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जुल्फ घनेरी छांव तले बादल बन उड़ जाऊंगा

25 जून 2016
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जुल्फ घनेरी छांव तले बादल बन उड़ जाऊंगाकैसे सोच लिया तुमने मन गीत तुम्हारे गाऊंगामां के आंचल में सिसका हूं मां के सीने पर सोया हूंमैं गीत उसी के गाता हूं, मैं गीत उसी के गाऊंगा

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शब्दों की सीमा में तुझको बांध कहां पाऊंगा

1 जुलाई 2016
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शब्दों की सीमा में तुझको बांध कहां पाऊंगा कविता में तुझ जैसा अभिमान कहां से लाऊंगा ममता की कीमत देने को कैसे कह डाला तुमने जननी जैसा कोई न सम्मान तुम्हें दे पाऊंगा 

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वह बेटी है

3 जुलाई 2016
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मैं हंसता हूंवह हंसती हैमैं रोता हूंवह रोती हैमैं पिता हूंवह बेटी हैमैं सेंकता हूंवह सिंकती हैमैं खाता हूंवह घुलती हैमैं याचक हूंवह रोटी हैमैं सजता हूंवह सजती हैमैं हर्षित हूंवह मुदित हैमैं नंगा हूंवह धोती है

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वो कमजर्फ

15 जुलाई 2016
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वो कमजर्फ निगहबां को भूल जाते हैंकमबख्त कैसे बागबां को भूल जाते हैंबचकर रहना इन बेमौसमी बादलों सेखुदगर्जी में आसमां को भूल जाते हैं

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हां मेरे भी दो चेहरे हैं

5 अगस्त 2016
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हां मेरे भी दो चेहरे हैंदुनिया से हंस हंस करबातें करनाबिना वजह खुद कोहाजिरजवाब दिखानापर असली चेहरे सेकेवल तुम वाकिफ होहै न...क्योंकि तुम्हारे हीआंचल में तो ढलके हैंदुनिया के दिए आंसूतुम्हारे ही कदमों मेंझुका है गलती से लबरेज यह चेहरातुम पर ही तोउतरा है जमाने भर का गुस्साऔर यह दुनियाकहती हैमैं तुम्हा

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चलो कुछ ऐसा कमाया जाये

13 अगस्त 2016
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चलो कुछ ऐसा कमाया जायेरिश्तों का बोझ ढहाया जायेआईने पर जम गई है धूल जोमिलकर कुछ यूं हटाया जाये#विशाल शुक्ल अक्खड़

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इशारों ही इशारों

14 अगस्त 2016
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अपने गिरेबां में झांकऐ मेरे रहगुजरसाथ चलना है तो चलऐ मेरे हमसफरचाल चलता ही जा तूरात-ओ-दिन दोपहरजीत इंसां की होगीयाद रख ले मगरइल्म तुझको भी हैहै तुझे यह खबरएक झटके में होगाजहां से बदरशांति दूत हैं तोहैं हम जहरबचके रहना जरान रह बेखबर

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बारिश का दर्द

28 जून 2022
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सुना है गांव में बादल आये हैं मां के कदमों में झूमकर बरसे हैं कुछ ग़म की बूंदों ने शिकायत की और ढेर सारे खुशी के पानी झरे हैं मां से बोले हैं बादल अपने शहर वाले बेटे को जरा समझाओ इतना पढ़ा लिख

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मेरा पहला वैलेंटाइंस डे

18 अगस्त 2022
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वो भी क्या दिन थे। आज सोचो तो हंसी आती है पर थे वे बड़े सुहाने दिन। 1996-97 की बात है। गांव से निकलकर नया-नया कस्बे में पढ़ने पहुंचा था। केंद्रीय विद्यालय में कक्षा 11 में एडमिशन हुआ था। दीन-दुनिया से

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साष्टांग प्रणाम और गोरे-गोरे पैर

31 अगस्त 2022
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कड़ी कभी मंदिर गए हो…। ये क्या सवाल हुआ… मंदिर गए हो क्या…अरे गए ही होगे..। खैर … बात मंदिर जाने न जाने की नहीं है। नास्तिक-आस्तिक की भी नहीं है। बात है साष्टांग दंडवत की…। नहीं समझे…। अरे वही..जिसमें

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