वो भी क्या दिन थे। आज सोचो तो हंसी आती है पर थे वे बड़े सुहाने दिन। 1996-97 की बात है। गांव से निकलकर नया-नया कस्बे में पढ़ने पहुंचा था। केंद्रीय विद्यालय में कक्षा 11 में एडमिशन हुआ था। दीन-दुनिया से बेखबर। मनोरंजन के नाम पर रेडियो, टेपरिकॉर्डर और दूरदर्शन ही थे। गांव तक केबिल टीवी की पहुंच हुई नहीं थी और बाजारवाद से हम काफी दूर थे। ऐसे में वैलेंटाइंस डे जैसे किसी आयोजन की भनक तक नहीं थी। पढ़ाई-लिखाई में औसत ही माना जाऊंगा, हालांकि तब अच्छा स्टूडेंट माना जाता था। इसलिए क्लास में एक अलग सी हनक थी। चेहरे पर हमेशा मुस्कान सजी रहती थी। इसलिए नाम ही पड़ गया था मुस्कान भाई। कई बार क्लास की लड़कियां भी इसी नाम से बुलाने लगती थीं तो उन्हें विरोध का सामना करना पड़ता था। अरे यार…कम से कम तुम लोग तो भाई न बोलो…। एक तो गिनी-चुनी हो…। 25-30 लड़कोंं के बीच गिनकर पांच लड़कियां…। उनमें भी सब की सब भाई….। ओह…नो। आगे से मुस्कान भाई बोली तो मुंह तोड़ दूंगा…। और ऐसे ही हंसी-मजाक, लड़ाई-झगड़े और पढ़ाई-लिखाई के बीच समय कट रहा था।
जून में एडमिशन के बाद गर्मी और बारिश बीत रही थी और स्कूल में बढ़ता जा रहा था जलवा।…अरे नहीं..नहीं…किसी तरह का शो ऑफ नहीं कर रहा। जलवा…यानी अब मैं मॉर्निंग प्रेयर का हीरो था…। मॉर्निंग असेंबली के संचालन में महारत हासिल हो गई थी…। अपने हाउस का इंचार्ज बना दिया गया था। रोज कुछ न कुछ नई जानकारियां ढूंढ़कर लाता और असेंबली में साथियों को सुनाता। फिर हफ्ते के आखिरी दिन भरी असेंबली में उन्हीं जानकारियों से जुड़े सवाल पूछता था। इसलिए टीचर्स की नजरों में भी शाबाशी के भाव आते जा रहे थे।
समय का चक्र अपनी गति से चल रहा था और मुस्कान भाई अब अपनी क्लास ही नहीं, पूरे स्कूल के चहेते हो गए थे। स्कूल का हर बच्चा आपके इस मुस्कान भाई को पहचानने लगा था और ये नाम भी सबको पता चल चुका था। अब तो मन ही मन खुशी का अहसास होता था ये नाम सुनकर। हिन्दी में मुस्कान भाई अव्वल थे पर अंग्रेजी में हाथ थोड़ा…थोड़ा क्या बिल्कुल ही तंग था। इसलिए साथियों के बीच बैठकर ज्यादा से ज्यादा सीखने की कोशिश करते रहते थे। और वो भार्गव की डिक्शनरी के कहने ही क्या…। रोज पांच शब्द रटना और उनको सेंटेंस में इस्तेमाल करने की कोशिश करना अब तो जैसे आदत ही बनती जा रही थी…। हां, आपके मुस्कान भाई को कभी इससे हीनभावना नहीं आती थी कि अंग्रेजी नहीं आती। एक भाषा थी, जिसे सीखने की कोशिश कर रहा था पर अपनी हिन्दी पर गर्व भी था…।
खैर, कहां भटकता जा रहा हूं…। तो बारिश भी बीत गई और सर्दियोंं की शुरुआत हो गई। ये तो बताना ही भूल गया कि मुस्कान भाई को डायरी लिखने का शौक भी उस दौर में था। खूब गाना सुनता और फिर अपनी डायरी में तुकबंदी भी करता रहता था। साथ ही साथ पाई-पाई का हिसाब भी। आज भी ऐसी कोई डायरी मिल जाए तो आपको पता चल जाएगा कि मुस्कान भाई समोसों के कितने शौकीन थे। कितने दिन मटर और प्याज वाले समोसे खाए तो कितने दिन छोले के साथ। कई दिन चटनी और समोसे का साथ होता और मुस्कान भाई की चटोरी जुबान..। हां, तो मैं बता रहा था कि डायरी लिखने का शौक था तो जब भी स्कूल में टाइम मिलता, फील्ड में जाकर अपना हिसाब-किताब लिखने लगता था।
वो भी ऐसा ही एक दिन था। फरवरी की शुरुआत हो चुकी थी और धूप काफी अच्छी लगने लगी थी। लंच टाइम हुआ और मैं अपनी डायरी लेकर पहुंच गया फील्ड में। एक कोने में बैठकर हिसाब-किताब लिखने लगा। तभी वो आ गई…। जी हां..वो यानी क्लास की सबसे खूबसूरत लड़की। जिससे बात करने के लिए स्कूल का हर लड़का बहाने खोजता था..वो आकर मेरी बगल में बैठ गई और मेरी डायरी में झांकने की कोशिश करने लगी। मैं यानी एक गंवार …पहले तो झेंपा पर फिर डायरी छिपा ली। इस पर उसके चेहरे पर शैतानी साफ झलकने लगी। लहजा भी वैसा ही लगा, जब उसने पूछ लिया…अपनी वैलेंटाइन के लिए कुछ लिख रहे हो…। अब पूरी तरह से मेरे चेहरे पर गंवारपन झलकने लगा था…एक सवालिया निशान चेहरे पर उभर आया…वैलेंटाइन…वो क्या होता है…। शायद उसे इसका अहसास हो गया था। उसने बताया, अरे..तुमको नहीं पता, वैलेंटाइंस डे आ रहा है…फिर सवाल…उसी की तैयारी कर रहे हो क्या…। अब झेंपते हुए और ये दर्शाते हुए कि मुझे सब पता है…मैंने इनकार में सिर हिला दिया। बात आगे बढ़ती…तभी स्कूल की बेल ने मुझे बचा लिया। बेल थी लंच टाइम खत्म होने की।
बेल बजते ही…दोनों एक साथ उठ खड़े हुए और इधर-उधर की बातें करते क्लास में आ गए। और बात आई-गई हो गई। पर ऐसा असलियत में था नहीं…। अब मुस्कान भाई परेशान कि आखिर ये वैलेंटाइंस डे बला क्या है…। किससे पूछें…कौन बताएगा…हंसी तो नहीं उड़ाएगा…। इसी ऊहापोह में स्कूल से घर आ गए। तब आज के जैसा तो था नहीं कि झट से गूगल बाबा के पास गए और फट से जवाब मिल गया। तब न तो इंटरनेट था और न ही मोबाइल…ऐसे में जाएं तो जाएं कहां। खैर किसी तरह रात बीती…। अगले दिन फिर स्कूल पहुंचे और अपने सबसे खास दोस्त को अकेले में बुलाया। विद्या की कसम खिलाई कि जो कुछ भी पूछने जा रहा हूं उसके बारे में किसी को नहीं बताओगे…। उसके बाद पूछ ही लिया कि ये वैलेंटाइंस डे क्या होता है…। जैसे कि अनुमान था, पहले तो हंसा पर मुझे सीरियस देख सीरियस हो गया और सबकुछ डिटेल में बता डाला।
अब तो मुस्कान भाई के दिल की धड़कनें तेज…। वैलेंटाइंस डे नजदीक है और उसने…वो क्लास की सबसे खूबसूरत लड़की है…उसने मुझसे वैलेंटाइंस के बारे में पूछा है…। जवाब तो देना ही पड़ेगा…। तैयारी तो करनी ही पड़ेगी…। और की भी। उसी दोस्त की मदद से कार्ड खरीदा…गिफ्ट खरीदा..और करने लगा वैलेंटाइंस डे का इंतजार…। वो दिन आया भी पर …पर मुस्कान भाई की हिम्मत जवाब दे गई…। इस डर से कि कहीं नाराज हो गई और टीचर को बता दिया तो…बात घर तक पहुंचेगी और … और उस समय के पैरेंट्स… बाप रे बाप… अम्मा रे अम्मा… दे दनादन जूते और डंडे…ये सोचकर ही रूह कांप उठी…फिर… फिर क्या… इसी डर के मारे मुस्कान भाई उस दिन स्कूल ही नहीं गए और… और एक प्रेम कहानी…शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई…