कड़ी कभी मंदिर गए हो…। ये क्या सवाल हुआ… मंदिर गए हो क्या…अरे गए ही होगे..। खैर … बात मंदिर जाने न जाने की नहीं है। नास्तिक-आस्तिक की भी नहीं है। बात है साष्टांग दंडवत की…। नहीं समझे…। अरे वही..जिसमें कई लोग भगवान की मूर्ति के सामने धराशाई हो जाते हैं। हां…हां… वही..दोनों हाथ सिर के ऊपर उठाकर जोड़ा और धम्म से भगवान जी के चरणों में पेट के बल लेट गए…। मैं भी ऐसा ही करता हूं। पर इस बार मंदिर गया तो थोड़ी भीड़ थी…। पहले तो साष्टांग प्रणाम के लिए जगह ढूंढ़ी। जगह भी ऐसी चाहिए थी, जहां से भगवान जी सीधे-सीधे दिखें और नजदीक जितना अधिक हो, उतना अच्छा। अब ऐसी जगह ढूंढ़ कर जैसे ही हाथ सिर के ऊपर कर आंख बंद की, कोई न कोई सामने आकर खड़ा हो जाता और अपनी मन्नतें मांगने लगता। इसका अहसास होते ही धीरे से आंखें खोल दी …। अब जब तक सामने वाला हटता नहीं…यूं ही खड़े रहना पड़ेगा…ये सोच-सोचकर और सामने वाले को देखकर खून बहुत खौला है पर क्या करें…। मंदिर में खड़े होकर गालियां देना अच्छा नहीं लगता न…। वैसे गालियां देना कहीं भी अच्छा नहीं लगा…। खैर …जैसे-तैसे करके जगह बनाई और प्रभु के चरणों में लेट गया…। हे कृपानिधान सारे दुख हर ले…सारे सुख दे दे…। और फिर शुरू हुआ भगवान जी को रिश्वत ऑफर करने का सिलसिला…। इस बार बेटे को पास करा दो प्रभु, पूरे सवा किलो प्रसाद चढ़ाऊंगा…। बेटी की शादी के लिए कोई अच्छा सा रिश्ता भेज दो…। 51 रुपये चढ़ाऊंगा…। अबे जा…भगवान जी हैं, पैसे लेकर नकल कराने वाले स्कूल के प्रिंसिपल थोड़े न हैं और न ही शादी-ब्याह कराने वाले पंडित जी…। भगवान जी हैं तो उनसे उनके स्तर का ही कुछ मांगा जाना चाहिए। पर नहीं, मन माने तब न…। जैसे-तैसे भगवानजी को तरह-तरह के प्रलोभन देने के बाद लेटे-लेटे ही धीरे से हाथ सिकोड़ कर आंखें खोली तो चौंधिया गईं। सामने चार जोड़ी अंगुलियां और एक जोड़ा अंगूठा…। कुछ पिंक-गोल्डन-सिल्वर कलर जैसी नेलपालिश से चमकाए गए नाखून…। पहले तो यही समझ में नहीं आया कि कलर है कौन सा…पिंक है, गोल्डन है या सिल्वर…। फिर दिमाग पर ज्यादा जोर देने के बजाय भगवान के चरणों से हटाकर सारा ध्यान उन्हीं चरणों पर लगा दिया…। यार, जिसके पैर ऐसे हैं, वो कैसी होगी…। अब तक भगवान के सामने मैं गिड़गिड़ा रहा था और अब…। अब एक ही इच्छा बलवती हो रही थी कि जिसके पैर देख रहा हूं उसका चेहरा कैसे देखूं…। उठने की कोशिश कर ही रहा था कि धम्म से एक जोड़ी पंजे सामने आकर अंगद के पैर की तरह जम गए…। काले-काले नाखूनों वालो….पूरा टेस्ट ही खराब हो गया और इसके साथ ही टूट गया उन गोरे-गोरे पैरों वाली का चेहरा देखने का सपना…।
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