शीर्षक - गुरु तुमसा
गुरु बन तुम आए प्रभु इस संसार में,
उपहार जीने का दिया गीता सार में।
ज्ञान का उदय हुआ तेरे चरण कमल में,
निष्काम प्रेम का भाव लिए आए जगत में।
अज्ञानी भक्तों को लिया अपने सानिध्य में,
अविरल स्नेह की धारा बहाया मानव हृदय में।
झुकना नहीं डिगना नहीं पत्थरों की राह में,
कर्मपथ पर बढ़ते चलो रहो रत हमेशा प्रयास में।
तुमसा गुरु जो मिला है इस जीवन की राह में,
उत्तीर्ण होता जाए मानव जीवन की हर परीक्षा में।
आरती झा (स्वरचित व मौलिक)
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