हां ! हमनें गांधी को मारा दिया
क्योंकि वह करता था आदर्श की बातें?
क्योंकि वह चलता था सचाई-नैतिकता की राह पर
उसकी दी हुई आजादी हमें नहीं भाई,
हम आजादी नहीं चाहते थे
हम चाहते थे स्वतंत्रता के नाम पर
अराजकता एक अव्यवस्था
जो आजादी आज हम ढो रहे है
वो नहीं है गांधी के सपनों की आजादी
बदला इस इस आजादी से कुछ भी नहीं
बदले है केवल चेहरो के परसोना
जहां पहले पराये हुआ करते थे
आज अपने हमें हाँकते है
भेड़ बकरीयों की तरह
टकरा रहे है हम अपना सर
उन दीवारों से जो खड़ी की है
सफेद पौष उन पत्थर दिलों ने
चाहे वो न्यायालय की हो
या हो लोक सभा की
नहीं खुलते गरीबों के लिए उनके द्वार
क्योंकि नहीं है चाबी उनकी हमारे पास
शायद हम लेना भूल गये है?
वो चादी जो खादे देती उन पत्थर दिलो को
ओर वहा बहने लगती प्रेम की गंगा
पर हमने मार दिया उन्हें पहले ही
और वो चाबी लेना भूल गये है
क्या हमनें मारा नहीं है गांधी को?
हमनें तो मारा है अपने भविष्य को
उस आदर्श राम-राज्य के सपने को
और दे दी कुबेर की सोने की लंका
की पतवार उन रावणों के हाथ
जो जलायेगें अब राम का ही पुतला
और सकेंगे बोटो-कि-रोटा उन पर
मत पछताओं अब….केवल हाथ मलो,
उस बंजारे की तरह,
जो उस मूक निरीह को मार कर पछताया था।