आमना बाजी का फोन आया था आज सुबह!!! टेबल पर सब खाने में मसरूफ थे कि अम्मी ने इत्तेला दी।
“कैसी हैं फुप्पो???”, उसने जग से ग्लास में पानी निकालते हुए पुछा।
“ठीक हैं सब, वह तुम्हारा पूछ रही थीं, तो मैंने बता दिया कि तुमनें हैदराबाद से एम० सी० ए० में एडमिशन के लिए अप्लाई किया हुआ था। एडमिशन की डेटस आ गई हैं और अब तुम हॉस्टेल की तलाश में हो”,
अम्मी ने तफ्सील बताई।
“वॉव आपी, आप हैदराबाद जा रही हो। दि सिटी ऑफ पर्लस चारमीनार ज़रूर हो कर आएंगे वहां जब जाऐंगे हम लोग तब”,
आज़मीन को हिस्टॉरिकल मॉन्यूमेन्टस शुरू से ही बहुत पसंद थे।
“हां बिलकुल घूमने ही तो जा रहे हैं हम लोग वहां पर!!!”, उसने आज़मीन को घूरा।
“तो क्या हुआ आप कॉलेज के काम निपटाना हम लोग घूम आएंगे”, आज़मीन तो हैदराबाद का नाम सुन कर ही खुशी से पागल हो गई थी।
“कोई नही जा रहा है और कही नही जा रहा है। शिफ़ा और तुम्हारे पापा जाएंगे बस!!!”,
अम्मी ने अपना फैसला सुनाया।
“लेकिन अम्मी.....”,???
आज़मीन का तो सुनते ही मुंह बन गया।
“और शिफ़ा तुम्हारी फुप्पो ने कहा है कि तुम्हें हॉस्टल ढूंढने की कोई ज़रूरत नही है तुम उन के घर पर रहोगी!!!”,
अम्मी अब उसकी तरफ मुड़ीं।
“लेकिन अम्मी अच्छा नही लगता, फुप्पो बेचारी मेरी वजह से परेशान हों!!!”
“अरे अल्लाह के शुक्र से इतना बड़ा घर है उनका परेशानी की क्या बात है काम करने के लिए नौकरों की पूरी फौज है और अगर तुम वहां रहोगी तो हम लोगों को ज़्यादा बेफिक्री रहेगी!!!!”,
पापा ने भी अम्मी की हां में हां मिलाई तो वह खामोश रह गई। क्योंकि मुशकिल से बड़ी मिन्नतों के बाद तो हैदराबाद जाकर एम० सी० ए० करने की इजाज़त मिली थी।
“कब निकलना है वहां के लिए हमें???टिकट करा देता हूं मैं फिर!!!”,
पापा ने टेबल से उठते हुए पू़छा।
“टिकट तो मैं खुद बुक कर लूंगी पापा। आप उसकी फिक्र ना करें और मैं सोच रही हूं सन्डे में निकल जाते हैं यहां से। सफर के बाद आपको थोड़ा रेस्ट भी मिल जाएगा। फिर मन्डे कॉलेज हो आएंगे हम लोग!!!”,
उसने अपना प्रोग्राम बताया।
“माशाअल्लाह! मेरा बेटा बहुत समझदार है। सबका ख्याल रखना आता है इसको!!!”,
पापा ने उसके सर पर मुहब्बत से हाथ रखा तो उसकी एनर्जी हमेशा की तरह दोगुनी हो गई।
“आपी मेरे फोन में देखें क्या मसला हो रहा है!!”, हसन मोबाइल लिए उसकी तरफ आया।
“दिखाओ क्या हुआ???”, उसने मोबाइल देखते हुए पूछा।
“आपी लेपटॉप भी चैक कर लें प्लीज़। पता नही क्या मसला हो रहा है। डॉक्यूमन्ट खुद ही क्लोज़ हो जाता है बार बार”, आज़मीन ने भी टिशू से हाथ साफ करते अपना मसला बयान किया।
“वायरस आया होगा कोई तुम्हे? कितना तो मना किया है। हर कोइ डिवाइस कनेक्ट मत किया करो उसमे”,
उसने हसन के मोबाइल से नज़र हटा कर आज़मीन को देखा।
“बस जो भी है मसला सॉल्व कर दें प्लीज़ मुझे ज़रूरी असाइंमेंट तैयार करने हैं उसमें कल!!!”,
आज़मीन ने खुशामद की।
“हां बस यही मसले सॉल्व करा लो इससे। ग़ज़ब खुदा का लड़की ज़ात है और एक भी मशरिक़ी लड़कियों वाली कोई आदत या शौक़ हो जो”,
अम्मी हमेशा की तरह शुरू हो गईं।
“क्या हो गया है अम्मी? घर के काम तो सारी लड़कियां कर ही लेती हैं, लेकिन ये काम तो हर लड़की नही कर सकती। आप को तो खुश होना चाहिये कि आपकी बेटी सबसे अलग है और फिर बाक़ी सब काम भी आपी कर ही देती हैं एसी भी कोई बात नही है!!!!”,
हसन ने उसकी तरफदारी की।
“तुम लोगो की इन बेजा तरफदारियों ने ही इसको सर चढ़ाया हुआ है। ससुराल जाकर ही अक़ल आती है एसी लड़कियों को फिर!!!!”,
अम्मी ने अपना हज़ार बार कहा हुआ जुमला एक बार फिर दोहराया था।
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अहमद मन्ज़िल शफीक़ अहमद की मल्कियत थी। जो उनकी बेगम ज़ोहरा और दो बेटों असद अहमद और आसिम अहमद से आबाद थी। शफीक़ साहब और ज़ोहरा बेगम को हमेशा से एक बेटी की बहुत ख्वाहिश थी। जो आमना की शक्ल में पूरी हुई।
आमना शफीक़ साहब के मरहूम (मरे हुए) दोस्त अदीब साहब की बेटी थी। जिसकी माँ उसकी पैदाईश के वक़्त चल बसीं थीं। अदीब साहब अपनी एकलौती बेटी को नौकरों के हवाले नही करना चाहते थे इसलिये ऑफिस जाने से पहले उसे ज़ोहरा बेगम के पास छोड़ जाते और ऑफिस से आकर घर ले जाते थे और आमना सात साल की थी कि अदीब साहब की भी एक एक्सीडेंट में मौत हो गई और यूं आमना मुस्तक़िल तौर पर अहमद विला में आ गई। आमना को भी ज़ोहरा बेगम से मां की ही तरह मुहब्बत थी और असद और आसिम दोनो भी उसे सगी बहन की तरह चाहते थे। उसकी एक आवाज़ पर दोनो हाज़िर हो जाते।
वक़्त गुज़रता गया बच्चे बड़े हुए असद की शादी उसकी मामूज़ाद कौसर से और आसिम की शादी ज़ोहरा बेगम की ख्वाहिश पर उनकी दोस्त की बेटी नादिरा से हो गई। आमना के लिए शफी़क़ साहब की फुप्पो ने अपने बेटे के लिए ख्वाहिश की और वह इंकार नही कर सके और यूं आमना ब्याह कर हैदराबाद चली गईं।
आमना के जाने के बाद घर एक बार फिर बेटी जैसी नेअमत से खाली हो गया।असद के एक के बाद दीगरे तीन बेटे अदील रज़ा और अनस हुए। ऐसे में आसिम के यहां लड़की की पैदाईश उनके लिए किसी रहमत से कम ना थी। सुतवां नाक और फूले फूले गालों वाली यह बच्ची घर भर की लाडली थी। जिसका नाम ज़ोहरा बेगम ने बड़े प्यार से शिफ़ा रखा था। हालांकि शिफ़ा के बाद आज़मीन और हसन ने भी बारी बारी उस घर को रौनक़ बख्शी लेकिन उस की जगह कोई ना ले पाया था।
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“सुना है तुम फुप्पो के यहां जा रही हो वह भी दो साल के लिए???”,
वह कबर्ड सैट कर रही थी कि अनस की आवाज़ पर पलट कर देखा
“फुप्पो के यहां नही जा रही हूं मैं, पढ़ने जा रही हूं वहां पर!!!”,
वह कह कर अपने काम में बिज़ी हो गई।
“हाँ तो एक ही बात है ना, यहां तो नही रहोगी तुम”,
उसके लहजे से अफसोस साफ़ ज़ाहिर था।
“हां तो तुम्हे क्या मसला है ???”,
उसने सर उठा कर अनस को देखा जहां हमेशा वाली मज़ाक़ की बजाए आज संजीदगी छायी हुई थी।
“तुम यहां से भी तो कर सकती हो एम० सी० ए!!”,
वह किसी भी तरह उसको रोकने पर तैयार था।
“यहां मेरे सब्जेक्टस अवेलेबल नही है तुम जानते तो हो!!!”,
उसे उस की बातों से उलझन हो रही थीं।
“तो सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग ज़रूरी है???”
“हां ख्वाब है मेरा सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना। now please leave this topic Because I don’t want to talk about this anymore”,
उसने फाइनल अंदाज़ में कह कर बात खतम कर दी।
“और बाई द वे तुम्हे तो खुश होना चाहिये कि मुझसे जान छूट रही है अब तुमसे कोई लड़ेगा भी नही ना तन्ज़ करेगा!!!”,
उसने अनस का मूड सही करने की कोशिश की थी
“यही लड़ाईयां और शरारतें तो याद आंएगी”,
वह और ज़्यादा सीरियस हुआ।
“परेशानी क्यों है तुम्हे मेरे जाने से इतनी???”,
उसने कबर्ड सैट करने के बाद अब उसका दरवाज़ा बन्द किया था।
“बस मैं नही चाहता कि तुम मुझसे इतनी दूर जाओ”,
इस बार अनस ने सीधा उसकी आँखो में झांका।
“लेकिन मैं चाहती हूं वहां जाना और इतना काफी है मेरे लिए”,
उसने अपनी बात पर ज़ोर दिया।
“मुझे मुहब्बत हो गई है तुमसे”,
उस के बड़े इतमीनान से किये गये इज़हार पर शिफ़ा का मुंह खुला रह गया था
“इस में इतना बड़ा मुंह खोलने की भी कोई ऐसी ज़रूरत नही थी”
अनस ने उसका रिएक्शन Enjoy किया था।
“उठना ज़रा खड़े होना तो”
वह अपनी हैरत पर क़ाबू पाकर उसकी तरफ आई थी।
“क्या हुआ ????”,
वह उसके अचानक यूं कहने पर कुछ ना समझते हुए खड़ा हो गया।
“वह रहा दरवाज़ा, अब दफ़ा हो जाओ यहां से और आइंदा यह सड़क छाप आशिक़ो वाली हरकत की होगी। मेरे सामने तो यह तुम्हारे सर में दे कर मारूंगी!”,
उसने हाथ में पकड़ी आज़मीन के कोर्स की एक बहुत मोटी किताब की तरफ इशारा किया।
उसका कुछ पता भी नही सच में ही मार देती
अनस मौक़ा ग़नीमत जानकर चुपचाप बाहर निकल गया।
“बड़े बे आबरू हो कर तेरे कूचे से निकले हम”,
उसने बाहर निकलने से पहले उसकी तरफ देखते हुए मिस्कीन सी शक्ल बना कर शेर पढ़ा था।
“तुम्हारे क़ुल पक्के हैं आज ,रूको तुम”,
वह दाँत पीस्ते हुए बड़े ही खूंखार अंदाज़ में उसकी तरफ बढ़ी थी।
“जा रहा हूं पर मेरी बात पर ग़ौर करना ज़रूर एक बार।“ वह जाते जाते कह कर गया था।