शिफ़ा शिफ़ा !!!!
अनस सहन में खड़ा उसको आवाज़ कम दे रहा था और चि़ल्ला ज़्यादा रहा था।
“क्या मुसीबत है, कभी तो चैन से खाना खाने दिया करो। हर वक़्त सर पर नाज़िल रहते हो”
वह बड़बड़ाती हुई कमरे से बाहर निकली थी।
“हर वक़्त खाती ही रहती हो फट जाओगी एक दिन!!!”
उसने उस की नागवारी को खातिर में ना लाते हुए कहा।
“बेफिक्र रहो तुम्हारे पास नही आउंगी सिलवाने ,यह बताओ किस काम से आए थे? काम करो और फूटो यहां से!!!!”,
उसे पता था कि अनस को उससे कभी कोई काम नही होता। उसका मक़सद सिर्फ शिफ़ा को तंग करना होता है।
“काम तो मैं बता दूंगा पहले एक ग्लास पानी पिला दो”, वह बराबर में पड़े सोफे पर ढेर हो गया।
“इतनी गर्मी में भी तुम्हे चैन नही है। अपने घर नही रह सकते वरना इतनी गर्मी में तो बन्दा कहीं जाने का सोचे भी नही”, उसने पानी का ग्लास उसे पकड़ाते हुए तन्ज़ किया।
“हां तो, सब तुम्हारे जैसे नही होते जो कार्टून बने बस घर में फिरते रहे”,
अनस ने उसके हुलिये पर एक नज़र डाली।
रैड टी शर्ट और बलैक लोवर पर रैड ही दोपट्टा लिए लम्बे बालों को कल्च में क़ैद कर रखा था। जिस में से कुछ उलझे बालों की लटों ने ज़बरदस्ती निकल कर उसके चेहरे का घेराव किया हुआ था।
“क्यों तुम्हे क्या मसला है मेरे हुलिए से???”,
उसने आईब्रो चढ़ाई।
“सूट में ज़्यादा अच्छी लगती हो जाओ वही पहन कर आओ”,
अनस के इतमीनान से दिये गये हुक्म पर वह बुरी तरह झल्ला गयी।
“क्यों मुझे किसी का जनाज़ा पढ़ाने जाना है क्या ???”, उसने तप कर पूछा।
“हां बिल्कुल सारे वही काम करना जो लड़कियों को करने मना हैं”,
अनस उसे किल्साने का कोई मौक़ा हाथ से नही जाने देता था।
“आपी ग्रीन टी शर्ट कहां रखी है आपने मेरी????”,
हसन ने लाउंज में दाखिल होते हुए पूछा था।
“कहां रखी है मतलब ??? अल्मारी में होगी तुम्हारी, मुझे क्या पता!”,
उसने लापरवाही से कांधे उचकाए।
“आपको नही पता?? तो फिर उस टी शर्ट में आपके फोटो कैसै लगे हुए थे सुबह वहाटसएप्प पर????”,
हसन इस वक़्त सी०आई० डी० का पूरा रोल अदा कर रहा था।
“तुम भी हर वक़्त मेरी जासूसी में रहा करो बस, रूको देती हूं ढूंड कर!!!”,
हसन के यूं अनस के सामने पूछने पर वह खिसिया गई।
“हद है वैसे तुमसे भी कम से कम इसके तो कपड़े बख्श दिया करो”,
उसकी ज़ुबान में फिर से खुजली हुई थी।
“तुमसे ओपीनिएन मांगा नही है किसी ने”,
वह कहां चुप रहने वालों में से थी और मुआमला अनस का हो फिर तो सवाल ही पैदा नही होता था उस के चुप रहने का।
“ओपीनिएन तो तुम तब मांगोगी मुझ से जब मेरे पास एक लैम्बॉ्रगिनी और डिफेंस में एक बहुत बड़ी कोठी होगी, तब देखना तुम खुद आओगी मेरे पास ओपीनिएन लेने के लिये”
वह इतराते हुए बड़े स्टाइल के साथ बोल रहा था।
“लगता है शेखचिल्ली से ऑनलाइन क्लासेस लेनी शुरू कर दी तुम नें”
उस ने मज़ाक उड़ाई
“उड़ा लो उड़ा लो मज़ाक़”
अनस पर रत्ती भर फर्क़ भी नही पड़ा।
“यह जो तुम शेखचिल्ली की तरह ख्यालों का मटका उठाए फिरते हो ना किसी दिन सॉलिड पड़ेगा तुम्हें यह”
“ख्यालों में तो मैं तुम्हें भी देखता हूं”
वह इतमीनान से बोला
“बकवास कम किया करो तुम यह, समझ आई” ??
शिफ़ा बुरी तरह चिढ़ गई।
“ठीक है फिर तुम ही बता दो कितनी quantity में करनी है” ??
अनस पर उस के गुस्से का फर्क़ कभी पड़ा था जो अब पड़ता।
“पता नही बड़े पापा के यहां तो सब अच्छे हैं तुम ही ऊदबिलाव पता नही कहां से मिल गए उन को, मुझे तो लगता है जब तुम हुए होंगे डॉक्टर ने भी आ कर कहा होगा मुबारक हो आप के यहां शेखचिल्ली हुआ है यह बस सारी ज़िंदगी ख्याली पुलाव ही बनाएगा”
“हां और जब तुम हुई थीं तब डॉक्टर ने कहा था मुबारक हो आपके यहां कीड़ा हुआ है आप इसे खाना मत दीजियेगा बस आप के यहां की किताबें चाट कर ही ज़िंदा रह लेगा यह तो”
अनस का जवाब उस के बुरी तरह तीली लगा गया।
“दोज़ख (जहन्नुम) में जाओ तुम”
वह कहती निकल गई।
“ठीक है पैकिंग कर लो क्योंकि तुम्हारे साथ ही जाउंगा मैं वहां भी”
उस ने ऊंची आवाज़ में जवाब दिया था जिसे सुन कर बाहर निकलती निकलती शिफ़ा किलस कर सोफे पर रखा कुशन उस की तरफ उछाल कर गई थी जिसे उस ने बड़ी महारत से कैच कर लिया।