सुबह के सात बजे थे। ज्योति अपनी छत पर हाथ में किताब लिए, घूम घूम कर कुछ याद कर रही थी। इस साल वह दसवीं कक्षा में थी। घूमते -घूमते कभी वो किताब में देखती तो कभी किताब बंद करके मुँह ही मुँह में कुछ बुदबुदाती। वह याद करने में तल्लीन थी कि उसकी नजर सामने वाले घर की छत पर खड़ी एक लड़की पर पड़ी जो उसे ही देख रही थी। ज्योति ने उसकी ओर मुस्कुराते हुए देखा फिर वह वापस अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गई।
दो दिन बाद वह लड़की फिर से छत पर दिखी। अब भी वह चुपचाप खड़ी ज्योति को देख रही थी। ज्योति से नजर मिलते ही वह बगले झांकने लगी। अब ज्योति को थोड़ी जिज्ञासा हुई उसके बारे में जानने की। उसने हवा में हाथ लहराते हुए उसको हाय बोला। बदले में उसने मुस्कुरा दिया। ज्योति ने उसका नाम पूछा तो उसने जबाब दिया नेहा। इतने में उसे किसी ने पुकारा और वो नीचे चली गयी।
अब वह अक्सर घर की छत पर, बालकनी में या कभी दरवाजे पर दिखाई देती थी। दोनों एक-दूसरे को देख कर मुस्कुरा देती थीं ।
एक दिन ज्योति कुछ सामान लेने पास की दुकान पर गई। वहाॅं नेहा भी कुछ खरीद रही थी। ज्योति ने उससे पूछा कि तुम कहाॅं से आई हो, और कौनसी कक्षा में पढ़ती हो।
नेहा ने थोड़ा झिझकते हुए अपने गाॅंव का नाम बताया और कहा कि अब मैं यहीं रहूँगी अपनी दीदी के पास और यहीं के स्कूल में मेरा दाखिला करवा दिया है।
गाँव में मैं सातवीं कक्षा में पढ़ती थी लेकिन यहाँ के स्कूल में मुझे छठवीं में दाखिला मिला है वो क्या है ना मुझे अंग्रेजी नहीं आती इसलिए। नेहा ने कुछ सकुचाते हुए कहा।
और तुम्हारे मम्मी पापा गाँव में ही रहेंगे ज्योति ने उसकी ओर जिज्ञासु नजरों से देखते हुए पूछा।
ज्योति का सवाल सुन कर नेहा ने नजरें झुका ली। गला थोड़ा रुंध सा गया और उसने भारी मन से बताया कि मेरी मम्मी नहीं है। चार महीने पहले वो भगवान के पास चलीं गईं। इसलिए पापा ने मुझे यहाँ दीदी के पास भेज दिया है। दोनों बड़े भाई पापा के साथ गाँव में ही रहेंगे।
सुन कर ज्योति सन्न रह गई। और कुछ पूछने की उसकी हिम्मत नहीं थी।
दोनों चुपचाप अपने अपने घर आ गईं।
दोनों में धीरे-धीरे दोस्ती हो गई। नेहा कोई ना कोई बहाना करके ज्योति के घर पहुॅंच जाती थी और दोनों घंटों बातें करतीं रहती थी।
नेहा की दीदी के एक बेटी थी जो कि नेहा की ही उम्र की थी लेकिन वो नेहा को पसंद नहीं करती थी। यहाँ तक कि उसे अपने दोस्तों से भी नहीं मिलवाती थी। उसे लगता था कि गाँव की लड़की को देखकर उसके दोस्तों के सामने उसकी बेइज्जती हो जाएगी।
अब नेहा को ज्योति के रूप में नई सहेली मिल गई थी। ज्योति को भी नेहा से बातें करना, उसके सवालों के जवाब देना अच्छा लगता था।
जब भी नेहा को उसकी मम्मी की याद आती तो वह ज्योति के घर पहुॅंच जाती थी ।
उसकी आॅंखों से अश्रुधारा बहने लगती। तब ज्योति की आँखे भी द्रवित हो जाती। वह नेहा को गले से लगाकर उसे चुप कराती थी।
एक दिन नेहा ने ज्योति को बातों ही बातों में बताया कि उसके जीजाजी उसे अच्छे नहीं लगते हैं। ज्योति ने उससे पूछा कि क्यूँ क्या हुआ। तो नेहा ने कुछ डरते हुए कहा कि आप किसी को बताएंगी तो नहीं। ज्योति ने विश्वास दिलाया कि किसी को भी नहीं बताऊंगी।
नेहा ने थोड़ा झिझकते हुए बताया कि उसके जीजाजी उसे कहीं भी हाथ लगाते हैं, मैं मना करती हूँ तो डाॅंट देते हैं। कहते-कहते नेहा चुप हो गई।
ज्योति की आँखे गोल हो गईं। गुस्से से उसका चेहरा लाल हो गया। उसने कहा कि तूने यह बात अपनी दीदी को बताई है। नेहा ने डरते हुए कहा कि नहीं दीदी को नहीं बताऊंगी, जीजाजी डाॅंटेगे।
ज्योति को स्कूल में गुड टच, बैड टच के बारे में मैडम ने बताया था। उसने नेहा को समझाया कि तू दीदी को जरुर बताना। उन्हें बताना बहुत जरूरी है। नेहा ने सहमति में सिर हिलाया और घर चली गई।
अगले चार पाॉंच दिन नेहा ज्योति के घर नहीं आई। ज्योति को नेहा की चिंता हो रही थी। वह छत पर भी नहीं दिखी थी।
क्या हुआ होगा? ज्योति की चिंता बढ़ गई थी।
एक दिन रास्ते में स्कूल जाते वक्त नेहा ज्योति को मिल गई । ज्योति ने उससे पूछा कि तू घर क्यूँ नहीं आई? और दीदी को बताया कि नहीं? क्या कहा उन्होंने? खूब डाॅंटा होगा उन्होंने तेरे जीजाजी को?
नेहा ने अपने आस पास नजर दौड़ाई। फिर धीरे से ज्योति से बोली कि मैंने दीदी को बताया था लेकिन उन्होंने मुझे बहुत डाँटा। और कहा कि तुझे किसी ने उल्टी सीधी पट्टी पढ़ा दी है। और दीदी ने आपसे बात करने के लिए भी मना कर दिया है। नेहा की आँखे कातर नजरों से ज्योति को देख रही थी।
ज्योति ने कहा कि हो सकता है अब सब ठीक हो जाए। दीदी ने तेरे सामने जीजाजी को कुछ नहीं कहा होगा। बाद में समझा दिया होगा। तू फिक्र मत कर। ज्योति ने नेहा को हिम्मत बधाई। और दोनों अपने अपने घर आ गई।
कुछ दिन बीत गए। अब नेहा जब तब ही बाहर निकलती थी। और छत पर भी कम दिखती थी। और ज्योति के घर तो आना बिल्कुल बंद कर दिया। ज्योति को लगा कि अब सब ठीक हो गया होगा। लेकिन कहीं न कहीं एक चुभन थी उसके मन में। एक डर, एक फिक्र। नेहा भले ही कुछ ना कहती हो लेकिन उसकी आँखों में अनेक सवाल दिखाई देते थे जैसे कि वो पूछ रही हो कि बताओ दीदी मैं क्या करूँ।
ज्योति को बस जानना था कि नेहा ठीक है। कई बार मन होता कि उसके घर जाकर ही उससे पूछ ले। लेकिन वो डरती भी थी।
एक दिन अचानक नेहा घर आ गई और खुश होकर कहा कि मैं गाँव वापस जा रही हूँ। उसकी आँखें चमक रहीं थीं।
उसने कहा कि अब वो यहाँ कभी नहीं आएगी। आखिरी बार आपसे मिलने आई हूँ।
ज्योति को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि नेहा क्यूँ जा रही है गाँव। आखिर क्या हुआ होगा? और उसकी पढ़ाई? हजारों सवाल कौंध गये ज्योति के मन में।
नेहा ने बताया कि पापा उसे लेने आए हैं। मैंने उन्हें फोन करके बुला लिया था। उन्होंने दीदी जीजाजी को खूब डाँटा था और कहा कि नेहा की मम्मी मरी है मैं नहीं।
नेहा की आॅंखों में जीत की खुशी थी। उसने अपनी जंग खुद लड़ी थी। बहुत हिम्मत की जरूरत होती है
ऐसे प्रसंग को उजागर करने के लिए।
जो कि नेहा ने सहजता से कर दिखाया।
गहरी सांस लेते हुए राहत भरी नजरों से ज्योति ने नेहा को देखा।
ज्योति को नेहा से बिछड़ने का दुख था लेकिन उससे भी ज्यादा खुशी इस बात की थी कि नेहा उस घिनौने दरिंदा से बच गई जो रिश्तों का नकाब ओढ़े घर में ही बैठा था।