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रिश्तेदारी

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किस्सा है अमरावती का, किस्सा कोई बरसों पुराना नहीं बल्कि हाल-फ़िलहाल का है | अमरावती जो 72-73 वर्ष की हैं | अमरावती के पति राम अमोल पाठक जी प्रकाश पब्लिकेशन में एडिटर थे, बड़े ही सज्जन और ईमानदार व्यक्त

शालिनी ( प्यारी सी बालिका ) बात हाल ही के कुछ वर्ष पहले की है । जब हमारे विद्यालय में शालिनी का प्रवेश कक्षा एक में हुआ था । एक बहुत सुंदर - सी, बहुत प्यारी - सी और विद्यालय का गृह कार्य समय पर क

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डोरबेल की कर्कश आवाज से उन दोनों की नींद खुल गई। हड़बड़ाते हुए मिश्रा जी और उनकी पत्नी उठे। मिश्रा जी ने तुरंत लाइट जलाकर घड़ी पर नज़र डाली। “अरे! बाप रे बाप, पाँच बज गए, तुमने उठाया क्यों नहीं”, मिश्रा

जब तक ये पत्र तुम्हारे हाथ में होगा, मैं अर्पणा और खुशबू को लेकर जा चुका होऊंगा, एक नए शहर में। सच पूछो तो ये ट्रांसफर मैंने जानबूझकर और ज़िद कर के लिया था वर्ना मेरा सबकुछ ठीक चल रहा था ऑफिस में। बल्

अपराजिता - जीवन की मुस्कराहटबड़े शहर से शादी करके आई अपराजिता जब से अपने ससुराल एक छोटे से गांव में आई तब से देख रही थी ससुराल में उसकी बुजुर्ग दादी सास का निरादर होता हुआ। ससुराल में उसके पति वि

शिखाकुछ ख़ामोश सा था दिल है । न जाने क्यों ? पर बार - बार उसकी याद आ रही थी । चार साल हो चुके मेरे विच्छेद को पर शायद ही कोई पल गया हो उसे याद किए बिना ।   कितने खुश थे हम दोनों । छोटा सा पर

लडका अपनी छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था।अचानक से उसे लगा की, उसकी बहन पीछे रह गयी है।वह रुका, पीछे मुडकर देखा तो जाना कि, उसकी बहन एक खिलौने के दुकान के सामने खडी कोई चीज निहार रही है।लडका पीछे आ

जब बस में सफर कर रहा था...और ड्राइवर के बगल में खड़ा था...इतने में एक महिला ने ड्राइवर से बोला की "भैया" मुझे यहीं उतार दो...ड्राइवर ने उसे उतार दिया और फिर बस चलाते हुए मुझसे कहने लगा की दिनेश जी एक ब

कर गई चाक तिमिर का सीना जोत की फाँक यह तुम थीं सिकुड़ गई रग-रग झुलस गया अंग-अंग बनाकर ठूँठ छोड़ गया पतझार उलंग असगुन-सा खड़ा रहा कचनार अचानक उमगी डालों की सन्धि में छरहरी टहनी पोर-पोर में

कर गई चाक तिमिर का सीना जोत की फाँक यह तुम थीं सिकुड़ गई रग-रग झुलस गया अंग-अंग बनाकर ठूँठ छोड़ गया पतझार उलंग असगुन-सा खड़ा रहा कचनार अचानक उमगी डालों की सन्धि में छरहरी टहनी पोर-पोर में

टिंग-टोंग... डोरबेल बजी तो कुछ ही देर बाद किरण ने दरवाज़ा खोला। सामने अमन था। किरण- अमन! अच्छा हुआ तू आ गया। मेरी जान छुड़वा इनसे। अमन को देखते ही राहत भरी सांस लेकर बोली किरण तो उसने हैरानी से पूछ

यह कहानी है एक छोटे से परिवार की जो अपने जीवन के फैसले लेने से पहले यह सोचता है की समाज क्या सोचेगा? उन्हें अपनी खुशियों से ज्यादा समाज की विचारधारा का ध्यान रखना ज्यादा जरुरी लगता था | लेकिन जब  एक प

यह कहानी है एक ऑटो वाले और एक नवयुवक प्रशांत की जो उस रात अपने घर को जल्दी पहुंचना चाहते थे। लेकिन भाग्य को कुछ और ही  मंजूर था इसीलिए उस दिन   उन दोनों का अंतिम सफर था । इस कहानी को उस दिन की सुबह से

किस्सा है अमरावती का, वैसे अमरावती अभी तो 72 वर्ष की है पर यह घटना पुरानी है। अमरावती करीब 64-65  वर्ष की रही होंगी | झारखण्ड के एक छोटे से शहर सूरजगढ़ में अमरावती अपने पति राम अमोल पाठक के साथ रहती थी

किस्सा है अमरावती का, वैसे अमरावती अभी तो 72 वर्ष की है पर यह घटना पुरानी है। अमरावती करीब 64 वर्ष की रही होंगी | राम अमोल पाठक जी प्रकाश पब्लिकेशन में एडिटर थे, बड़े ही सज्जन और ईमानदार व्यक्ति थे सभी

किस्सा है अमरावती का, वैसे अमरावती अभी तो 72 वर्ष की है पर यह घटना पुरानी है। अमरावती करीब 42-45 वर्ष की रही होंगी वो  अपने पति राम अमोल पाठक जी  और चार बच्चों बड़ा बेटा  चन्दन, बेटी  पूर्णिमा,मंझला बे

प्रेम का एक अटूट बंधन... पति पत्नी के बीच प्रेम क्या होता है कोई विजेंद्र सिंह राठौड़ से सीखे ! यह कहानी अजमेर के निवासी विजेंद्र सिंह राठौड़ और उनकी धर्मपत्नी लीला की है। 2013 में लीला ने विजेंद्र से आ

जिंदगी से परेशान हैं हर आदमी।एक दौड-भाग भरी हो गई जिंदगी।।भूल गये है रिश्ते किस कदर निभाने है।घर में रहकर भी अपने हुए पराए हैं।।मोबाइल की दुनिया में लोग समा गए हैं।रिश्ते की कीमतों को वाट्सएप इंस्टाग्

हां मैं आधा इंसान हूं।मेरे माता-पिता के बिना।जिनका खून मेरी रगों में उबल रहा।जिनका हर रंग में में रंगा हुआ।मैं छाया हूं उनके सपनों की।यह सबसे उच्च श्रेणी है अपनों की ।मैं उनके बिना अधूरी जी और जान हूं

(यह रचना भारत में बसने वाले उन लोगों की हालत का साक्षात बयान करती है जो अपनी जिंदगी का विनाश अपनी आंखों के सामने होते हुए देखते है। इसके अलावा गांव के गंदे बच्चों की संगति जो उसे सदा के लिए बर्बाद करक

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