मेरा शहर केरल जिसे भारत के चुनिंदा शहरो में से एक स्थान दिया गया है,लेकिन जैसा दिखता है ,वैसा है नहीं| जी हाँ,राजनीतिक दल अपना वजूद बनाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं,ये देखा गया है| कुछ आदिवासियों को अपने ही स्थान से यह कहकर हटा दिया गया कि , अगर आप अपनी भूमि देकर भारत के
विकास में अपना हाथ बँटाएँगे तो इसके लिए आपको भारी मात्रा में मुआवजा दिया जायेगा| लेकिन क्या मिला उन आदिवासियों को ? कुछ नहीं| जी हॉ ,भारत में यह एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है ,हालाँकि उन आदिवासियों का कोई वजूद नहीं है, इसलिए उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है|लेकिन वे हैं तो इस धरती के प्राणी , उनका भी तो कुछ हक बनता है अपनी भूमि ,अपने जंगलों पर| उन्हें भी जीने का पूरा पूरा हक़ बनता है, वैसे ही जैसे एक आम भारतीय नागरिक का |लेकिन यँहा के राजनीतिक दलो ने यह साबित कर दिया है कि वे भी अंग्रेजों से कम नहीं है |क्या थी उन आदिवासियों की गलती, जो उनसे उनके दो वक्त की रोटी छीन ली गयी, उनसे उनकी जमीन छीन ली गयी| दो -चार कागज के पन्नों से ही इन आदिवासियों की पूरी जिंदगी का फैसला कर दिया गया| इकरारनामा यह था कि ,एक साल में इन्हें मुआवजा दिया जायेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और जब इन आदिवासियों ने अपने ही हक के लिए आवाज उठाई तो उन्हें नियंत्रित करने के लिये हिंसा का सहारा लिया गया|
२००१ मे केरल के मुतांगा नाम के छोटे से गाँव के आदिवासी इसी समस्या के शिकार हुए|इन आदिवासियों के समूह को अपने ही जंगलों से निकाल दिया गया और एक साल में नयी भूमि देने का वादा किया गया ,लेकिन एक सालबाद भी इन वादों का मूल्य नही समझा गया |
इनकी भूमि छिन जाने के बाद जब लोगों के बीच भुखमरी की स्थिति उत्पन्न होने लगी तो,अगस्त २००3 में इन्हें विरोध करना पड़ा| विरोध में राज्य के मुख्यमंत्रीके आवास के सामने "शरणार्थी शिविरों की स्थापना की गई और अपने लिए जमीन और अन्य पुनर्वास उपायों के संवितरन का वादा पूरा करने के लिए केरल की सरकार को मजबूर किया गया|जब अपना वादा पूरा करने के लिए सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं कि गई तो वाइनाड़ के स्वदेशी लोगों ने आदिवासी गौत्र महासभा(AGMs) के बैनर तले जंगल में प्रवेश करने का फैसला किया गया| जंगलों में प्रवेश कर आदिवासी परिवारों द्वारा जीविका कृषि की स्थापना की गई और मुतंगा वनों पर उनके परम्परागत अधिकारों कि मांग कि गई और पंचायतीराज कि भावना के तहत स्वनियम के लिए न्यूनतम कार्यक्रम तैयार किया गया |
इन आदिवासियों का मुख्य लक्ष्य जंगलों में घूमकर अपने लिए पानी के स्रोतो और वनस्पति के संबंध मे, एक स्वावलंबी और पुनर्योजी पारिस्थितिकी तंत्र को बनायेरखना था| सरकार के अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत तो की लेकिन कोई कार्रवाही नहीं कि गई और परिणामस्वरूप इनकी झोपड़ियों को वन विभाग द्वारा आग लगवा दी गयी और जानवरो द्वारा हमला करवाया गया | इन्हे इनकी भूमि से पूरी तरह बेदखल कर दिया गया और उस पर सरकार द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया | ये कहॉ का न्याय है ?क्या उन लोगों को जीने का अधिकार नही है| उन लोगों के विद्रोहों,हड़तालो को भी राजनीतिक शक्ति के सहारे दबा दिया गया,जिसमें उनकी ऊँची आवाज दबकर रह गयी और आज तक उन्हें पूरी तरह से न्याय नही मिला|
एक और उदाहरण ले लीजिए केरल के चेंगरा गॉव का जो कि दलितों क संघर्ष का है , इन दलितों की भूमि को भी कुछ झूठे वादो के आधार पर बाहर की कुछ विदेशी कंपनियों द्वारा खरीद लिया गया |
ऐसे कितने ही उदाहरण देखने को मिलेंगे जो कि केरल कि सरकार के छिपे हुए चेहरे को उजागर करते है,जैसे की केरल के चेंगरा गांव के दलितों का संघर्ष|हमारे लिए यह एक साधारण सी बात है लेकिन उन आदिवासी और दलित लोगों के लिए यह जिंदगी का सबसे बड़ा सच है, जो कि मुख्य रूप से इस देश की समस्या है|
सभी आदिवासी लोग विभिन्न सामाजिक,राजनीतिक,आर्थिक और पारंपरिक स्तर पर एक दूसरे से भिन्न है|उसी तरह इनकी समस्याएँ भी एक दूसरे से भिन्न है| इन भिन्नताओं की तुलना पहाड़ी क्षेत्र, समतल क्षेत्र या अन्य क्षेत्रों के आदिवासियों से की जा सकती है| कुछ वन आधारित गतिविधियों पर निर्भर है तो कुछ बसे किसानो के रूप मे कार्यरत है, कुछ लोग अपना धर्म परिवर्तन कर रहे है तो कुछ लोग एक चापलूसी भरा जीवन व्यतीत कर रहे है| इन सब भिन्नताओं के बावजूद आदिवासी लोगों मे कुछ समस्याएँ समान है| जिनमे से कुछ निम्न है :-
१ गरीबी और शोषण
२ आर्थिक और तकनीकी पिछड़ापन
३ सामाजिक - सांस्कृतिक बाधाएँ
५ गैर-जनजातिय आबादी के साथ उनके आत्मसात कि समस्याये
और इन समस्याओ का समाधान तीन तरीकों से किया जा सकता है :-
१ अपरिवर्तन और पुनरूत्थानवाद
२ पृथकतावाद और संरक्षण
३ आत्मसात
अपरिवर्तन और पनरूत्थानवाद एल्विन द्वारा जबकि प्रथकतावाद हट्टन द्वारा समर्पित की गई है|
सरकार को समूहों के बीच संघवाद करना होगा|
उन समूहों की मुख्य समस्या है अशिक्षा ,जिसके अभाव में आज ये इस स्थिति के शिकार हुए है| सरकार को अपने वादों को निभाने का जिम्मा लेना चाहिए| इन लोगों के बीच एक जागरूकता लानी चाहिए, शिक्षा का प्रसार करना चाहिए|
चिकित्सालयों ,विद्यालयों , आंगड़बाड़ी केंद्रों की स्थापना करनी चाहिए| जिसके परिणामस्वरूप इनके बीच एक सकारात्मक सोच का प्रसार हो सके और ये अपनी छोटी-छोटी समस्याओ को हल निकलने के काबिल हो सके| साथ ही इन्हेँ स्वच्छता के प्रति इनकी भूमिका से भी अवगत कराया जाये| इन्हेँ एक उचित मार्गदर्शन
दिया जाये जिससे इनके बीच छिपा हुनर निखर सके | आदिवासी होना गुनाह नहीं तो इनके साथ ही ऐसा सलूक क्यू ? इन्हेँ इनकी ही भूमि से बेदखल कर दिया गया लेकिन कम से कम सरकार को अपना किया हुआ वादा पूरा तो करना चाहिए | सरकार को इनकी बारे में सोचने की आवश्यकता हैं, तभी एक समानता की भावना विकसित होगी |