निम्मो... निम्मो.... अरे कहां मर गई कमब्खत मारी..
निम्मो- जी आई अम्मी...
और निम्मो अपने सिर को दुपट्टे से ढकते हुए दौड़ती सी बैठक बाले कमरे की तरफ आती है. उनके पास मौलवी को देख उसके कदम ठिठक से जाते है अम्मी के पास बैठा 50 साल का खाने वाली निगाहों से मौलवी निम्मो को देख रहा है.
अम्मी - अब इतनी दूर क्यों ख़डी हो गई.. इधर आ
निम्मो- हम यहीं ठीक है अम्मी.. !
अम्मी- क्या तुझें पता नहीं है के आज महीने की आख़िरी जुमे रात है आज उतारा होना है
निम्मो चुप चाप अपनी नज़रे ज़मीन में गढ़ाए ख़डी रहती है. और मन ही मन सोचने लगती है आज फिर इस दरिंदे के आगोश में जाना जाना पड़ेगा.. या अल्ला आप मेरी बात क्यों नहीं सुनते... क्या तुम इसके कुकर्मो से वाकिफ नहीं हो...मैंने तो सुना था तुम सब देखते हो फिर मुझ पर हो रहा ये ज़ुल्म तुम्हे क्यों दिखाई क्यों नहीं दे रहा...
मौलवी- आपा हमने आपको कितना समझाया है के दो -चार बार के उतारे से कुछ नहीं होगा इल्म की दौलत को हक्कीकत में तब्दील करने के लिए जिन्नाद को मनाना पड़ता है हुस्न के जिस्म को उसके आगोश में परोसना होता है आपा अब आपको हम क्या बताये खुशी की बात ये है आपा ये उस जिन्नाद को निम्मो पसंद आ गई है बस इकतालीस दिन के दस्तूर के बाद दौलत ही दौलत होंगी आप लोगों की झोली में..
तभी शाहिद दूसरे कमरे से निकल कर आता है.. और निम्मो से कहता है.
शाहिद- (निम्मो से) अब जाओ भी यहां ख़डी ख़डी क्या कर रही हो क्या तुम्हे पता नहीं था के मौलवी सहाब आने वाले है..?
निम्मो- क्या आप मेरी बात सुनेंगे.?
शाहिद - मैं कुछ नहीं सुनूंगा समझी तुम,... तुम से जैसा कहा जा रहा है वैसा करो जाओ अपने कमरे में जाकर तैयारी करों. यहां ख़डी मत रहों.
निम्मो - आप मेरी बात तो सुनिए..
शाहिद- देखों मैंने कहां ना मुझें कुछ नहीं सुनना मैंने जो कह दिया सो कह दिया तुम्हे वैसा ही करना होगा समझी जाओ उतारे का वक़्त हो रहा है
निम्मो- (झुंझलाते हुए) अमीर बनने के लिए मेहनत करनी पढ़ती है शाहिद..! ऐसे इल्मों से दौलत नसीब नहीं होती बगैर मेहनत से कोई अमीर नहीं बनता.. एक बात सुन लो अगर ऐसा ही होता तो आज सब दौलत मंद होते.
शाहिद- अब बस निम्मो बहुत कह लिया तुमने अब अगर एक लफ्ज़ भी बोला तो मेरा हाथ उठ जाएगा.... मैं आख़िरी बार कह रहा हूं जाकर तैयारी कर
शाहिद का गुस्से भरा चेहरा देख कर निम्मो वेबस हो जाती है.. और शाहिद अपनी अम्मी के पास आकर बैठते हुए कहता है.
शहीद- आप क्या कह रहें थे मौलाना सहाब वो इकतालीस दिन की बात.. !
अम्मी-क्या बात है मौलवी सहाब..? क्या कोई दखल लग रही है क्या..?
मौलवी- (मौलवी अपने दोनों हाथ दुआ की तरह उठता है) या परवर दिगार इन मासूमों पर रहम फरमा.. इन नेक मेहनत काशों को दौलत से नवाज़ दे ...... पर अफ़सोस..के तेरी रेहमत इन मासूमों तक नहीं पहुंच रही.. मुआफ़ कर इन्हे मेरे मौला मुआफ़ कर...
और मौलवी अपनी दोनों आंखें बंद करके बैठ जाता है अम्मी अपने झरते हुए आंसुओं को पोछते हुए रुंधी हुई सी आवाज़ में मौलाना से बोलती है..
अम्मी- मौलवी सहाब अब आपके ही हांथो में हमारी ग़रीबी की बदनसीबी पर रहम है.. आप जो भी मशविरा फ़रमाई करेंगे हमें मंज़ूर है.
शाहिद- हां अम्मी.. (तभी उसकी नज़र फिर निम्मो पर पढ़ती है) तूं अभी तक यहीं पर ख़डी है.. तुझें कोई बात समझ नहीं आती.. शाहिद उसे मारने को खड़ा होता है तो मौलवी शहीद का हांथ पकड़ लेता है..
मौलवी- नादान ना बन शाहिद निम्मो तो नेक है इसीलिए तो जिन्नाद को निम्मो की इन अदाओं पर रहम है. इस पर अभी सिर्फ उसका ही हक़ है..निम्मो से ठीक से पेश आओ वरना उसे सम्हालना मेरे भी बस की बात ना होंगी समझे शाहिद मियां..
शाहिद इतना सुन कर शांत हो जाता है.
अम्मी- देख निम्मो हम पर रहम कर तूं इस दौलत के लिए ऐसा ही करना पड़ता है.. या तूं चुप चाप ऐसा ही कर जैसा मौलवी कहते है और नहीं तो हलाला पर अमल कर लें..
निम्मो- मतलब दौलत कमाने का सारा जिम्मा मेरे ही मत्थे आएगा..
मौलवी- आपा हलाला से क्या कोई दौलत मंद हुआ है.. कितनी दफा हलाला करवाओगी इसका.. अगर ऐसा ही है तो ठीक है कराओ हलाला..
अम्मी- यहीं तो इस नासमझ को समझा रही हूं लेकिन उसके जेहन में बात उतर कहां रही है देख निम्मो बस कुछ दिनों की ही तो बात है..तूं यकीन रख सब ठीक हो जाएगा... मौलवी भाईजान आपने तो न जानें कितनों को ऐसी दौलत से नवाज़ा है इसीलिए मुझें तो आप पर ही पूरा भरोसा है.. आप ही हमें दौलत से नवाज़ सकते हो.
मौलाना- हूं... ! शाहिद जाओ अब तुम निम्मो को लेकर अंदर जाओ .. और हां अपने गुस्से पर काबू रखना..
शाहिद- जी.. भाईजान
शाहिद निम्मो के पास जाता है.
शाहिद- चलो आओ.
निम्मो- शहीद को याचना की नज़रों से देखती है शाहिद उसे इशारे से अंदर चलने को कहता है और निम्मो का हाथ पकड़ कर खींचता हुआ सा कमरे की तरफ लें जाता है...और दोनों कमरे में चले जाते है.
अम्मी- अब बताये आप क्या कह रहें थे..?
मौलाना- देखो आपा आज तो इस उतारे का आख़िरी दिन है जो निहायती ज़रूरी है.. इस उतारे में निम्मो को थोड़ी तकलीफ होंगी लेकिन जिन्नाद की तमन्ना है के वो इसे अपने पास एकतालीस दिन तक और रखें..
अम्मी- एकतालीस दिन..?
मौलवी- हां आपा.. अब जब जिन्नाद को हमने बुला ही लिया है तो उसे हम उसकी मर्ज़ी के बगैर वापिस भेज नहीं सकते वो जो कहंगे हमें वही करना पड़ेगा उनकी अब हमें बातें माननी ही होंगी...इसके आलावा अब कोई और चारा भी नहीं है.. अगर निम्मो पहले से ही सब मान जाती तो अपना काम इन चार उतारो में ही कामयाब हो गया होता लेकिन अब वो इकतालीस दिन की फरमाइश कर रहें है..
अम्मी- इसमें हमें कोई हर्ज़ नहीं है लेकिन आप बुरा मत मानना भाई जान लोग आजकल बहुत बातें करने लगें है.. अच्छा नहीं लगता... अड़ोस पड़ोस के लोग किसी ना किसी बहाने से पूछ ही लेते है आपके बारे में
मौलाना- इसीलिए मैंने शाहिद से कहा था के निम्मो को मेरे पास एकतालीस दिनों तक के लिए भेज दो..
अम्मी- मुझें कोई एतराज़ नहीं है..लेकिन भाईजान मसला तो वही है निम्मो आपके साथ जानें को राजी हो तब ना इस बात पर तो वो ना जानें क्या क्या करेगी..
और दोनों सोच में पढ़ जाते है.. तभी अम्मी अपनी सोच जाहिर करती है.
अम्मी- क्या शाहिद से तलाक़ कहलवा दें.?
मौलाना- इससे क्या होगा..?
अम्मी- देखो शाहिद को हम समझा के उसे गुस्से में तलाक़ दिलवा देते है .. उसके बाद हम और आप निम्मो को समझा देंगे के 60 दिन के बाद उसका निकाह शाहिद से दोबारा करवा देंगे क्योकि तलाक के बाद वो अपने माइयो बाप के पास भी नहीं जाएगी उससे यहीं कहेंगे के जबतक वो आपके पास रह लेगी आसानी से दोनों काम निपट जाएंगे किसी को इनके बारे में तलाक की कानोकान खबर भी ना होंगी... खुदाना खस्ता किसी ने पूछ भी लिया तो कह देंगे के वो अभी अपने मामू के यहां गई है..
मौलाना- (सोचते हुए) ये ठीक रहेगा किसी को पता भी नहीं चलेगा..निम्मो भी मान जाएगी..
अम्मी- (खुश होते हुए) शुक्रिया भाईजान..
मौलाना- ठीक है अब अभी इशा के पहले उतारे का एक दौर कर लूं..
अम्मी- (उठते हुए) हां भाई जान आप रुको मैं देख कर आती हूं..!
मौलाना- हां थोड़ा जल्दी करो आपा वकत तेज़ी से गुज़र रहा है..
और शाहिद की अम्मी अपने बूढ़े शरीर को सम्हालते हुए शाहिद और निम्मो के पास जाती है..
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निम्मो (भाग-2)
निम्मो- देखो शाहिद आप मेरे शोहर हो के भी मेरी परेशानीयों को नहीं समझ रहें हो.. आप समझने की कोशिश क्यों नहीं करते.. मैं कैसे समझाऊ के वो मेरे साथ क्या करते है..
शाहिद- देख निम्मो मैं तेरे हांथ जोड़ता हूं के तूं मेरा भेजा खराब मत कर तुझसे जो कहा जा रहा है तूं उतना कर इसी में हम सब की भलाई है..
निम्मो- अच्छा मैं आपसे बस इतना पूछती हूं क्या जिन्नाद मौलवी को आते है.?
शाहिद- हां उन्ही पर आते है..क्या तुझें पता नहीं है..
निम्मो- क्या वो वो सब भी करते है जो एक मियां और बीबी करते है..?
शाहिद- (खिसियाते हुए) वो मुझें नहीं पता...समझी ये जिन्नाद ऐसे ही होते है.. जब मुझें इस बात पर कोई हर्ज़ नहीं है तो तूं क्यों एतराज़ कर रही है.. निकाह के बाद अब तूं मेरी अमानत है और इस अमानत का क्या करना है इसका फैसला मैं करूंगा अगर ज्यादा अपना दिमाग़ चलाया तो मैं तुझें तलाक़ दें दूंगा समझी
इतना सुनते ही निम्मो सहम सी जाती है और रुंधे हुए गले से कहती है
निम्मो - आपको खुदा का वास्ता शाहिद आप तलाक़ की बात ना करें मैं आपके हाथ जोड़ती हूं...आप जैसा कहोगे मैं करूंगी..
ये सब बातें अम्मी दरवाज़े पर ख़डी ख़डी सुन रही होती है
अम्मी- देख निम्मो तुझें क्या लग रहा है क्या तेरे शोहर का ज़मीर गवारा कर रहा है बिलकुल नहीं.. तूं देख इसके चेहरे की रौनक कैसी खफ़ा हो गई है. ये तुझे भी चाहता है और दौलत को भी अगर दौलत नहीं होंगी तो सारी ज़िन्दगी मुफलिसी में ही गुज़ारनी होंगी.. इसीलिए मौलवी जैसा कहते तुझें वैसा ही करना पड़ेगा उसी में हम सब की भलाई है.
निम्मो सिसकारियां लेते हुए ज़मीन पर बैठ जाती है..
अम्मी- चलों शाहिद मौलवी भाईजान से कहो वो अपना काम शुरू करें...इसका ये रोना तो चलता रहेगा..
शाहिद- जी अम्मी
और दोनों रूम के दरबाजे को बहार से बंद करके मौलवी के पास आते है.
अम्मी- अब आप जआइये भाई जान सारे इंतज़ामात हमने कर दिये है.
मौलवी- (उठते हुए) खुदा हाफ़िज़.. शाहीद मियां फज्र की नामज़ पर मिलते है.
तभी अम्मी और शाहिद मौलवी के हांथो को चूम कर अपनी आंखों से लगते हुए कहते है
अम्मी और शाहिद- खुदा हाफ़िज़
मौलवी- परवर दिगार रेहम कर रेहम कर..
इतना कह कर वो जाहिदा के कमरे की तरफ चला जाता है...
सुबह हो चुकी थी अज़ान होने वाली थी मौलवी सहाब को शहीद वजू करवा रहा था.. तभी अम्मी भी अपने कमरे से निकल कर आती है
अम्मी- अस्सलामअलैकुम भाई जान
मौलवी- वालैकुम सलाम..
अज़ान होने लगती है मौलवी और शाहिद वजू करके नमाज़ पढ़ने बैठ जाते अम्मी भी वजू करके अपने कमरे में नमाज़ पढ़ने चली जाती है..
अपने कमरे में निम्मो घायल हो कर बद हवास सी पड़ी हुई है उसकी हालत देख कर ऐसा लग रहा था जैसे मौलवी ने अपने जिस्म की सारी ताकत जाहिदा के जिस्म को भरपूर तरीके से रात भर रौंदा गया हो..निम्मो चुप चाप निढ़ल सी पड़ी पड़ी सोच रही थी उसे पता चल गया था के अब इस दरिंदे के चंगुल से निकल पाना इतना आसान नहीं है.. उसने अपने झूठे इल्म के नाम पर अम्मी और शाहिद को अपने वस में कर लिया था.. अब शाहिद सिर्फ उसका नाम भर का शोहर रह चुका था.. निम्मो के सारे सपनों को रौंदा जा रहा था सिर्फ इल्म की दौलत के लिए.. निम्मो पड़े पड़े रोए जा रही थी.. सिसकियाँ भरते भरते उसकी नींद कब लग गई उसे पता भी नहीं चला था...
जिस समाज में हम रहते है उस समाज में क्या क्या होता है उससे हम कितने अनभिज्ञ रहते है.. इस घने मुहल्ले के इस घर में क्या चल रहा था यहां के आस पास के लोगों को कानों कान खबर भी नहीं थी.. ऐसा अज्ञानता भरा कृत्य हमारे इस देश के हर शहर और गांव में होता रहता है जो समाज के समुदाय के दायरे कभी भी बाहर नहीं आता है और जब कभी आता भी है तबतक बहुत देर हो चुकी होती है.. इस समाज के हर धर्म में बहुत लोग ऐसे है जो धर्म का चोला ओढ़ कर अपनी वासना की तृप्ति करते है.. और ऐसे लोग अधिकतर घरों की महिलाओ को अपने विश्वास में लेकर या तो ठगते है या इस तरह के कृत्य को अंजाम देते है.. ऐसी कई निम्मो है हमारे इस समाज में जो इस तरह की दरिंदगी से गुज़र रही है...
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दोपहर हो चुकी थी निम्मो अभी भी ज़मीन पर पड़ी थी उसका शरीर का एक एक अंग टीस मार रहा था..वो काफ़ी देर से हिम्मत जुटा रही थी..उसे आज निर्णय करना ही था.. पर शरीर जो उसका साथ नहीं दे रहा था.. लेकिन निम्मो ने फिर भी हिम्मत ना हारते हुए उसी वक़्त उठने की कसम जो खा रखी थी.. क्योंकि वो अब एक पल की भी देर नहीं करना चाहती थी.. निम्मो को अब इसबात का कोई गम नहीं था के उसकी ये हालात देखने ना तो उसके पास अम्मी आई थी और ना ही शाहिद आया था..वो आज इस बात को तय कर चुकी थी अब चाहे शाहिद उसे तलाक़ ही क्यों ना देदे वो अब यहां इस घर में नहीं रुकेगी..वो अपने आपको दीवाल के सहारे उठाने की कोशिश करती है लेकिन वो नाकाम हो जाती.. उसके उठने का प्रयास दो-तीन बार में सफल हो जाता है और वो उसी दीवाल के सहारे दरवाजे तक पहुंच जाती है अध खुले दरवाज़े से बाहर को देखती है.. सामने दलहान में अम्मी और शाहिद खाना खा रहें है.. वो धीरे धीरे दीवाल को पकड़ कर उनके पास पहुँचती है.. तभी अम्मी की नज़र निम्मो पर पड़ती है..
अम्मी- लो शाहिद निम्मो भी आ गई..
शाहिद खाना खाते हुए निम्मो को देख कर बोलता है..
शाहिद- आजा आजओ निम्मो देख कितना लज़ीज़ खाना है.. मैंने तुम्हे इस लिए नहीं जगाया हमने सोचा तुम रात भर की थकी हो..
अम्मी- ऐसे ही उठी चली आई है तूं.. कमसे कम अपने ये कपड़े तो ठीक कर लेती..
निम्मो गुस्से से विफरती हुई बोलती है
निम्मो - अब मेरे इस जिस्म में बचा ही क्या है अम्मी.. उस कमीने मौलवी के सामने परोस परोस कर जो तार तार करवा दिया है तुम लोगों ने .. और तूं मुझें निकाह कर लाया था ना.. मेरा शोहर बनके मुझें दूसरे की रखेल इस लिए बना दिया के तूं इल्म की दौलत हांसिल कर सके और दौलत मंद बन सके.. हिज़ड़े से भी गया बीता है तूं...शाहिद तुझें अपना शोहर कहने पर भी अब शर्म आती है.. कमसे कम वो हीजड़े ही अच्छे है जो बेचारे दिन भर मेहनत करके कुछ तो कमा ही लेते है...तूं तो उनसे भी गया बीता निकला... और क्या कह रहा था तूं... तूं मुझें तलाक देगा दे.. तलाक दे मुझें.. बहोत तलाक़ के नाम पर मुझें दवा के रखा था ना तूं ने दे तलाक़ अगर अपने बाप की औलाद है तो.. दे तलाक..?
शाहिद तैश में आकर खड़ा हो जाता है तभी अम्मी उसका हाथ पकड़ लेती है लेकिन शाहिद अपनी अम्मी के हाथ को झिडकते हुए सीधे सीधे निम्मो का जबड़ा अपने दोनों हाथ से पकड़ लेता है
शाहिद- क्या बोल रही है तूं तुझें तलाक़ चाहिए.. नहीं दूंगा बोल क्या कर लेगी बोल.. क्या करेगी बाहर जाकर सब को बोलेगी अपने घरवालों से बोलेगी... चल जा कर दिखा
निम्मो अपने आपको छुड़ाने के लिए मशक्क्त कर रही थी उसकी आवज़ मुंह से निकल नहीं पा रही थी.. वही शाहिद की अम्मी शाहिद को छुड़ाने में जुटी थी जब शाहिद निम्मो को नहीं छोड़ता है तो शाहिद के गाल पर अम्मी जमकर एक चाटा जड़ देती है.. चाटा पड़ते ही शाहिद निम्मो को छोड़ देता है निम्मो बेहोश हो कर ज़मीन पर लुढ़क जाती है.. जल्दी से निम्मो को सम्हालती है..
अम्मी- तूं कान खोलकर सुन लें अगर इसे कुछ हो गया तो तूं दफा हो जाना इस घर से.. निम्मो ... निम्मो आंखें खोल अपनी देख मैंने शाहिद की भी पिटाई कर दी... (शाहिद को देखते हुए ) बेशर्म अब खड़ा खड़ा क्या देख रहा है जा जल्दी से हक़ीम और मौलवी भाई को बुला कर लेकर आ...
शाहिद फ़ौरन दौड़ लगा देता है अम्मी जल्दी से पास ही रखा पानी का जग उठा कर लाती है और निम्मो के मुंह पर छिड़कती है.
अम्मी- निम्मो आंखें खोल निम्मो .. मेरी प्यारी दुल्हन आंखे खोल बेटा..
चेहरे पर पानी पढ़ते ही निम्मो के शरीर में थोड़ी हलचल होती है..
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भाग-3
निम्मो को होश आ चुका था..उसके पास अम्मी, शाहिद, मौलवी और हकीम बैठे थे निम्मो उठने को हुई थी के उसे मौलवी ने उठने से रोका
मौलवी- आराम से लेटी रहो निम्मो ..तुम्हे अब और कुछ करने की ज़रूरत नहीं है...तुम मुझें बताओं क्या कहना चाहती हो.
निम्मो - मुझें आपसे कोई बात नहीं करनी.
मौलवी- ठीक है किससे करना चाहती हो शाहिद से या अम्मी से..
निम्मो रोने लगती है.. उसके आंसू झरने लगते है.. मौलवी खड़े होते हुए बोलता है
मौलवी- आपा ये आप से बात करना चाहती है हम लोग बाहर जाते है.
अम्मी-अब क्या बात करेंगी.. जो बात थी तो आप लोगों को बता दी.
मौलवी- फ़िर भी उसकी पूरी बात तो सुन लो आखिर वो कहना क्या चाहती है..?
और तीनो उठकर बाहर निकल जाते है
अम्मी- अब बता क्या कहना चाहती है..?
जाहिदा- अम्मी मुझें छोड़ दो मैं अपने अम्मी अब्बा के पास जाना चाहती हूं.
अम्मी- हाय अल्ला तूं ये क्या कह रही है.. अब ऐसा कैसे हो सकता है निम्मो.. जिन्नाद का दिल ऐसे ही हर किसी पर नहीं आता अब अगर हम मना करेंगे तो वो ना तुझें वख्शेंगे ना हमें बख्शेंगे... मैं तेरी तकलीफ समझती हूं. लेकिन अब पीछे मुड़ने का कोई रास्ता नहीं है हमारे पास बस कुछ दिन और निम्मो फिर सब ठीक हो जाएगा.
निम्मो - (गिड़ गिड़ते हुए )समझ तो आप लोग नहीं रहें हो अम्मी.. मेरा इस दौलत की चाह में बलात्कार हो रहा है अम्मी... इस तरह कोई दौलत हांसिल नहीं होती वो मौलवी नहीं है भेड़िया है.. वो आपको और शाहिद को ठग रहा है और मेरे जिस्म को नोच रहा है.. आप लोगों को बेवकूफ बना रहा है.. उसे सिर्फ मेरे जिस्म की चाह है मुझें छोड़ दो अम्मी आप मेरी अम्मी की तरह हो... कमसे कम आपतो मेरे दर्द को समझों अम्मी... (और निम्मो अम्मी का हाँथ पकड़ लेती है)
अम्मी को निम्मो की इस बात पर गुस्सा आ जाता है अम्मी निम्मो का हाथ झिडकते हुए उठती है
अम्मी- निम्मो एक बात कान खोल के सुन लें जब तूं हमारी बातनहीं समझ सकती तो मैं भी तेरी बात नहीं समझ सकती.
और अम्मी निम्मो के कमरे से बाहर निकल जाती है.. और कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर देती है..
निम्मो अंदर से सिर्फ चिल्लाती भर रह जाती है
निम्मो- अम्मी.. अम्मी.... मुझें जानें दो अम्मी... मुझें छोड़ दो अम्मी.. रहम करो अम्मी..
निम्मो रोते चीखते भर रह जाती है निम्मो की इस दशा पर कोई भी मरहम लगाने वाला नहीं था ना उसकी बात सुनने वाला था...
अम्मी बड़ बड़ाते हुए इन शाहिद, मौलवी और हकीम के पास आकर बैठ जाती है...
अम्मी- जाहिल.... गवार कहीं की उसे कोई बात समझ में ही नहीं आ रही..
ये लोग अम्मी को इस तरह झुंझलाते बड़बड़ाते हुए देख कर पूछ बैठते है.
शाहिद - अब क्या हुआ अम्मी..?
मौलवी- आपा बताओगी भी या यू ही बड़ बड़ाती रहोगी.
अम्मी- कमबख्त मारी जौनपुर जानें की ज़िद लें बैठी है.. कह रही है उसे उसके मइयो अब्बा के पास भेज दो.. जिंदिगी में कभी सुकून नसीब नहीं हो सकता कोई साथ नहीं दे सकता. अब आप ही बताये भाई जान क्या करें इसका..
कुछ देर को माहौल में शांति छा जाती है..
अम्मी- अब भाईजान आप ही बताये मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा.
मौलवी- मैं मानता हूं जब काम होने का वक़्त करीब आने लगता है तो जिन्नाद और ताकत वार होने लगता है.. अब जिन्नाद की ताकत को तो उसे सेहन करना ही पड़ेगा... अगर ऐसा है तो तकलीफ उसकी तो बड़ेगी ही हम सबकी भी बढ़ जाएगी.... इस काम को इस तरह आधा अधूरा नहीं छोड़ सकते इसके लिए कुछ और ही करना ही पड़ेगा.. हकीम सहाब आप आप मेरे साथ.. (अम्मी और शाहिद से) आप लोग अपना अपना काम करों निम्मो को मैं देख लेता हूं.. और दोनों उठते है अम्मी और शाहिद से थोड़ा दूर को जाकर कुछ आपस में बातें करते है.. और दोनों निम्मो के कमरे में चले जाते है और दरबाजा अंदर से बंद कर लेते है.. दरबाजा बंद होने के बाद अंदर से हल्की हल्की सी आवाज़े आती है... जिस के चलते अम्मी उठ कर अपने कमरे में चली जाती है और अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लेती है.. कुछ देर शाहिद बैठा रहता है निम्मो के कमरे से विरोधाभास की आवाज़े लगातार आ रही है जिनसे शाहिद सुनते सुनते परेशान सा हो रहा है उस आवाज़ को ना सुनने के लिए नज़र अंदाज़ करता है लेकिन जब नहीं रहा जाता तो वो उठ कर अम्मी के कमरे के दरबाजे के पास जाता है और अम्मी से बोलता है.
शाहिद- अम्मी मैं थोड़ा बाहर घूम कर आता हूं.
अम्मी- ठीक है.. ज्यादा वक्त मत लगाना.. और सुन ताला बहार से लगा कर चाबी अपने पास ही रखना..
शाहिद- जी.. अम्मी मैं चौराहे तक ही जा रहा हूं एकाध घंटे से आता हूं ....
इतना कह कर शाहिद भी चला जाता है...
काफ़ी देर हो चुकी थी लग भग एक डेढ़ घंटे हो चुके थे निम्मो की आवाज़ भी आना अब लगभग बंद हो चुकी थी अम्मी भी अपने कमरे से बहार आ कर मौलवी और हकीम का इंतज़ार कर रही थी इसी बीच अम्मी कई बार निम्मो के कमरे के दरवाज़े पर कान लगा कर सुन सुनने की कोशिश करके आ चुकी थी अंदर से बस धीरे धीरे कुछ बुद बुदबुदाने की आवाज़े भर आती थी.. लेकिन अंदर आने वाली आवाजे साफ सुनाई देने के कारण अम्मी समझ नहीं पा रही थी... वो यहीं सोच कर वापस आ जाती थी के उतरा चल रहा है अगर उसने कोई भी आहट की तो उतारे में खलल पड़ जाएगा यहीं सोच कर वो लौट कर अपनी जगह पर वापस आ बैठ जाती थी.. लेकिन अम्मी का दिमाग़ इस और से वाकिफ़ नहीं हो पा रहा था के रात को होने वाला अब ये उतरा दिन में कैसे हो रहा है दूसरा ये दो पराये मर्द बंद कमरे में निम्मो के साथ क्या कर रहें है.. अम्मी तो बस यहीं सोच रही थी के दौलत के रास्ते खुल रहें है... तभी निम्मो के कमरे का दरवाजा खुलता हुआ देख कर अम्मी के चेहरे पर थोड़ा सुकून सा दिखाई देने लगता है. वो दोनों अम्मी के पास आकर बैठ जाते है.
मौलवी- आपा निम्मो तो मानने को राज़ी बिलकुल नहीं थी इसीलिए हकीम सहाब ने उसे बेहोशी का इंग्जेक्सोन दे दिया है.. क्यों हकीम सहाब नोम्मो अभी एकाध घंटा तो बेहोश रहेंगी ना..?
हकीम-हां लगभग दो घंटे मान लो मौलवी सहाब.
अम्मी- निम्मो को बेहोश... क्यों..?
मौलवी- फिर क्या करते आपा अपना तमाशा बनवा लेते...आपने देखा नहीं वो कैसी घायल शेरनी सी हो रही थी वो.. खैर आपा आप फ़िक्र मत करों मैं सब सम्हाल लूंगा.. जो अभी इकतालीस दिन की आयते रह गई है.. उसके लिए निम्मो को मैं अपने साथ यहां से 20 किलोमीटर दूर जो हटिया गांव है वहां लें जाऊंगा वहां हक़ीम सहाब का फ़ार्म हाउस है अब आगे की सारी आयते वही पूरी होंगी..
अम्मी- ठीक है भाई जान हमें कोई एतराज़ नहीं बस ये काम पूरा करवा दो..
मौलवी- हां हां आपा.. ये सब उसी काम के लिए ही तो हो रहा है.
तभी शाहिद भी आ जाता है.
शाहिद- अब क्या हुआ मौलवी सहाब..?
मौलवी गुस्से से शाहिद को देखता है तभी हकीम बोल पड़ता है
हकीम- मौलवी सहाब मैं वेन लें आता हूं
मौलवी- (कुछ सोचते हुए) लेकिन हकीम सहाब अभी निम्मो को हम कैसे लें जा सकते है रात तक तो इंतज़ार करना ही पड़ेगा किसी ने पूछ लिया तो सब चौपट हो जाएगा..
शाहिद- एक रास्ता है मौलवी सहाब पीछे वाली गली से निकाल कर लें जाइए..
अम्मी- शाहिद बिलकुल वज़ह फरमा रहा है भाईजान आप ऐसा ही करो पीछे वाली गली से आप निम्मो को लेकर चले जाओ जाओ..
मौलवी- कोई खतरा तो नहीं होगा ना..?
अम्मी- अरे भाई जान बिलकुल नहीं है होगा आप चाहो तो एक नज़र देख लो..
मौलवी शाहिद की बात पर भरोशा करने के लिए पीछे के रास्ते को देखने के लिए उठता है साथ में शाहिद और हकीम भी जाते है शाहिद दौड़ कर पीछे के गेट की चाबी लेकर आता है और ताला खोल कर मौलवी को पीछे का रास्ता दिखता है जो वाकई में बिलकुल सून सान है मौलवी शाहिद से पूछता है.
मौलवी- यहां से कोई भी नहीं आता जाता..?
शाहिद- बिलकुल नहीं मौलवी सहाब.
मौलवी- क्यों हकीम सहाब रास्ता तो मेहफ़ूज़ लग रहा है..?
हकीम- हां मौलवी सहाब मुझें नहीं लगता यहां से जानें में हमें कोई परेशानी होंगी एक दम मेहफ़ूज़ रास्ता जान पड़ रहा है..
मौलवी- तो फिर हमें अब इंतेज़ार नहीं करना चाहिए आप जल्दी से गाड़ी लें आईये जब तक मैं निम्मो को ले चलने की तैयारी करवा लेता हूं.
हकीम शाहिद से
हकीम- शाहिद तुम मेरे साथ चलो
मौलवी- शाहिद क्यों..?
हकीम- अब इस रास्ते पर कहां से आना है मैं वाकिफ थोड़े ही हूं..
मौलवी- ठीक है.. लेकिन ज्यादा वक्त मत लगाना..
हकीम- आप तो तैयारी करके रखो हम अभी आते है..
शाहिद दरवाजा बंद करता है है और दोनों वहां से चले जाते है...
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कंटीन्यू पार्ट -4
अपनी नाकामियों का कसुरबार अपनों को ही बना देना कहां तक सही है.. आज कल नहीं ये तो ज़माने से चला आ रहा है जिस तरह शाहिद ने और उसकी अम्मी ने अपनी खुद की नाकामी का कसूरवार निम्मो को बना दिया था हालांकि इस समाज में आज भी बहुत से लोग ऐसे है जो ऐसे इल्म के चक्कर अपनों को या फिर किसी और की बली दें देते हैं..हमारे इस समाज में ये ज़रूरी भी नहीं कि निम्मो जैसी लड़कियों को ऐसा भोगना पड़ता है.. वो कबिता, परमिंदर या रोज़ी भी होती है.. यदि शिक्षा का आभाव हो तो इंसान की मानसिकता ऐसे ही कुकर्मो के इर्द गिर्द ही घूमते रहते है.. ऐसे ही हालात शाहिद के थे.. लेकिन तकदीर से उसका निकाह अच्छी और खूबसूरत लड़की निम्मो से हो जानें के कारण बुरी नज़र मौलवी की निम्मो पर पड़ गई थी..वो किसी भी तरीके से निम्मो को भोगना चाहता था वो जानता था शाहिद निकम्मा है.. जिसके निकम्मे पन को दूर कराने के लिए शाहिद की अम्मी ने मौलवी से उसे कई तावीज़ बंधवा रखें थे लेकिन ये बात तो सही है ना कुछ करने वालों के लिए तो खुदा भी कुछ नहीं कर सकता और वही हाल शाहिद का था जिसके चलते शाहिद और अम्मी जहन्नुम के दल दल में फंसते जा रहें थे.. और मौलवी अपने ढोंग के चलते मौलवी उन्हें अच्छे से निचोड़े जा रहा था.. जिसके चलते बेगुनाह निम्मो की ज़िन्दगी...मौत की दहलीज़ पर आ ख़डी हुई थी..
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फार्म हाउस पर आए निम्मो को पूरे एक हफ्ते गुज़र चुके थे इन एक हफ्तों में निम्मो के जिस्म को मौलवी ने ही नहीं और भी कई लोगों ने भी चखा था.. इस फार्म हाउस पर कोई नहीं रहता था चारों तरफ खेत ही खेत थे और फसल ख़डी हुई थी.. बंद कमरे में निम्मो एक चार पाई पर लेटी थी कमरे का दरवाजा लोहे का था जिस पर बाहर से ताला लगा रहता था बाहर चारों तरफ सन्नाटा पसरा रहता था मौलवी अपने समय के मुताबिक आया जाया करता थाजिसके आने का कोई समय तय नहीं होता था...लेकिन निम्मो को यकीन था के एक ना एक रोज वो मौलवी के चंगुल से ज़रूर बाहर निकलेगी.. जब कोई नहीं होता तो निम्मो रोज बहार जानें का रास्ता तलाशतीं थी इसीलिए शायद आज निम्मो पर खुदा मेहरवान हो गया था.. उसके बाजू वाले कमरे की खिड़की नजाने कैसे खुली छूट गई थी जिसकी रौशनी कमरे में उजाला कर रही थी निम्मो के उस तरफ देखते ही उसके शरीर में जान सी आ गई निम्मो ने बगैर वक्त गवाए उस आती हुई रौशनी की तरफ दौड़ी थी उसने जाकर देखा तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा.. उसने खिड़की के पास आ कर खिड़की को पूरा खोला था बाहर का नज़ारा देख कर निम्मो का चेहरा खिल उठा था.. उसने खिड़की के बाहर झांक कर देखा तो सामने खेत में ख़डी फसल ही नज़र आ रही थी लेकिन सामने दूर को सड़क सड़क भी दिखाई दें रही थी.. निम्मो बिना समय गवाए खिड़की से कूंद कर बाहर आ गई थी.. और उसने नंगे पैर ही सड़क की तरफ दौड़ लगा दी थी.. ख़डी फसलों के बीच से गुज़रती हुई निम्मो सीधे सड़क पर आ ख़डी हुई थे इस बीच उसने एक बार भी पीछे पलट के नहीं देखा था.. उसकी सांसे तेज धोकनी की तरह चल रही थी.. वो सड़क लंबी सून सान सड़क को देख भी रही थी और अपनी सांसो को अपने बस में करने की कोशिश भी कर रही थी तभी पीछे से एक बंद लोडिंग ऑटो आ कर रुका था.. तभी निम्मो ने पीछे पलट कर देखा और वो बेहोश होकर सड़क पर ही गिर गई थी.. निम्मो को गिरता देख उमंग जल्दी से ऑटो के बहार आता है और सड़क पर पड़ी निम्मो को देखता है..
उमंग- लगता है किसी मुसीबत में है बेचारी.. इसकी हालत कुछ और ही बया कर रही है..!
उमंग जल्दी से पानी की बोतल निकल कर ऑटो से लाता है और निम्मो के चेहरे पर पानी छिड़कता है निम्मो होश में आती है उमंग को आंखें फाड़ कर देखती है और सिसक सिसक कर रोते हुए बोलती है
निम्मो- भाई जान मुझें बचा लों
उमंग- लो पहले पानी पीलो बहन कुछ नहीं होगा तुम्हे मैं हूं तुम्हारे साथ लो पानी पियो बहन..
और उमंग निम्मो को बोतल से पानी पिलाता है तभी उसी नज़र निम्मो के हांथो और चेहरे पर पढ़ती है जिसे देख कर वो समझ जाता है कि निम्मो के साथ बहुत ही बुरा हुआ है.. उसकी आंखों में आंसू आ जाते है..
निम्मो- भाई मुझें कुछ खिला दो बहुत भूख लगी है
उमंग- आओ बहन ऑटो में बैठो (उमंग उसका हाथ पकड़ता है )
निम्मो- (डरती हुए कहती है ) कहीं तुम भी तो उन लोगे से तो नहीं मिले हो...?
उमंग- नहीं बहन मैं किसी से नहीं मिला हूं मेरा विश्वास करो.. तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगा आओ जल्दी से ऑटो में बैठो अगर किसी ने देख लिया तो दिक्कत हो जाएगी...
निम्मो उमंग की बात पर विश्वास करते हुए जल्दी से उठती है अपने कपड़े सम्हालती है और उमंग उसे ऑटो के दूसरी तरफ से गेट खोल कर बैठता है और खुद भी जल्दी से घूम कर आता है और ऑटो में बैठता है दरवाजा बंद करके ऑटो स्टार्ड करता है और सरपट सड़क पर दौड़ा देता है..
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सुबह हो चली थी निम्मो उमंग के साथ उसके घर आ चुकी थी.. निम्मो अपने ऊपर बीते इन हालातों की दस्ता सुनते सुनाते रोए जा रही थी उमंग और विनय की आंखों में भी आंसुओं के सेलाब उमड़ आए थे.. तभी रोहन ट्रे में नास्ता और चाय बना कर लें आता है..
रोहन- ढेनटेडंग.. ये लो जी पेश है गरमा गर्म नास्ता और चाय..
और नास्ते से भरी हुई ट्रे सब के बीचों बीच रख देता है और एक पोहे से भरी प्लेट निम्मो को देता है.
रोहन- लो जी बाजी.. गरमा गर्म पोहा..
निम्मो उन तीनों के चेहरे देखती है.. उसकी सिसकियाँ और तेज हो जाती है.
रोहन- ओजी आप तो अब भी रोए जा रही है..
देखों बाजी आपके ये तिन्नो छोटे प्रा आपके लिए जान दें देंगे कसम है बाहेगुरु जी की अब एक आंसू भी आपकी आंखों से टपका तो.. अब तूं उन पापियों को रुलायेगी समझ गई आप.
उमंग- बहन भले हमारा तुम्हारा खून का रिस्ता नहीं है पर एक इंसानियत का तो रिस्ता है..
निम्मो सिर्फ तीनों को देखें ही जा रही थी और सोच रही थी के सही में आज भी दुनियां में खुदा है जो सच्चे लोगों की मदद किसी ना किसी भेष में करता है.
विनय- आपा यहां इस शहर में आप बिलकुल सेफ हो.. इतना मत डरो हम तीनों भाई आपकी लड़ाई में मरते दम तक साथ देंगे आपको अपनी बहन माना है.. चलो अब जल्दी से नास्ता कर लो उसके बाद हमें बकील के पास भी जाना है..
और चारों बातें करते करते चाय नास्ता करने लगते है..
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बकील के मशविरे के बाद निम्मो की ससुराल वाले शहर में शाहिद, अम्मी, मौलवी और हक़ीम के खिलाफ महिला थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है पुलिस जब अपनी कार्य वही करती है तो उसके हाथ सिर्फ अम्मी और शाहिद ही लगते है बाकी सब न जानें कहां गायब हो जाते है.. पुलिस मौलवी और हकीम को मुख्य आरोपी बनती है लेकिन कानून के हाथों से आरोपी फरार ही रहते है.. काफ़ी समय गुज़र जानें के बाद भी आरोपी कानून की गिरफ्त से बाहर ही रहते है.. निम्मो न्याय के लिए काफ़ी भटकती है इंतज़ार करती है लेकिन लचर सिस्टम के चलते उसे आज भी न्याय नहीं मिलता.. क्योंकि निम्मो के साथ जो हुआ उसके पास ना तो गवाह मिलते है और नाही कोई सबूत होने के कारण पुलिस निम्मो के केस की फाइल बंद कर दी जाती है..
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दो साल बाद.. निम्मो का घर जौनपुर
निम्मो उमंग के साथ जौनपुर आती है उमंग घर के बहार बैठक वाले रूम में अकेला ही बैठा है..
निम्मो अपने अम्मी अब्बा बड़े भाई और भाभी के साथ बैठी है. पिछले तीन सालों में उसके साथ क्या क्या हुआ वो सब उन्हें एक एक बात बतलाती है. जिसे सुनकर सब चुप है. तभी निम्मो की भाभी कहती है
भाभी- तुम क्या सोचती हो निम्मो तुम्हारी इस झूठी दास्तां को सूनकर हम तुम्हारी बातों में आ जाएंगे..?
निम्मो- ये आप क्या कह रही है..?
अब्बा- रुखसाना वजह कह रही है निम्मो.. अगर ऐसा था तो तुम्हे उसी वक़्त यहां आ कर बताना था..
निम्मो- अब्बू मैंने कहा ना उन लोगों ने मुझें किस कदर कैद में रखा था..!
सलीम- हम मानते है शाहिद निकम्मा था.. लेकिन इल्म की दौलत को हम झुटला भी तो नहीं सकते.. आज तुम दूसरे धर्मों के लोगों के साथ क्या मिलने जुलने लगी तुम्हारा दिमाग ही खराब हो गया अपने धर्म में सब बातें झूठी लगने लगी है तुम्हे.
निम्मो- ओह.. ! शायद मैं अपने ही लोगों को कुछ ज्यादा ही अपना समझ बैठी थी. मुझें नहीं पता था के मेरे अपने भी इस तरह की बातों पर यकीन करते है.. पर हां मैं बिलकुल नहीं करती.. अच्छा खुदा हाफ़िज़.
सब चुप रहते है निम्मो अपनी अम्मी से
निम्मो- अम्मी आप भी कुछ नहीं कहेंगी..
अम्मी- आजके बाद इस देहलीज़ पर कदम मत रखना बस इतना ही कहूंगी.
निम्मो के आंखों में आंसू झलक आते है वो अपना पर्स उठाती है और चुपचाप वहां से निकल कर उमंग के पास आती है.
निम्मो-चलो भाई.. !
उमंग निम्मो का चेहरा देखता है.. उठता है और साथ चल देता है.. निम्मो अपने घर की गलियों से गुजरते हुए मोहल्ले से बाहर निकल आती है और एकदम रुक कर अपने मुहल्ले की गलियों को पलट कर देखती है उसे अपना बचपन याद आ जाता है छोटी सी निम्मो उस गली में अपनी सहेलियों के साथ लंगड़ी खेल रही है.. तभी वो अपने अब्बू को आता देख उनकी तरफ दौड़ कर चिल्लाते हुए जाती है अब्बू.. अब्बू. कह कर उनकी गोदी में चढ़ जाती है अब्बू भी निम्मो को अपने दोनों हाथों से उसे उठा कर सीने से भींच लेते है..
उमंग- बाजी चलें...?
उमंग की आवाज सुनते ही नोम्मो का ख्याल टूट जाता है वो उमंग को आंसुओं भरी आंखों से देखती है. और मुस्कुराते थे हुए कहती है
निम्मो- चलो भाई
और दोनों वहां से चले जाते है... और भीड़ में ओझल हो जाते है..
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