टियारा की इस बेरहम ख़बर ने मुझे अंदर तक हिला के रख दिया। हां चौका देने वाली इस ख़बर से मेरे आंखों में आंसू नहीं थे, पर दिल हद से ज्यादा मायूस था। आंखों में आंसू नहीं पर दिल की मायूसी खुद पर भारी पड़ती जा रही थी। टियारा से की गई वह अधूरी मुलाकात हर बार बड़ी बारीकी से मेरे ख्यालों में अपनी दस्तक दे रही थी।
हां मुझे अब कुछ समझ आ रहा है....
कि टियारा ने अपने पापा की सीधी सी बात पर इतना उल्टा इतना अटपटा सा ज़वाब क्यों दिया।
सबसे मुख्य बात टियारा उस गुलाबी कागज़ में जो दो पंक्ति लिख गई थी, मैं कितनी बेवकूफ़ हूं कि, कातिब होकर भी उस पंक्ति की गहराई को ना समझ पाई।
इतना ही नहीं मैंने तो इस पंक्ति को व्यर्थ और कुछ अटपटा सा टुकड़ा भी ठहरा दिया। पर अब मुझे ख्याल आ रहा है कि, उस टुकड़े में कितनी गहराई छुपी हुई थी। जिस गहराई को मैं एक कातिब होकर ना आंक पाई। और टियारा कातीब ना हो कर भी जीवन के अनुभव मात्र से इतनी जटिल पंक्ति लिख गई।
"जिंदगी मुझे मिलाए ना मिलाएं पर जिंदगी रही तो,
मैं खुद तुमसे मिलने आऊंगी।।"
क्या ?? 'पर जिंदगी रही तो मैं खुद तुमसे मिलने आऊंगी'..... इस पंक्ति में तो साफ़ झलक रहा है कि, टियारा अपनी मौत से बहुत हद तक वाक़िफ थी। भला ऐसा कैसे हो सकता है ?
आत्महत्या.....
नहीं , नहीं... हां टियारा कुछ परेशान थी। परिवार में कुछ गलतफहमियां थी। पर इतनी गलतफहमी तो हर किसी के परिवार में होती है। वैसे भी जिस पापा और दूसरी मां के लिए उसके अन्दर कोई एहसास बाकी है ही नहीं, फ़िर उनकी बातों को दिल पर लेना मुझे तो लाज़मी नहीं लगता। और हां मैंने तो इतना जरूर आंका था कि टियारा बहुत हद तक अपनी जिंदगी जीने के लिए आज़ाद थी। कोई उसे और उसके ख्यालों को बांध नहीं सकता। फ़िर क्या बात हो सकती है....
कोई जानलेवा बीमारी....
क्या टियारा को कोई बीमारी थी....?
जिसकी वजह से वह ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह सकती और इस ख़बर से वह बखूबी वाक़िफ थी। लेकिन पता नहीं क्यों मुझे तो नहीं लगता कि कुछ ऐसी बात रही होगी।
मेरे ज़ेहन में इस तरह के न जाने कितने सवाल उमड़ रहे थे जो मेरे दिल की मायूसी को कहीं दबाकर ज़वाब पाने की जल्दी में थे।
हां किसी दूसरे के लिए होगी मेरी और टियारा की एक रात कीअधूरी मुलाकात और दो दिन की दोस्ती पर मेरे ज़ेहन में सिर्फ़ इतना था कि टियारा और मेरे जज़्बात, एहसास और रिश्ते बहुत पाक थे। और अब चाहे जो कुछ भी हो चाहे टियारा इस दुनिया में ना रही पर मेरी दोस्ती आज भी मेरे ज़ेहन में, एहसासों में ज़िंदा है, और हमेशा रहेगी। मैं टियारा की मौत की तह तक जाने को तैयार थी। आख़िर चेहरे पर गड़े मेरे इन निगाहों ने सब कुछ ठीक देखा तो दिल को आख़िर क्या खल रहा था।
मुझे फ़िलहाल ही ख्याल आया कि टियारा की कुछ दोस्तों से अगर मेरी संपर्क हो जाए, तो मुझे बहुत कुछ पता चल सकता है। मैंने फेसबुक पर दो चार दोस्तों को फ्रेंड रिक्वेस्ट डाल दिया और इंतज़ार था, किसी एक भी दोस्त का रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करने और मैसेज करने का। कुछ देर बाद टियारा की एक दोस्त निहारिका मेरी फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट की, मैंने अपना परिचय देते हुए।
अपने और टियारा की इस दो पल के पाक दास्तां को सुना दिया। निहारिका ने बताया कि,
12वीं पास करने के बाद निहारिका को पढ़ाई के सिलसिले में इंदौर से बाहर जाना पड़ा, तब से उसकी और टियारा की बात होती है। पर हाल-चाल से कुछ ज्यादा नहीं। तो उसे कुछ ख़ास पता नहीं है, पर हां निहारिका और टियारा की एक और करीबी दोस्त रिया उसको बहुत कुछ पता होगा टियारा के बारे में।
मैंने निहारिका से गुजारिश की..
कि बस जैसे भी मेरी रिया से बात करा दो। निहारिका ने रिया का व्हाट्सएप नंबर दिया और मुझे कहा कि कांटेक्ट कर लेना। मैंने पूछा अनजान समझ कर मुझे नजरअंदाज ना कर दे...
"ऐसा नहीं है तुम एक काम करो अभी तो मैं व्यस्त हूं। थोड़ी देर बाद मैं रिया से बात कर लूंगी, तुम शाम 4:00 बजे के बाद उससे कांटेक्ट करना। बेशक वह तुमसे बात करेगी।" ..निहारिका का प्रतिउत्तर मिला
मैंने निहारिका को शुक्रिया अदा किया।
और 4:00 बजने का इंतजार करने लगी, जैसे ही 4:00 बजा मैंने रिया को व्हाट्सएप पर मैसेज किया। रिया और मैंने एक दूसरे को अपना परिचय दिया, फिर जैसे ही मैंने अपने और टियारा की बारे में बताने की कोशिश की, रिया ने कहा हां मुझे पता है सब निहारिका ने बता दिया है। मैं बहुत आश्चर्यचकित हूं कि आजकल लोग अर्शे एक साथ गुजार देते हैं और एक दूसरे की मदद में भी काम नहीं आते। ताज़्जुब है दो दिन की दोस्ती में आपने टियारा के जज्बातों को ही नहीं उसकी पिछली बातों को भी जानना चाहा है। सच कहूं तो मुझे इस बात का पूरा पूरा भरोसा नहीं कि आप टियारा के बारे में सारी सूचनाएं किसी सकारात्मक नजरिए से लेना चाह रही हैं। पर मैं फ़िर भी बताने को तैयार हूं क्योंकि वैसे भी वह दुनिया में नहीं हैं।
आंचल टियारा बहुत ही बहादुर नेक दिल की बहुत ही अच्छी लड़की थी। दिल होने का यह मतलब नहीं कि वह बहुत ही कोमल और कमजोर दिल की हो, बहुत बहादुर थी। उसकी ज़िंदगी में न जाने कितने रिश्तो की कमी थी। फ़िर भी अपना गम कहीं दबाकर खुद हंसती और सबको हंसाती थी। और सही मायने में ज़िंदगी जीना सिखाती थी। और उसकी एक बात तो पूरी कॉलेज में प्रसिद्ध थी। वह हमेशा कहती थी।
"ये जीवन एक मीठी प्यास है, बस इस मिठास को जरूरत है तो महसूस करने की.... हसरत भरी निगाहों से एक बार इस जीवन को पीकर देखो फ़िर समझ आएगी कितनी मीठी है।"
उसने शुरू से हर तरह के संघर्षों से सामना किया। वह फेल भी हो जाती थी तो उसे गम नहीं होता था। अब तक हमने नेक दिल टियारा को ही पहचाना था। पर इधर कुछ छः महीने पहले हमारी टियारा से उसके हिमांचल जाने से पहले मुलाकात हुई।
"हिमांचल... टियारा हिमाचल क्यों गई थी ?"... मैंने रिया से पूछा
हां उसने अपनी आखरी मैसेज में मुझसे कहा भी था कि हिमांचल से मेरा पुराना राब्ता है। पर उस उस वक्त मुझे कुछ समझ नहीं आया।
"मुझे इसकी कुछ ख़ास वजह तो पता नहीं। पर इतना बता सकती हूं कुछ बात जरूर थी। इसलिए वह हिमांचल गई थी। हिमांचल से आने के बाद मुझे पहले जैसी टियारा बिल्कुल नहीं लगी। उसकी आंखों में मैंने मायूसी भरपूर देखी थी। सच कहूं तो बहुत हद तक वह पहले जैसी नहीं रह गई थी। मैंने उसकी मायूसी का सबब कई दफा पूछा पर उसने बताया नहीं। लेकिन इस बार वह दिल्ली जाने से पहले मेरी उससे आख़री मुलाकात हुई थी। बहुत मायूस थी। जाने कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही थी। मैंने बहुत जबरदस्ती कर के उससे पूछा तो मेरे हाथ में एक डायरी पकड़ा गई। कह गई कि कुछ सवालों के ज़वाब एक वक्त बाद जुबान से बयां करना बहुत मुश्किल हो जाता है। बेहतर है तहरीरों से समझा देना। अगर वक्त मिले तो इस डायरी को पढ़ लेना सब समझ आ जाएगा। ना मिले तो भी कोई बात नहीं।"
"रिया क्या वाह डायरी अभी है आपके पास ?"...मैंने उत्सुकता से पूछा
"हां कुछ एक हफ्ते ही तो हुए मेरे पास ही है। लेकिन मसरूफियत ने इतना फुरसत नहीं दिया कि मैं पढ़ सकूं। लेकिन पढ़ने की हसरत जरूर है, अब कब
पढ़ पाऊंगी उसका पता नहीं....।
बस यही मेरी आखिरी मुलाकात रही थी। उसके बाद मुझसे उसकी कोई बात नहीं हुई और दिल्ली पहुंच जाने के बाद जब मैंने उसे कॉल किया तो मुझे टियारा के ना होने की ख़बर लगी। बस मुझे तो इतना ही पता है।"
"रिया यदि आप बुरा ना मानना । क्या टियारा की लिखी वह डायरी मुझे दे सकती हो ?
प्लीज इंकार मत करना, शायद आप मेरी जज्बातो को ना समझ पाओ और जायज़ भी है। लेकिन फ़िर भी कहना चाहती हूं.... समझने की कोशिश करो, क्या वह डायरी मुझे दे सकती हो आप ? "....मुझे पूरी उम्मीद थी कि वह डायरी मेरे दोस्ती के इस पहेली को सुलझाने में मेरी अच्छी मदद करेगी। इसलिए विनती कर के मैंने रिया को इस डायरी के लिए मनाया।
"मुझे कोई एतराज़ नहीं आप बेशक ले जा सकती हो लेकिन हां कुछ समय बाद वापस कर देना टियारा ने कुछ सोच कर दिया होगा। मुझे भी पढ़ना चाहिए।"..रिया डायरी देने के लिए मान गई थी।
" हां हां बिल्कुल मैं बहुत कम समय में वापस कर दूंगी।" ..मैंने बात ही बात में रिया को डायरी वापसी के विषय को लेकर निफिक्र रहने को कहा।
"आँचल,आप अपना पता बता दो मैं डायरी कोरियर कर दूंगी।"
"अभी तो मैं एक यात्रा के दौरान हूं तो कोई स्थित पता नहीं। और यात्रा से लौटने में मुझे काफ़ी देर होगी। तब तक का मैं इंतजार नहीं कर सकती। वैसे आप फिलहाल कहां हो....?"
"इंदौर" ...रिया ने अपना स्थाई पता बताया
"मैं इंदौर आऊ तो क्या आप मुझसे मिलकर डायरी दे सकती हैं...."
"हां बिल्कुल भला मुझे क्यों एतराज़ होगी।"
बीच यात्रा से बिना कोई योजना के मेरा इंदौर जाना मुश्किल था। पर इंतज़ार.... इंदौर जाने से भी मुश्किल। मैंने ठान लिया की इंदौर जाऊंगी। मैं अपने बीच यात्रा से रुख मोड़ इंदौर के लिए निकल पड़ी। इंदौर पहुंचकर मैंने रिया को संपर्क किया और वह भी बेहिचक मिलने हमसे रेस्टोरेंट पहुंची। मुझे रिया से मिलकर अच्छा लगा।
अब टियारा कि वह डायरी लेकर, मैं वापस अपने यात्रा के लिए निकल पड़ी। पुनः अपनी यात्रा भली-भांति प्रारंभ करके मैंने अपने बैग से उस डायरी को निकाला। हालांकि, टियारा की नामौजूदगी हमें अब भी बेतहाशा खल रही थी। पर मेरे अंदर उमड़ रहे हजारों सवालों के ज़वाब ने और डायरी को पढ़ने की बेसब्री ने मेरी खलन को ज़रा दूर कर मुझे संभलने में काफ़ी मदद दी। मैंने डायरी को खोल कर टियारा कि दास्तां को पढ़ना का आगाज़ किया।