"टियारा की डायरी"
(एहसासों की दास्तां)
आधुनिकता में लिप्त सजावटी जिंदगी में कुछ इस कदर मशरूफ हो गई हूं कि अपनी तन्हाई का ख्याल और प्रकृति की असल खूबसूरती की ख़बर तक नहीं है। मेरे दोस्त मेरी दुनिया है। यू कह दूं तो मेरी तन्हा सी ज़िंदगी की महफ़िल है। उनके पास, उनके साथ होती हूं, तो कुछ देर के लिए ही सही पर ज़िंदगी से मुझे कोई गिला नहीं रहता। खुश रहती हूं
पर वह हिंदी के किसी मशहूर साहित्यकार ने कहा है ना....
"कहने भर को रिश्ते नाते हैं,
वरना कोई सगा नहीं होता
अकेले आए हैं जनाब!
अकेले चले जाएंगे
साथ कोई काफ़िला नहीं होता।"
तो हर पल दोस्तो का मेरे साथ रह पाना मुमकिन नहीं है। मेरे दर्द भरे ज़िन्दगी के हमदर्द मेरे दोस्त अपने भविष्य की तैयारी में बेहद मशगूल हैं। अब मेरी डाक्टरी की पढ़ाई पूरी हो चुकी है, तीन महीने बाद ट्रेनिंग है। हाल ही में मेरी एक करीबी दोस्त ज़िया की शादी हुई जो हनीमून के दौरान रोहतांग और कुल्लू मनाली की शैर कर आई और वहां की प्राकृतिक खूबसूरती व वादियों की सीफतें बयां करते नहीं थकती। अब ट्रेनिंग से पहले तीन महीने की इन छुट्टियों को रोहतांग और मनाली की शैर में गुजा़रना चाहती हूं इसलिए हिमाचल यात्रा की शुरुआत कर रही हूं। यात्रा कैसी रहेगी कुछ ख़ास ख़बर तो नहीं पर जाने क्यों अंतर्मन से ऐसी आवाज़ आ रही है कि यह यात्रा मेरे जीवन में एक नया मोड़ लेकर आएगी। अब रब जाने यह मेरी कल्पना है या किसी आग़ाज़ की आवाज़।
ख़ैर जो भी हो यात्रा के दौरान यह मेरा दूसरा दिन और पहली सुबह थी पर यह सुबह मेरे यात्रा की ही पहली सुबह नहीं अपितु मेरी ज़िंदगी की पहली सुबह थी,जो ज़िंदगी में पहली बार भोर की प्राकृतिक खूबसूरती से रूबरू करा मुझे मंत्रमुग्ध कर देने वाली अनुभूति प्रदान कर रही थी। आज तक मैंने सुहानी शाम की खूबसूरती का वर्णन सुना भी था और कई दफा देखा भी पर भोर की इस प्राकृतिक नज़ारे की सीफते सिर्फ़ सुनी थी।
अब क्या है ना..... आधुनिकता में लिप्त इस मसरूफ ज़िंदगी ने ना कभी भोर में जगना सिखाया, ना हीं इस सुबह से मुलाकात हुई।
आज जब यात्रा के दौरान जगी हूं, तो ख़बर हुई कि शाम से कहीं ज्यादा हसीं यह सुबह होती है। ईयर फोन लगाकर मैं हमेशा की तरह आज भी सुबह गाने सुन रही थी। कानों में गुनगुनाता गीत व नज़रों के सामने इतना खूबसूरत नज़ारा वाकई बड़ा अज़ीज़ था। सच कहूं तो, उस वक्त मेरे अंदर की तन्हाई कहीं गुम सी हो गई थी और दिल मेरे कल्पनाओं में एक ऐसे हबीब को देख रहा था, जो सिर्फ़ कल्पनाओ में ही हो सकता था। मुझे तलाश नहीं थी, अपनी तन्हा ज़िंदगी में किसी के मौजूदगी की,पर फिर भी उस भोर में मुझे किसी के मिल जाने का संकेत मिल रहा था। मैं अपनी गहरी कल्पनाओं में डूब गई और कल्पना के शहर में आए अपने हबीब के उस धुंधले से चेहरे पर गौर फरमा रही थी। मैं देखना चाह रही थी उसका नख, नक्शा कैसा है, उसका हाव-भाव कैसा है....
अब ऐसे ही कल्पना के दरियां में डुबकी लगाती हुई, चंडीगढ़ से कुछ आगे हिमाचल की ओर बढ़ी ही थी कि..... हिमाचल जाने वाली सारी गाड़ियों व यात्रियों को रोक दिया गया। पता करने पर ख़बर हुई, हिमाचल इस वक्त प्राकृतिक विपदाओं की दौर (आंधी, तूफान, भूकंप, व बाढ़ से होकर) गुज़र रहा है। न जाने कितने लोग बेघर हुए,कितने लोगों को की मौत हुई, अनगिनत तो घायल पड़े थे। जाने कितनों का परिवार बिखर गया था।
2018 जुलाई का वो दिन हिमाचल प्रदेश के लिए एक काला एवम दर्दनाक दिन साबित हुआ। हिमाचल को उस वक्त बड़े आर्थिक सहायता की सख़्त जरूरत थी। मेरी यात्रा शुरू होने से पहले खत्म सी लगने लगी। अब मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं वापस लौट जाऊं या अपने सफ़र को जारी रखूं।
कुछ तीन चार घंटे बाद न्यूज़ से ख़बर हुई कि हिमाचल में इस वक्त घायल लोगों व पीड़ितों को बचाने के लिए चिकित्सकों की सख्त जरूरत है। और विपदा में अपनी जान जोखिम में डालने की वजह से बहुत से चिकित्सकों ने हिमाचल आने से मना भी कर दिया। पीड़ितों की संख्या ज्यादा है और चिकित्सकों की संख्या बहुत कम। डॉक्टरी कि मुझे काफ़ी हद तक जानकारी थी। इतना ही नहीं मैं छः महीने बाद खुद एक डाक्टर बन जाती। हां शायद जिन चिकित्सकों ने हिमाचल आने से मना किया था, शायद वे भी अपनी जगह सही थे। अपनी जान जोखिम में डालकर अगर यहां आए और उन्हें कुछ हो जाए तो उनका परिवार अधूरा रह जाता। पर खुदा ना खास्ता लेकिन मुझे अगर कुछ हो जाए, तो रोने वाला भी कोई नहीं। मैंने फैसला लिया कि उन घायल व पीड़ित लोगों को बचाने के लिए, मैं हिमाचल जाऊंगी।
हालांकि आम जनता को हिमाचल की उस विकट परिस्थितियों में अंदर प्रवेश नहीं मिल रहा था पर खुद को डॉक्टर बताने की वजह से मुझे आसानी से हिमाचल में प्रवेश मिला। वहां की दर्दनाक स्थिति को देखकर दुख तो बहुत हुआ, पर एक बात की ज़रा सी ख़ुशी थी कि खुदा ने बड़ा रहमत से मुझे इनकी मदद करने का एक अच्छा तौफीक़ बख्शा है। दो-तीन दिन की कड़ी मेहनत के बाद काफ़ी घायलों को पीड़ितों को चिकित्सा, जरूरतमंदों को आर्थिक मदद प्रदान की गई। अब वहां के लोगों की हालत कुछ ठीक थी।
पर अब भी प्रकृति ने अपना क्रूर रूप दिखाना बंद नहीं किया था। सभी घायल व बाकी के लोग जा चुके थे। चारों ओर सन्नाटा व प्रकृति की निर्दयता का दर्दनाक नज़ारा था। मैं भी सारा सामान समेटकर जाने ही वाली थी कि ख़्याल आया मेरा छोटा सोल्डर बैग जिसमें एटीएम कार्ड और कुछ जरूरी समान जो उस बैग में थी, वो मेरे आस पास नहीं था। मुझे लगा कि कुछ दूर पर जहां हम डॉक्टर्स कैंप लगाकर पीड़ितों व घायलों को चिकित्सा प्रदान कर रहे थे,शायद वही रह गया हो... वैसे तो अब वहां कोई नहीं था पर जरूरी होने की वजह से मैं उस जगह अपनी बैग की तलाश में चल पड़ी। अभी भी आंधी तूफान व बाढ़ के पानी के तेज बहाव किसी भी इंसान के ज़ेहन में डर पैदा करने के लिए काफ़ी थी। पर सोल्डर बैग के न मिलने पर इस अनजान से शहर में मुझे काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता इसलिए अपने डर को कहीं दबाते-छिपाते हुए मुझे आगे बढ़ना पड़ा। अभी मेरे कदम कुछ आगे बढ़े ही थे कि एक दीवार बड़ी तेजी से ढहंती नज़र आई। मैं भाग पाती कि इससे पहले....