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प्रीत और वो...।

22 अक्टूबर 2021

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【प्रीत और वो...।】 (भाग 6)



ज्यों ही मेरी आंखें खुली मैं चौक गई।
मैं हॉस्पिटल में..... क्यों और कैसे....?
तब तक मेरी ओर एक नर्स बढ़ते हुए...
अब कैसा महसूस कर रही हो ? 
मैं कुछ ज़वाब दे पाती कि वह कह पड़ी...
चिंता मत करो, अब फिक्र की कोई बात नहीं कुछ पायाब चोट लगा ही था कि वक्त से बहुत पहले तुम्हें हॉस्पिटल ले आया गया। इसीलिए फिक्र की कोई बात नहीं है।
इतना कहकर वह दूसरे मरीजों को देखने के लिए आगे बढ़ जाती है। मेरे ज़ेहन में आगे सवाल उठते कि इससे पहले मुझे सामने एक यंग युवक आते दिखा जिसके हाथों में दो कुल्हड़ की चाय थी। इसमें कोई शक नहीं कि वह मेरी ओर बढ़ रहा था। वह पास आकर बगल में रखी टेबल पर बैठकर एक कुल्हड़ की चाय मेरी ओर बढ़ाते हुए....
'अब कैसा महसूस कर रही हो?'

हालांकि मैं चाय नहीं पीती लेकिन बड़े स्नेह से देने के कारण मैंने उस अजनबी यंग युवक के द्वारा दिए गए चाय को स्वीकार करना ही मुनासिब समझा। मैंने उसके सवालों का ज़वाब दिए बगैर ही अपना सवाल पेश कर दिया। 

"मैं यहां क्यों और कैसे ??"

"आपदा के दौरान पेड़ की कुछ भारी टहनियां गिर जाने से आपको कुछ पायाब चोट आ गई थी‌। इत्तेफ़ाक से मेरी नज़र आप पर पड़ी। मैंने आपको उठाने की कोशिश की लेकिन आप बेहोश पड़ चुकी थी। तो मैं हॉस्पिटल ले आया।
वैसे हिमाचल की नहीं लगती आप !"....
उस अजनबी यंग युवक ने मेरे बेहोश होने के बाद का वृतांत सुनाते हुए, मुझर एक सवाल दागा।

 "हां मैं इंदौर से हूं। दो दिन पहले ही हिमाचल आई हूं।"

माफ़ कीजियेगा लेकिन इस मौसम में इंदौर से हिमाचल किस ज़रूरी काम से आना हुआ?

"क्योंकि....कोई जरूरी काम नहीं। मैं हिमाचली वादियों की शैर करने अाई हूं।".... मैंने सहमी सहमी सी आवाज़ में जवाब दिया।

"कमाल है। आपको हिमाचल की खूबसूरत वादियों का बखूबी ध्यान रहा और इस मौसम में अक्सर होने वाली प्रकृति द्वारा बर्बादियों का ज़रा भी ख्याल ना रहा?आपका इस मौसम में यहां आना ठीक नहीं था। वैसे इस शैर पर आप अकेली हो या कोई और भी है साथ ?"

"मैं अकेली हूं।" ....मेरे हाथ में पड़ी कुल्हड़ की चाय की ओर एक टक लगाए मैंने देखते हुए कहा।

"फ़िर यहां कहां ठहरी हो आप ?" .....उस युवक ने मुझसे मेरा ठिकाना पूछा।

"कहीं नहीं... चंडीगढ़ पहुंचते ही ख़बर हुई कि हिमाचल इस वक्त प्राकृतिक आपदा के दौर से गुज़र रहा ह और खतरा अधिक बढ़ जाने की वजह से काफ़ी चिकित्सकों ने आने से मना भी कर दिया जिसकी वजह से घायलों व पीड़ितों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। अब मैं खुद ही एक डॉक्टर होकर वापस जाना मुनासिब नहीं समझी तो उन घायल व पीड़ितों के सहायता के लिए हिमाचल आई पर इस भागदौड़ में मेरे सारे जरूरी सामान यहां तक कि एटीएम कार्ड और मेरे फ़ोन वग़ैरह भी जाने कहां रह गए। उसी की तलाश में मैं वापस उस बस्ती में गई और परिणाम स्वरूप मुझे हॉस्पिटल आना पड़ा। "

"शाम तक आपको डिस्चार्ज भी कर दिया जाएगा फ़िर?"....उस यंग ने अप्रत्यक्ष रूप से मेरे ठहराव पर सवाल किए। 

मेरी आंखों में अनायास आंसू आ गए और मैं सोचने लगी कि ज़िंदगी में तन्हाई से बखूबी वाक़िफ थी पर आज बेचारी सी लग रही हुं। मैंने अपने आसूं को छुपाते और खुद को संभालते हुए ज़वाब दिया।

    "पता नहीं...."

"मैं ज्यादा कुछ तो नहीं कर सकता पर हां इतना जरूर कर सकता हूं। कि अगर बुरा ना मानें तो बेहिचक आप मेरे साथ रह सकती हैं और जब लगे  कि आपको वापस इंदौर जाना है तो आप जा सकती हैं।"

उस वक्त मेरे पास सिर्फ़ मैं और मेरे बदन के कपड़े बचे थे। मेरे पास कोई और चारा ना होने की वजह से स्वार्थवश उस अजनबी यंग युवक के साथ उसके घर जाना ही मुनासिब लगा। मुझे यह नहीं ख़बर कि मैंने एक अजनबी पर ऐतबार करके सही फैसला लिया या गलत। बस इतना ख़बर था  यह फैसला लेने के लिए मैं मजबूर थी।

'मैं आपका एहसान ताउम्र नहीं भूल सकती।'.. मैंने आभार प्रकट किया।

युवक- एहसान कैसा एहसान ???
फ़िर इस विकट परिस्थितियों में आपने तो जाने कितने घायलों की मदद कर मुझसे भी बड़ा एहसान किया है। इस हिसाब से तो हम भी आपके एहसानमंद हुए।

'नहीं मैंने एक डॉक्टर होने के नाते सिर्फ़ अपना फ़र्ज़ निभाया है। फ़र्ज़ से ज्यादा कुछ नहीं किया।'

'अच्छा तो एक डॉक्टर का फ़र्ज़ हो सकता है पर एक इंसान के इंसानियत का नहीं....! ' ...उस यंग ने बात तो मुद्दे कि की थी पर फ़िर भी उसने जो किया वो वाकई मेरे लिए मेरे सोच से परे था। 
डिस्चार्ज मिलते ही मैं उसके साथ उसके घर जाने लगी। घर जाने के दौरान रास्ते में उसने पूछा- वैसे आपका नाम क्या है....

" टियारा "

और आपका नाम?

  " प्रीत "

"प्रीत आपको खुदा ने आपके नाम का पूरा असर बख्शाहै।" 

प्रीत मेरे इस बात पे छोटी सी मुस्कान के साथ शायद भरी हामी भरता है। 
मुझे कमजोरी महसूस हो रही थी पर मैं प्रीत को बता कर उसे खामखाँ परेशान करना नहीं चाहती थी। वैसे भी हम घर पहुंच गए थे। प्रीत दरवाज़ा खोल ही रहा था कि‌ मेरी कमज़ोरी पर मेरा काबू ना रहा और मैं गिरने ही वाली थी की प्रीत ने मुझे संभाल लिया और सहारा देते हुए मुझे बिस्तर पर लेटा दिया। साथ ही आराम करने की हिदायत देकर मेरे खातिर नाश्ता-पानी लाने अपने किचन में चला गया।
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रचनाएँ
इश्क़ और इत्तफ़ाक!
5.0
◆●【इश्क़ और इत्तफ़ाक!】●◆ "इश्क़ और इत्तफ़ाक!" इश्क़ में इत्तफ़ाक की भूमिका बेहद अहम् होती है। इश्क़ में इत्तफ़ाक वही किरदार निभाता है, जो कुछ अब्द से ख़ाली पड़े मकान में एक किरायदार निभाता है। ये इत्तफ़ाक किसी मकान के किरायदार की तरह होता तो क्षणिक है, लेकिन क्षमता बेशुमार रखता है। चाहे तो इश्क़ का मकान ख़ूब संवार दे... चाहे तो उजड़ा चमन बना दे। ये इत्तफ़ाक अपनी मर्ज़ी का मालिक है, जो चाहे सो करा दे।(•ө•)♡ तो इत्तफ़ाक के इसी भूमिका को आपके समक्ष प्रस्तुत करेगी मेरी कहानी "इश्क़ और इत्तफ़ाक!" जिसमे निहित होगा एक नयापन और हमें यक़ीन है, ये नयापन आपको रास आयेगा।( ´∀`) आँचल सोनी 'हिया'✍️🌼
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श्रेय पृष्ठ

1 फरवरी 2022
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●◆【श्रेय पृष्ठ】◆●'इश्क़ और इत्तफ़ाक' कोई उपन्यास नहीं। हालांकि एक विधा की श्रेणी का ख़्याल करते हुए, इसे लघु उपन

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