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वो गुलाबी कागज़...।

22 अक्टूबर 2021

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【वो गुलाबी कागज़...।】 (भाग 3)



उस गुलाबी कागज़ पर टियारा की लिखी तहरीरें पढ़कर मुझे जितनी ख़ुशी हुई, उतना ही तकलीफ़ भी। मेरी आंखें नम सी हो गई थी। सुकून तो था पर मन और बेचैन सा हो गया था। जाने जिस तरह से, बस कैसे भी करके मुझे टियारा से संपर्क करने का कोई जरिया मिल जाए। मैं बहुत देर तलक सोचती रही मुझे कुछ समझ नहीं आया और टियारा ने भी तो अपने जज़्बातों को लिख डाला, लेकिन संपर्क करने का एक भी जरिया नहीं दिया। अब करीब करीब दोपहर के 2:00 बज चुके थे और हमारे सामने वाली सीट जो कि टियारा की थी,अब दूसरे यात्रियों ने ग्रहण कर लिया था। इस बार भी यात्री बिल्कुल मेरे मनोकूल परिवारिक थे। एक महिला और दो हम उम्र लड़कियां थी। पर इस बार मुझे उन परिवारिक यात्रियों को आंकने में कोई रुचि नहीं थी। मुझे तो बस टियारा की अधूरी मुलाकात खल रही थी। मुझे बहुत अफ़सोस हो रहा था। मैं बार-बार खुद को ही कोस रही थी कि हम दोनों ने इतनी बातें की काश कि उस दौरान हमने नंबर भी एक्सचेंज कर लिया होता। पर अब ये सब सोच कर भला क्या फायदा होना था।

कुछ ही देर में ट्रेन कुछ अगले स्टेशन पर कुछ देर रुकी। मुझे भूख लग चुकी थी। तो मैंने सुरक्षा पूर्वक अपने सामान को सीट पर रखकर कोच से बाहर प्लेटफार्म पर उत्तर कर कुछ खाने निकल गई। मेरे फोन पर मैसेज की घंटी बजी, मैंने देखा तो फेसबुक पर मेरे एक दोस्त का नोटिफिकेशन आया हुआ था।

अरे हां.... ख्याल आया, टियारा!
टियारा.... फेसबुक पर तो होगी ना, मैंने उस  नोटिफिकेशन को अटेंड किए बिना ही फ़ेसबुक पर टियारा को सर्च किया। ऐसे तो फेसबुक पर एक नाम सर्च करते ही एक ही नाम के कई व्यक्ति दिख जाते हैं। पर टियारा सच में अज़ीज़ थी। टियारा नाम से मुझे सिर्फ़ एक ही लड़की मिली, लेकिन क्या यह टियारा ही है....?
हां यह तो टियारा ही है। उसके सांवले सलोने से चेहरे पर बिखरे हुए घुमावदार बालों को भला मैं कैसे भूल सकती हूं। मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। मैंने फ़िलहाल ही उसे फ्रेंड रिक्वेस्ट डाल दिया। अब तो इंतज़ार था बेसब्री से की टियारा फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ले और मेरी उससे बात हो। वक्त का पता नहीं पर इत्तेफ़ाक सच में मेहरबान था। अगले 5 मिनट बाद ही मुझे टियारा का मैसेज आया....

(मुस्कुराता हुआ संकेत लगाकर)
"हेलो आंचल ...कैसे हो डियर ?"

"बहुत अच्छे रात को बात अधूरी छोड़ कर सो गई, सुबह मुलाकात अधूरी छोड़ कर चली गई। और पूछती हो कैसी हो" मैंने टियारा को हक से ताने मारते हुए कहा

"नहीं आंचल असल में मैं रात में थोड़ा परेशान थी, जब मुझे कुछ हल्का महसूस हुआ तो मैंने तुमसे बात करने की कोशिश की पर तुम शायद सो चुकी थी। मैंने तुम्हें परेशान करना मुनासिब नहीं समझा।" टियारा का प्रतिउत्तर आया

"तो बहाने भी सोच कर बैठी हो! मैं देर रात तक जगी  थी। तुम्हारा इंतजार कर रही थी पर मुझे लगा तुम सो गई हो तो जाने कब मेरी भी आंख लग गई, पता नहीं चला। चलो रात की गुस्ताखी तो माफ़ हुई। सुबह का क्या ? जाने से पहले एक बार गुड मॉर्निंग तक कहना तुम्हें ठीक नहीं लगा"

"आँचल, सुबह मैं तुमसे मिलकर जाना चाहती थी  पर तुम्हारी पलकें बड़ी मसरूफियत से मूंदी हुई थी, तुम सो रही थी। मैंने तुम्हें जगाना सही नहीं समझा। लेकिन हां जल्दबाजी में ही सही पर मैं तुमसे उस वक्त जो भी कहना चाहती थी... अपनी तहरीरों के  सहारे एक गुलाबी कागज़ तुम्हारे करीब छोड़ आई हूं। तुम्हें मिली नहीं??" टियारा ने कहा

"मिली ना वह भी तो अधूरी थी " मैंने फ़िर एक शिकायत दर्ज़ कि

(टियारा हंसता हुआ संकेत बनाकर)" अब भला उस
 चिट्ठी में क्या कमी रह गई थी, जिस अधूरे पन की मुझे ख़बर तक नहीं...."

"अपने जज्बातों को तो बड़े तरतीब से तहरीरों में छोड़ दिया। लेकिन क्या इतना ही काफ़ी था...?
कम से कम अपना नंबर तो दे जाती। अगर फेसबुक पर मुझे तुम्हें ढूंढने का ख्याल ना आता तो ताजिंदगी यह मुलाकात फकत दो अजनबी लड़कियों की मुलाकात बन के रह जाती ना!"  मैंने टियारा को समझाते हुए कहा।

"ओह... आँचल! जज़्बातों की दरिया में कितनी गहरी डुबकी लगाती हो तुम। मुझे ख़बर तक ना रहा अपने गुस्ताखी का, कि मैंने अंजाने में कौन सी खता कर दी और तुमने ऐसे रूबरू कराया मेरी गुस्ताखी से कि मैंने बड़ी आसानी से मान भी लिया कि हां मैंने खता की है। अब जब जज़्बातों के दरिया में डुबकी लगाकर ढूंढ ही निकाला है मुझे तो माफ़ भी कर दो दोस्त।"

टियारा की बात सुनकर और उससे बात करके मेरे चेहरे पर एक ऐसी हंसी और दिल में सुकून थी। जैसे मैं किसी हबीब से नहीं,अपने अलीफ़ (प्रिये) से बात कर रही हूं। 

"चलो गुस्ताखी माफ़ हुई। चलो यह बताओ कि अब मिज़ाज कैसा है ? मां से बात की या नहीं?"

"आँचल आज चार साल हो गए, मेरी मां इस दुनिया में नहीं है।" टियारा ने कहा

(मैं चौक कर) 
"क्या मां इस दुनिया में नहीं है.... इतनी देर बातें हुई। और तो और मैंने मां से बात करने को भी कहा, तुमने उस वक्त तो नहीं बताया मुझे। फ़िर पापा के साथ दिल्ली किसके पास गई हो ?"

"आँचल, पापा ने दूसरी शादी की है। मां के जाने के बाद पापा में काफ़ी बदलाव आ गया। करीब करीब चार साल से पापा और उनसे मेरी नहीं बनती। ना वो हमें समझते हैं ना हम उन्हें समझने की कोशिश करते हैं।"

टियारा की बातों से साफ ज़ाहिर था कि, उसने वक्त से समझौता कर लिया है। मां इस दुनिया में रहीं नहीं और अपने पापा से उसकी सारी उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं।

मैंने भी अपनी कुछ बातें टियारा से सांझा करते हुए कहा, "टियारा,मेरी भी मां इस दुनिया में नहीं हैं।"  '

"क्या कह रही हो...(टियारा शायद आश्चर्यचकित थी) कब की बात है और कितने साल हुए ?"

"आज लगभग 14-15 साल हो गए मां को गुज़रे।"

"तो पापा के साथ रहती हो...?" टियारा ने अनुमान लगाया

"नहीं, पापा ने दूसरी शादी कर ली। हमारा और उनका कोई रिश्ता नहीं अब। वह हमसे बेखबर है और हम उनसे। अर्शे गुज़र गए हैं कोई संपर्क भी नहीं किया हमने।"  मैंने टियारा के अनुमान को उसकी गलतफहमी बताते हुए कहा

"ओह, तुमने तो बिल्कुल मायूस कर दिया, फिर रहती किसके साथ हो?" टियारा ने फ़िर एक सवाल किया

"मासी के साथ, बहुत प्यार करती हैं मुझे। शायद मां से भी ज्यादा।" मैंने कहा 

टियारा- "जब मां गुजरी थी तो तुम कितनी साल की रही होगी ?"

"यही कुछ 5 - 6 साल।"

"एक बात कहती हूं डियर बुरा मत मानना...
जब मां से तुम्हारा साथ छूटा तो उस वक्त तुम नादान थी। तुम्हारी कोई गलती नहीं, उस नादानी ने हीं तुम्हें मां के प्यार को शायद गहराई से महसूस नहीं कराया। इसलिए आज तुमने बड़े बिंदास अंदाज में कह दिया कि मांसी मां से भी ज्यादा प्यार करती हैं। रब से दुआ है कि तुम्हें ऐसे ही प्यार मिले। तुम्हारा और मासी का रिश्ता ऐसे ही गहरा रहे। लेकिन याद रखना
     मासी मां सी हो सकती है,  लेकिन मां नहीं।
मेरे पापा ने जिनसे दूसरी शादी की है वो कोई और नहीं मेरी मासी है और अब कहने को मेरी मां लगती हैं रिश्ते में। लेकिन जब तक वो मेरी मासी थी वो वाकई मुझे बहुत चाहती थीं। पर जबसे हमारे और उनके रिश्ते ने नया मोड़ लिया है, जब से हम नए संबंध में जुड़े हैं तब से सब कुछ खो चुका है। अब मुझे चाहना तो दूर मेरे तबीयत की भी उन्हें कोई फ़िक्र नहीं रहती। और बहुत सी बातें हैं इसलिए मेरा अनुभव कहता है...
मासी मां जैसी हो सकती हैं लेकिन मां नहीं हो सकती।

ख़ैर सही कहा था टिया ने
रिश्ते अपने वास्तविक संबंध ( अर्थात जो रिश्ता प्रकृति ने ज़ारी किया है।) में ही उचित लगते हैं। क्योंकि ये प्रकृति हमें सदा उन्हीं रिश्तों को निभाने की क्षमता देती है जिन्हे वे खुद बनाती है। यदि हम किसी क्षणिक मोह या स्नेह में आकर अपने संबंधों का स्थान परिवर्तित करते हैं तो इन रिश्तों में निहित उम्मीदें हमारे अंदर की क्षमता से अत्यधिक जिम्मेदारियों को जन्म देती हैं। जिसे ना निभा पाने की स्थिति में हमारा यह रिश्ता असफल रह जाता है। परिणाम स्वरूप हमारे इन रिश्तों में ना ही भूत का संबंध सुरक्षित रह जाता है और ना ही वर्तमान का संबंध शेष। 
मसलन यदि हम अपने बगीचे में लगे हरे भरे व घने पंखुड़ी वाले ख़ूबसूरत गुलाब के पौधे से मोहित होकर हम उसे बगीचे से हटाकर अपने कमरे में ले आए तो यह पौधा हमारे कमरे को एक क्षणिक शोभा प्रदान करेगा और हमारी ज़िम्मेदारी बढ़ जाएगी। उस कमरे में ही हमें उस पौधे को सूर्य की रोशनी व प्रतिदिन प्रकृति ही ताज़ी हवा प्रदान करनी होगी जो कि हमारे क्षमता से बाहर है। और इस जिम्मेदारी को वाहन ना कर पाने की स्थिति में यह पूर्णत: मुरझा जायेगा। क्योंकि हमने पौधे के संबंधों का स्थान परिवर्तित किया था।

मेरी ट्रेन खुल चुकी थी। मैं वापस अपने कोच में पहुंचकर अपनी सीट पर जा बैठी। धीरे-धीरे ट्रेन ने भी रफ़्तार पकड़ लिया। अब मुझे सफ़र थोड़ा सुकून भरा लग रहा था। अब टियारा की नामौजूदगी नहीं खल रही थी। मैं टियारा के जैसी दोस्त पाकर बहुत ख़ुश थी। मानो कोई पाक अलीफ मिल गया हो।
टियारा के इस मैसेज को पढ़कर मुझे ज़रा भी बुरा नहीं लगा। ज़ाहिर है, सबके अपने सोच और अपने तजुर्बे होते हैं। टियारा को जो ज़िंदगी ने दिखाया उसने वह कह दिया।
मैंने भी टियारा को मैसेज किया, " टियारा आज ही नहीं आने वाले समय में जो तुम्हें सही लगे बेपरवाह कह सकती हो, ना ही मुझे आज बुरा लगा है, ना ही कल लगेगा। तुमसे दोस्ती करके मुझे बहुत ख़ुशी हुई। "

पर मेरे इस मैसेज पर टियारा ने कोई प्रतिउत्तर नहीं दिया। रफ़्तार में चल रही ट्रेन के कारण नेटवर्क बिल्कुल ख़राब हो गया था। शायद इसलिए हम दोनों को एक दूसरे का मैसेज नहीं मिल पा रहा था। मैंने भी थोड़ा धीरज धरा की नेटवर्क मिलते ही हमारी फ़िर से बात होगी।

कुछ देर बाद जब ट्रेन जब अच्छे विकसित इलाके में पहुंची तो वहां नेटवर्क काम करने लगा था।
मुझे टियारा का मैसेज मिला.....
"क्या हुआ डियर कुछ तो ज़वाब दो.....
ओह, शायद तुम्हें मेरी बात बुरी लगी।
मैं दिल से माफ़ी चाहती हूं, माफ़ करना पर मुझे जो सही लगा तुम्हें अपना समझ कर मैंने कह दिया। तुमसे बात करके बहुत ख़ुशी हुई। मुझे माफ़ करना, मैंने जो भी का बस कह दिया कोई गलत इरादा नहीं था मेरा।
आंचल काश! कि तुम पहले मिली होती...तो हाल के साथ अपना हाल-ए-दिल भी तुम्हें बता पाती।
अपना ख्याल रखना, हमेशा मुस्कुराते रहना और अपने हिमांचल यात्रा का भरपूर आनंद उठाना, हो सके तो मुझे भी याद कर लेना मेरा बड़ा पुराना राब्ता है हिमांचल से। उम्मीद करती हूं, कि मेरे किसी बातों का बुरा नहीं लगा होगा तुम्हें।
बाय....!"

टियारा का यह मैसेज पढ़ते ही मैंने भी टियारा को रिप्लाई कर दिया‌ पर देर तलक टियारा का कोई प्रत्युत्तर नहीं आया। टियारा के इस आखिरी मैसेज ने मुझे काफ़ी मायूस भी कर दिया। एक बात और जो बिल्कुल समझ नहीं आई, टियारा ने ऐसा क्यों लिखा कि, काश! तुम मुझे पहले मिली होती....
रब जाने क्या बात रही होगी, पूरा दिन बीत गया पर टियारा का कोई मैसेज नहीं आया। अब तो मुझे और भी बेचैनी होने लगी न जाने क्या बात है।
सच कहूं तो अब... टियारा मुझे कुछ उलझी हुई सी लग रही थी। जिसका सुलझा हुआ सीरत अपने ज़ेहन में उतार पाना इतना आसान नहीं था।

कुछ दो दिन बाद नोटिफिकेशन चेक करने के दौरान मैंने देखा कि, फेसबुक पर टियारा के किसी करीबी दोस्त ने उसके लिए एक पोस्ट किया था कि,
" टियारा तुम बहुत ब्रेव गर्ल थी। यकीन नहीं होता कि तुमने सबको संघर्षों से लड़ना सिखा कर आज खुद ज़िंदगी से हार मान लिया। यकीन नहीं होता कि, तुम आज हम सबके बीच इस दुनिया में नहीं हो। आई मिस यू टियारा.... तुम इस दुनिया में ना सही पर हम दोस्तों के बीच ज़िक्र और यादों में हमेशा रहोगी। भगवान तुम्हारी आत्मा को शांति दे।
आई मिस यू "

यह पोस्ट पढ़ते ही मेरी पांव तले ज़मीन खिसक गई। ज़ेहन में हज़ारों सवालों उमड़ने लगे। कहने को तो किसी तीसरे के लिए हमारी और टियारा की यह दोस्ती सिर्फ़ दो दिन की दोस्ती थी अब भी हम एक दूसरे के लिए अजनबी थे। पर जाने मेरा टियारा से इतनी जल्दी दिल का कैसा जुड़ाव हो गया कि दिल हर पल उसकी खुशियों गुज़ारिश करता था। और इस ख़बर से वाक़िफ होते ही मुझे कितनी तकलीफ़ हुई। उस वक्त मेरे आंसू भी उस तकलीफ़ को बयान करने के लिए कम थे। और अफ़सोस कि आज शब्द भी कम हैं।
मेरी जिंदगी का पहला उपन्यास और क्या रब की यही रज़ा थी की, मेरे उपन्यास के पन्नों को बिनने के लिए किसी की ज़िंदगी छीन जानी थी...?
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रचनाएँ
इश्क़ और इत्तफ़ाक!
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◆●【इश्क़ और इत्तफ़ाक!】●◆ "इश्क़ और इत्तफ़ाक!" इश्क़ में इत्तफ़ाक की भूमिका बेहद अहम् होती है। इश्क़ में इत्तफ़ाक वही किरदार निभाता है, जो कुछ अब्द से ख़ाली पड़े मकान में एक किरायदार निभाता है। ये इत्तफ़ाक किसी मकान के किरायदार की तरह होता तो क्षणिक है, लेकिन क्षमता बेशुमार रखता है। चाहे तो इश्क़ का मकान ख़ूब संवार दे... चाहे तो उजड़ा चमन बना दे। ये इत्तफ़ाक अपनी मर्ज़ी का मालिक है, जो चाहे सो करा दे।(•ө•)♡ तो इत्तफ़ाक के इसी भूमिका को आपके समक्ष प्रस्तुत करेगी मेरी कहानी "इश्क़ और इत्तफ़ाक!" जिसमे निहित होगा एक नयापन और हमें यक़ीन है, ये नयापन आपको रास आयेगा।( ´∀`) आँचल सोनी 'हिया'✍️🌼
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श्रेय पृष्ठ

1 फरवरी 2022
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●◆【श्रेय पृष्ठ】◆●'इश्क़ और इत्तफ़ाक' कोई उपन्यास नहीं। हालांकि एक विधा की श्रेणी का ख़्याल करते हुए, इसे लघु उपन

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