रिश्तों की व्याख्या...! 'वक़्त'... आपने नाम तो सुना ही है। कितना निष्ठुर, कितना निर्दयी, कितना खुदगर्ज़ होता है। अपने ही चाल में मस्त मलंग बस चलता जाता है... चलता जाता है... चलता जाता है....। इस बेपरवाह अमूर्त प्राणी को कोई परवाह नहीं की इसके विशाल पैरों के नीचे कितने लोग दबते कुचलते जा रहे हैं... कितनी ज़िन्दगियाँ ख़त्म हो रही हैं... कितने रिश्ते टूट कर बिख़रते जा रहे हैं... कितने ही ऐसे कमज़ोर हैं, जो चलना तो चाहते हैं इसके साथ, लेक़िन उनकी किस्मत कुपोषण का शिकार है, अतः अभागे पीछे ही छूट जाते हैं। लेकिन मज़ाल है!! जो यह वक़्त पीछे पलट कर उन्हें एक नज़र देख ले। उन पर सहानुभूति जता दे... नहीं! कदापि नहीं। इतिहास हो या विज्ञान हो, चाहें वेद पुराण हो... किसी ने वक़्त के रहमदिल की पुष्टि नहीं की है। क्योंकि सभी को यह विदित था कि, इस अमूर्त प्राणी को बनाया ही बेरहमी की मिट्टी से गया है। वह मिट्टी जो पहले पाषाण था, सैकड़ों अब्द में वह कुछ कुछ मिट्टी सा बन पाया। तो वक़्त के इस खुदगर्ज़ी का हाल सुनाने आ रही है, मेरी कहानी "रिश्तों की व्याख्या" एक ऐसी कहानी जिसमे जीवन है, एहसास है, अनुभव है। जो आपको कहीं गुदगुदाएगा, कहीं रुलायेगा, कहीं रोएं खड़े कर देगा तो कहीं रोमांचित हो उठेंगे आप। वक़्त की इस बेरुखी को आप नज़दीक से देख पाएंगे। एक इंसान जन्म से ले कर मरण तक क्या खोता है.. क्या पाता है... और अंत में उसके समक्ष उसके हिस्से में क्या बच जाता है। तो पूरी कहानी से रूबरू होने के लिए बने रहिये मेरे साथ इस कहानी के हर एक भाग में। हमें ऐतबार है, इस कहानी का कोई न कोई हिस्सा आप अपने आप और अपनी ज़िंदगी से ज़रूर जोड़ पाएंगे। यक़ीनन ये कहानी आपको बहुत कुछ सिखायेगी। आपके मुरझाये रिश्तों में प्राण फूंक जायेगी... रिश्तों को निभाने का अदब बताएगी। बहुत ज़ल्द मिलूंगी एक झलक के साथ तब तक आप अपना धैर्य बनाये रखें। शुक्रिया!💐🙏 आँचल सोनी 'हिया' :-)
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