दिनांक ५/२/२२ दैनंदिनी प्रतियोगिता सच्ची घटनाओं के संग
हां यह सत्य है सुमेश ने कहा
किंतु पुनरूद्वार के निर्माण कार्य क्या है। मैंने बीच में हस्तक्षेप किया
पुत्र ने जवाब में कहा , ऊपर की पूरी छत तोड़कर नई बनानी है।
कितनी लागत पड़ रही है ? मैंने फिर पूछा
करीब नौ लाख रुपए । पुत्र ने जवाब दिया
किंतु यह बेवजह खर्च की अधिकता होगी।
कैसे? पुत्र ने जिज्ञासा प्रकट की।
छत से पानी टपक रहा है और रिपेयरिंग में बंद नहीं हो रहा है, इसलिए नई छत के निर्माण की बात हो रही है?
हां। पुत्र ने सहमति प्रकट की।
ठीक है, यदि हम छत में पीछे की ओर कमरा निकाल देते है और सामने की ओर शेड डाल देते हैं तो हमारी समस्या का निराकरण हो जाता है और इसी लागत में यह कार्य भी पूरा हो जाएगा और हमें एक नया कमरा भी मिल जाएगा।
ठीक है, मैं चाचा से भी सलाह लें लेता हूं, उसके माथे पर बल पड़े हुए थे।
मैं इसी छत की समस्या को देखते हुए पूर्व में यहां कमरे का निर्माण करना चाहता था किन्तु तुम्हारे चाचा ने ही आपत्ति कर दी थी। तुम्हारे चाचा ने कहा था ठीक है आप बनाइए लेकिन मैं घर के अन्दर से सीढ़ी नहीं बनाने दूंगा। मां को मैने यह बात बताई पर उन्होने इस पर कोई प्रतिक्रिया न दे कर मुझे मुख्य द्वार पर नया कमरा बनाने की बात कही , मेरे द्वारा पुनः अपनी बात दुहराए जानें पर यह अवश्य कहा कि तुम उपर भी बना सकते हो किंतु सीढ़ी की बात पर फिर चुप हो गई, जिससे मुझे अत्यंत पीड़ा हुई और मैने उपर में नए कमरे की निमार्ण की बात वहीं ख़त्म कर दी और टपकते छत पर मैं अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाया
मैं डिप्रेशन महसूस कर रहा था, पर मां से और बहस नहीं कर पाया।
पुत्र ने मेरी ओर देखा और कहा यदि छत कमरे का लोड लेने की स्थिति में है तो अवश्य ही वहां कमरे का निर्माण होगा और अन्दर से सीढ़ी भी बनेगी... यह कह कर वह अपनी नई लाई हुई बाईक को देखने लगा जो पोर्च में खड़ी थी, उसक