समाज की सकारात्मक, नाकारात्मक सोच के परिणामताः हो रही घटनाओं, दुर्घटनाओं की शब्दों के द्वारा प्रत्यक्ष गवाही
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<div>कोरोना तू कितनी कातिल,अबूझ हैँ तेरी बाते </div><div> खूब साजिशें तेरी चल
<div>(2)</div><div><br></div><div> कोरोनां की देख विभीषिका, अंगद हैँ ज़िनके पांव&nbs
<div><br></div><div><br></div><div> कोरोनां की देख विभीषिका, अंगद हैँ ज़िनके पांव&nb
<div>मरकजी नहीं ,शब्द लबादा ओढे है शैतान </div><div>कोरोनां
<div>दो मई </div><div>बंगाल में </div><div>सुनामी आई </div><div>और
मन पाखी.... अनंत आकाशबिन मनके की सुंदर मालानहीं है कहीं...कोई मधुशाला,निश्छल निर्मल रहती प्रस्तुतिप्रकृति तुल्य इनकी स्तुति।कवि _डॉ वासु देव यादव
मां तेरी वीणापल पल हृदय कोनिर्मल करती जाए,क्षण क्षण के छंद तेरे उपवन के, मन पुलकितसजल नयन श्रद्धानवत हर पल । कवि , डॉ वासु देव यादव
सपने सब दरक गए , दर्पण हो गएऔर न दरकने पाए मां का घर है येदेखनाये न टूटने पाए कविडॉ वासु देव यादव
वह रोज नये रूपों में आती रही "नि:शब्द"।साधनारत था मैं,वो कहती हैं उसके रुप सेजलते रहे हम।कवि, डॉ वासु देव यादव
जख्म दिया उन्होंने अब टांके लगा रहे या कुरेद रहे हैं ,दर्द ए हालात पे वे चुप , गमों की बिछी चादरपर लिख रहे मैं रहनुमामैं रहनुमा । कवि** डॉ वासु देव यादव
भ्रमर कर गया कानों में गुंजनगुलाब खिल जाते, करते पग वंदन बस एक मुस्कुराहट दे जाती भ्रमरी कविडॉ वासु देव यादव
विदा होती बेटी से किलकारी की आसउनका मातृत्व , हमें पुनः मिलाएंगीजब वह मासूम को आशीर्वाद दिलवाने बेसब्र सी पुनःअपनी देहलीज पर आयेगीइसी आस में हम अपना गुलश
नारी शक्ति में बिखराव , दिशाएं दिग्भ्रमित मुझसे दोस्ती करोगे , *समझ*काल कवलित रिश्ते बदहवास, बस नेट पर दोस्त है खास। कलम तो हाथियार है, ममता तो निष्क
मेरे घर की सिसकियांमेरी बेबसी पर विचलित,अपनी बेबसी की गवाह मुझे बनाती,कुछ न कर पाने की मेरी असमर्थता पर उसका रूदन दीवारों पर अंकित हो रहा है दरारें बन कर ।कविडॉ वासु देव
दोस्ती में "कमीने" शब्द भी अलंकृत हो गए ,अपनापन भर गया दिल में शब्द सुसंस्कृत हो गए,जब कहा दोस्त नेआओ *कमीने* !बहुत दिनो बाद मेरी याद आई,न जाने क्या सोच कर .. मेरे दोस्त की आंख भ
__________________ शीर्षक_प्रेम ज्वाला___________________ मैं पुंज प्रेम ज्वाला में प्रखर हर पल की सांसों में तेजाब हूं ।होश में भी रहती मदहोश सी उफन गई , यौवन की किता
दैनिक प्रतियोगिता_____________सुशांत राजपूत_____________यह तो सच है ना.........,!एक सुशांत का अंत......एक प्रेम का अंत है ।दर्शकों के स्नेह काउनके धड़कनों के सुरताल में अनंत है
शीर्षक_शिवमय शिव जी, कुछ यूं चढ़ी खुमारी, कि आप ही आप नज़र आते हैं।चहल पहल से भरे पनघट , क्या सांझ क्या सवेरे बस आप हर कहीं दिख जाते हैं,भ
बरसते ओले___________बरसते ओले_ पत्थरतेज हवा भयंकर तुफान था मर्मान्तक साअंत था ।दस वर्ष का मासूमशायद निष्पंदित थापर देख रहा था उस ओर एक पत्थर की ओट से अटल था आँ
गूढ़ अर्थ_______मानव मानव एक समान,तो क्यों न करे "जग" सब धर्मों का सम्मान।धर्मांतरण के रास्ते,बेबस जाने न पाए,अपनो को परदेश ,और भरमाने न पाए।जग को हम,सब धर्मों का राज समझाएं,आओ, सबको कहें अ
भागवत , बायबल और कुरान_______________________रामायण,गुरु ग्रंथ, चर्च और कुरानसबके उपदेश एक, तो क्यूं धर्म अनेक?उनका धर्म....हम रास्ते जाने न पाए,उनका प्रसाद....एक खाने न पाए। वैमनस्यता 
दुर्गा महागौरी , है जग कल्याणी, मेरा हर सांस तुझको अर्पणहै महा गौरी, अष्टम दिन कर जोरी करता तुझको नमनमाँ तू भावना में हैं सागर।। अप्रतिम सौन्दर्य स्वामिनी माँ&nb
प्रेम पथिक मैं प्रेम पथिक संवर के चला उस गली जहां उसका घर था , खंगालता रहा उनकी खिडकियों को ,लहराते परदे को ,जिसके पीछे मेरा शहर था |मैं प्रेम पथिक पर अनभिग्य थ
युद्ध राजनैतिक बुलबुला, अनसुलझे सपनों की खेप । रॉकेट लॉन्चर सब निगल गए, इच्छायें रही अशेष।। रक्त चिंगारी में तब्दील, लपटें धधकती&nb