जीवन के मोड़
जिंदगी के मोड़ पर,
एक पड़ाव ऐसा भी आया,
जहां से राहें,
दो हिस्सों में बट गई,
एक राह पर चलकर,
स्वयं के लिए खुशियां,
दूसरी राह पर चलें,
तो अपने अस्तित्व को मिटाएं,
इस कशमकश में,
खड़े ही रहे,
फिर दिल से पूछा??
किस राह पर,
चलने की सलाह देती हो,
दिल ने हौले से कहा,
जवाब तो तुम्हारे पास है,
फिर मुझसे क्यों पूछती हो?
तुम भारतीय नारी हो,
स्वयं के लिए कब सोचा है??
अहिल्या, सीता या अग्निसुता हो,
या सामान्य सी नारी,
स्वयं की खुशियों के लिए,
कब चाहा है कुछ,
खुद को फ़ना किया अपनो के लिए,
तुम मुझसे क्यों पूछती हो?
इस मोड़ पर आकर,
तुम उसी राह पर जाओगी,
जो राह अपनो के ख्वाबों,
को पूरा करने के मोड़ पर लेकर जाए ।।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
22/6/2021