एक औरत अपना पूरा जीवन अपने पति और परिवार के लिए समर्पित कर देती है फिर भी उसको वह मान-सम्मान और प्यार प्राप्त नहीं होता जिसकी वह अधिकारी होती है इस बात की चुभन उसके दिल को हमेशा घायल करती है वह अपने मनोभावों को दुनिया समाज के सामने व्यक्त भी नहीं कर सकती है क्योंकि वह संस्कारों की बेड़ियों में बंधी हुई होती है।अगर वह अपने दिल के दर्द को बयां करना भी चाहे तो लोग उसके संस्कार और चरित्र पर उंगली उठाने लगते हैं वह सही है इसका प्रमाण देना होता है फिर भी समाज उसे शंका की दृष्टि से देखते हैं।लोग उपदेश देते हैं औरत हो कुछ दर्द और अपमान तो सहना ही पड़ेगा तुम्हारा सम्मान तुम्हारे पति के सम्मान से जुड़ा हुआ है तुम पुरूषों की बराबरी नहीं कर सकतीं सदियों से यही चलता आया है कि,औरत को झुककर और सहन कर के रहना पड़ता है।जब अपनो से समाज से औरत ऐसी बातें सुनती है तो उसका मन तड़प उठता है वह पिंजरे में बंद पंक्षी की तरह फड़फड़ा उठती है पर संस्कारों की बेड़ियों में जकड़ी होने के कारण उन्हें तोड़कर आज़ाद नहीं हो सकती।यह कहानी हर औरत की है चाहे वह पढ़ी लिखी उच्च समाज से सम्बन्ध रखती हो, मध्यमवर्गीय परिवार से हो या कम पढ़ीलिखी औरत हो उसे खुलकर अपने मन की पीड़ा को बयां करने का अधिकार नहीं होता अगर कोई औरत बगावत करने की कोशिश करती भी है तो स्वयं उसका स्त्रीयोचित गुण उसे ऐसा करने से रोक लेता है मेरा यही विचार है और यही कारण है कि,एक औरत कभी भी किसे से खुलकर अपने दिल के दर्द को नहीं कहती वह जीवनपर्यंत मुखौटा लगाकर रहती है उसके मन की पीड़ा उसके चेहरे की हंसी को छुपा लेते हैं लोग जिसके खुशहाली का बखान करते हैं उसके मन की पीड़ा सिर्फ़ और सिर्फ़ उसका मन ही जानता है दूसरा कोई नहीं औरत के इसी दर्द को उकेरने की कोशिश मैंने अपने इस उपन्यास में किया है। मैं इसमें कहां तक सफल रही हूं इसका निर्णय मेरे पाठक गण करेंगे मुझे अपने पाठकों के स्नेह और समीक्षा का इंतजार रहेगा धन्यवाद।
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