Kanchan Shukla
मैं डाॅ कंचन शुक्ला अयोध्या में रहतीं हूं मैंने 24 सालो तक डिग्री कालेज में अंशकालिक प्रवक्ता के तौर पर अध्यापन कार्य किया है अब मैं लेखन का कार्य कर रही हूं इस समय मैं हिन्दी प्रतिलिपि, रश्मिरथी और साहित्यनामा पत्रिका में लिखती हूं। अभी हाल में ही मैंने शब्द इन पर भी लिखना शुरू किया है मुझे पढ़ने लिखने का शौक बचपन से ही था मैं अपनी डायरी में अपने मनोभावों को लिखती रहती थी कभी कभी आसपास घटित होने वाली घटनाओं को मैं कहानी की तरह लिख लेती थी। लेकिन यह लेखन कार्य मैं अपनी डायरी में ही लिखती थी मैं कुछ लिखती हूं कोई नहीं जानता था। मैं अपने मन की पीड़ा भी अपनी डायरी को सुनाती थी आज से दो साल पहले मैं मोबाइल देख रही थी मुझे हिन्दी प्रतिलिपि ऐप दिखाई दिया मैंने उसे डाउनलोड किया और उस पर लिखी कहानियां, कविताएं और लेख पढ़ने लगी तब मुझे अहसास हुआ की मैं भी तो ऐसा ही लिखती हूं पर अपनी डायरी में तो क्यूं ना मैं भी आज से प्रतिलिपि पर लिखूं यह विचार आते ही मैंने एक कहानी अब और नहीं लिखी फिर एक कविता लिखी यशोधरा का प्रश्न महात्मा बुद्ध से मेरी दोनों ही रचनाओं को लोगों का बहुत स्नेह मिला तब से मेरी लेखनी मेरे मन के उद्गारों को लिखने में मेरा साथ दे रही है मेरी रचनाएं पुरस्कृत भी हुईं हैं और हो रहीं हैं अब लेखन मेरा जुनून बन गया है जबतक मेरी लेखनी मेरा साथ देगी मैं लिखती रहूंगी।
मन के जज़्बात ( मेरी कविताओं का संग्रह)
मन के जज़्बात मेरी कविताओं का एक संग्रह है जिसमें मैंने अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन के विभिन्न रंगों को दर्शाने की कोशिश की है।
मन के जज़्बात ( मेरी कविताओं का संग्रह)
मन के जज़्बात मेरी कविताओं का एक संग्रह है जिसमें मैंने अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन के विभिन्न रंगों को दर्शाने की कोशिश की है।
मन के जज़्बात (मेरी कविताओं का संग्रह भाग 2)
इस पुस्तक में मैं अपनी कविताओं को संग्रहित करूंगी मैंने अपनी कविताओं में व्यक्ति के मन में चल रहे अंतर्द्वंद्व को व्यक्त किया है मेरी कविताएं मानव मन के हर कोने को छूने का प्रयास करती हुई प्रतीत होती हैं मैंने नारी मन और सामाजिक मुद्दों को अपने अंदा
मन के जज़्बात (मेरी कविताओं का संग्रह भाग 2)
इस पुस्तक में मैं अपनी कविताओं को संग्रहित करूंगी मैंने अपनी कविताओं में व्यक्ति के मन में चल रहे अंतर्द्वंद्व को व्यक्त किया है मेरी कविताएं मानव मन के हर कोने को छूने का प्रयास करती हुई प्रतीत होती हैं मैंने नारी मन और सामाजिक मुद्दों को अपने अंदा
जब टूटा गुरूर
मैंने अपने इस उपन्यास में औरत के अहंकार से होने वाली पारिवारिक तबाही को दर्शाने की कोशिश की है औरत अहंकार में आकर दूसरों के साथ साथ अपना भी जीवन बर्बाद कर लेती है पर इसका अहसास उसे बहुत बाद में होता है तब कुछ नहीं किया जा सकता सिवाय पश्चाताप के
जब टूटा गुरूर
मैंने अपने इस उपन्यास में औरत के अहंकार से होने वाली पारिवारिक तबाही को दर्शाने की कोशिश की है औरत अहंकार में आकर दूसरों के साथ साथ अपना भी जीवन बर्बाद कर लेती है पर इसका अहसास उसे बहुत बाद में होता है तब कुछ नहीं किया जा सकता सिवाय पश्चाताप के
Kanchan Shukla की डायरी ( दैनंदिनीं)
मैं अपनी डायरी में अपनी कहानियों को संग्रहित कर रही हूं यह डायरी मैंने भी पहले ही लिखना प्रारम्भ कर दिया था अब प्रतियोगिता के लिए लिख रहीं हूं।
Kanchan Shukla की डायरी ( दैनंदिनीं)
मैं अपनी डायरी में अपनी कहानियों को संग्रहित कर रही हूं यह डायरी मैंने भी पहले ही लिखना प्रारम्भ कर दिया था अब प्रतियोगिता के लिए लिख रहीं हूं।
द्रौपदी के घायल आत्मसम्मान की पीड़ा
एक स्त्री जब दूसरी स्त्री के दर्द को नहीं समझती और अपने स्वार्थ में वह उसके आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने की कोशिश करती है तो पीड़ित औरत की आत्मा कराह उठती है मैंने इस लेख में द्रौपदी के माध्यम से सभी स्त्रियों की पीड़ा को व्यक्त करने का
द्रौपदी के घायल आत्मसम्मान की पीड़ा
एक स्त्री जब दूसरी स्त्री के दर्द को नहीं समझती और अपने स्वार्थ में वह उसके आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने की कोशिश करती है तो पीड़ित औरत की आत्मा कराह उठती है मैंने इस लेख में द्रौपदी के माध्यम से सभी स्त्रियों की पीड़ा को व्यक्त करने का
दिल में चुभी किरिंच
एक औरत अपना पूरा जीवन अपने पति और परिवार के लिए समर्पित कर देती है फिर भी उसको वह मान-सम्मान और प्यार प्राप्त नहीं होता जिसकी वह अधिकारी होती है इस बात की चुभन उसके दिल को हमेशा घायल करती है वह अपने मनोभावों को दुनिया समाज के सामने व्यक्त भी नहीं कर
दिल में चुभी किरिंच
एक औरत अपना पूरा जीवन अपने पति और परिवार के लिए समर्पित कर देती है फिर भी उसको वह मान-सम्मान और प्यार प्राप्त नहीं होता जिसकी वह अधिकारी होती है इस बात की चुभन उसके दिल को हमेशा घायल करती है वह अपने मनोभावों को दुनिया समाज के सामने व्यक्त भी नहीं कर
औरत का वज़ूद
मैंने अपने इस उपन्यास में औरत के आंतरिक संघर्ष और अंतर्द्वंद को दर्शाने के साथ साथ उसको अपने वज़ूद को क़ायम रखने के लिए कितना मानसिक कष्ट सहन करना पड़ता है जिससे वह अपनी नारी गरिमा को भी बनाए रख सके अन्यथा उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है।
औरत का वज़ूद
मैंने अपने इस उपन्यास में औरत के आंतरिक संघर्ष और अंतर्द्वंद को दर्शाने के साथ साथ उसको अपने वज़ूद को क़ायम रखने के लिए कितना मानसिक कष्ट सहन करना पड़ता है जिससे वह अपनी नारी गरिमा को भी बनाए रख सके अन्यथा उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है।
इंतज़ार की कीमत
इस उपन्यास में एक औरत की सहनशक्ति को दर्शाते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि,एक औरत को अपने पति पर विश्वास करना चाहिए पर अंधविश्वास नहीं क्योंकि किसी भी रिश्ते पर किया गया अंधविश्वास आगे चलकर स्वयं के ही विश्वास को खंड-खंड कर देता है जो एक औरत की आ
इंतज़ार की कीमत
इस उपन्यास में एक औरत की सहनशक्ति को दर्शाते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि,एक औरत को अपने पति पर विश्वास करना चाहिए पर अंधविश्वास नहीं क्योंकि किसी भी रिश्ते पर किया गया अंधविश्वास आगे चलकर स्वयं के ही विश्वास को खंड-खंड कर देता है जो एक औरत की आ