shabd-logo

जानिए आत्म ज्ञान क्या है? आत्म ज्ञान कैसे प्राप्त किया जाता है: Atma Gyan kaise Prapt kare

31 अगस्त 2023

75 बार देखा गया 75

आत्म ज्ञान एक परिचय-

दोस्तों हममें से बहुत से लोगों ने यह बात अवश्य सुनी होगी कि मनुष्य जन्म का उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्ति करना है। मनुष्य जीवन में अनेकों संकट और कठिनाइयां पाई जाती हैं अतः परिणाम स्वरुप मनुष्य बुद्धिमान होने के कारण इन सभी संकटों और परेशानियों का समाधान जीवन भर ढूंढता रहता है। जब मनुष्य को कोई भी समाधान नहीं प्राप्त होता है तब वाह अध्यात्म की ओर रुख करता है।

article-image


वास्तव में अध्यात्म में ही एक ऐसा साधन है जिसके जरिए हम अपने सांसारिक जीवन की समस्त कठिनाइयों से ऊपर उठ सकते हैं क्योंकि जीवन में परेशानियां कभी समाप्त नहीं होती हैं। अतः उत्तम विकल्प यही होता है कि हम इन परेशानियों से स्वयं को ऊपर उठा लें। अध्यात्म हमें अपनी जीवनशैली में ऐसे सुधार करने के अवसर प्रदान करता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। 

आत्म ज्ञान की परिभाषा और अध्यात्म :


आज के वर्तमान भौतिकवादी युग में अध्यात्म किसी उलझी हुई पहेली से कम नहीं है। जहां बात ईश्वर के अस्तित्व की आ जाती है तो अधिकांश लोग ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं कर पाते हैं। यहां से जन्म होता है आस्तिक और नास्तिक विचारधाराओं का और संपूर्ण जगत दो भागों में बट जाता है। आध्यात्मिक व्यक्ति किसी भी धर्म का हो सकता है परंतु सब के उद्देश्य एक समान होते हैं। सच्चा अध्यात्मा वही है जहां एक जीव दूसरे जीव पर दया दिखाएं और उचित सम्मान दें। सच्ची अध्यात्म की परिभाषा  तो बहुत व्यापक है किंतु इसके प्रमुख तत्व क्षमा दया प्रेम समभाव आदि है।


आत्म ज्ञान के लिए शरीर और मन :

जिस प्रकार एक व्यक्ति अखाड़े में लड़ने से पहले अपने शरीर को मजबूत बनाने के लिए कसरत आदि करते हैं ठीक उसी प्रकार अध्यात्म के अखाड़े में उतरने के लिए व्यक्ति को अपने मन और शरीर को मजबूत बनाना पड़ता है। मन और शरीर को मजबूत बनाने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले अपने शरीर को स्थिर करना सीखना पड़ता है तथा इसके पश्चात मन को स्थिर बनाने का प्रयास किया जाता है।


आत्म ज्ञान में गुरु का महत्त्व :

दोस्तों अक्सर लोग अध्यात्म व आत्म ज्ञान की प्राप्ति हेतु विभिन्न साधु मुनियों की आंख मूंदकर संगत करने लग जाते हैं। इस प्रकार बिना विचारे किसी भी व्यक्ति का अनुसरण करने पर ज्ञान तो दूर शिवाय धोखे के अलावा कुछ भी नहीं प्राप्त होता है। अक्सर यह बताया जाता है आत्मज्ञान बिना गुरु की सहायता के प्राप्त नहीं हो सकता है, यह बात सही भी है किंतु आप को यह सुनिश्चित कर लेना भी आवश्यक है के सम्मुख जो व्यक्ति है क्या वह सच में आपका गुरु बनने योग्य है अथवा नहीं। क्योंकि अध्यात्म जगत में बहुत से बहुरूपियों का समावेश हो चुका है इसलिए सही गुरु की तलाश हमें बहुत सोच समझकर ही करनी चाहिए।
 

आत्म ज्ञान की आवश्यकता :


बहुत से ग्रंथों में आपको यह ज्ञान प्राप्त हो जाएगा कि मानव तन ही मुक्ति का द्वार है क्योंकि मानव तन में ही आकाश तत्व पाया जाता है यही कारण है कि मनुष्य शरीर में ज्ञान की उत्पत्ति संभव हुई है। यदि ठीक प्रकार से देखा जाए तो मनुष्य तन समस्त प्रकार की विधियों सिद्धियों का एक पुंज है। हम सब इतने अधिक बहिर्मुखी हो गए हैं कि हम अपने अंदर झांककर अपने अस्तित्व को ही पहचानने में सक्षम नहीं है।

दोस्तों आपको यह बात बता दूं कि स्वयं की अनुभूति कर लेना है अर्थात अपनी आत्मा में उतर जाना ही आत्मज्ञान प्राप्त कर लेना होता है। इसका यह अर्थ है कि आप मन और माया दोनों से ऊपर उठकर स्वयं अर्थात आत्म निष्ठ हो गए हैं। पूरी तरह से आत्म निष्ठ हो जाने पर ही पूर्ण मुक्ति संभव है। 

आत्म ज्ञान का सफ़र :

आत्मज्ञान का सफर बहुत लंबा है किंतु असंभव बिल्कुल नहीं है हां कई बार मनुष्य को आत्मज्ञान प्राप्त करने में अपने कई जन्म लगाने पड़ते हैं। इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि आपके प्रयास विफल हुए बल्कि आपके कर्म आपके कर्माशय में संचित रहते हैं और जन्म जन्मांतर तक आपके कर्म और भाग्य इन्हें कर्माशय के कर्मों  के अनुसार चलते हैं।

आत्मज्ञान की तैयारी के लिए सबसे पहले अपने शरीर को शुद्ध बनाना पड़ेगा। इसके लिए हमें शाकाहार को स्वीकार करना होगा तथा अपनी वाणी में शुद्धता लानी होगी। वाणी की शुद्धता से तात्पर्य यह है कि हम अपने मन वचन या कर्म से किसी को दुख बिल्कुल भी नहीं पहुंचाएंगे। इसके लिए कुछ ऋषि मुनि हठयोग का प्रयोग करते थे। हठयोग का अनुसरण करते हुए वे वर्षों तक के मौन व्रत का पालन करते थे। मौन व्रत का पालन करने से इन ऋषि-मुनियों के संकल्प में अप्रत्याशित वृद्धि होती थी।

आत्म ज्ञान के लिए संकल्प शक्ति :


संकल्प शक्ति के द्वारा ही किसी भी कार्य को सिद्ध किया जाता है अर्थात जब आपकी संकल्प शक्ति मजबूत होगी तब आप कोई भी कार्य सरलता से सिद्ध कर पाएंगे। किसी कार्य को कुशलता पूर्वक कर लेना ही सिद्धि कहलाती है।

आत्म ज्ञान हेतु योग और ध्यान :

योग और ध्यान अध्यात्म के मार्ग में वह साधन है जो आपको मोक्ष की ओर ले जाने में अति आवश्यक है। ध्यान करने के लिए शरीर का स्वस्थ होना अति आवश्यक है इसलिए योग का अध्यात्म में बड़ा महत्व है। और दोस्तों कहा भी जाता है योग भगाए रोग। योग करते समय एक बात का और ध्यान रखना परम आवश्यक है के योगी व्यक्ति को धीरे-धीरे अपने भोगों को त्याग देना चाहिए। क्योंकि जहां भोग तहां योग विनाशा। अर्थात यदि व्यक्ति भागों में उलझा रहेगा तो वह कभी भी योग नहीं कर पाएगा। बात यहां तक भी कहीं गई है कि कोई योगी व्यक्ति जिसके पास अत्यधिक योग बल हो यदि वह भी लोगों में उलझ जाए तो उसका योग बल शून्य हो जाता है।

आत्म ज्ञान के लिए मन की स्थिरता :

योग द्वारा शरीर की स्थिरता प्राप्त कर लेने के बाद बात आती है मन की स्थिरता की। मन की स्थिरता प्राप्त करने हेतु आपके अंदर और बाहर की हलचल को शांत करना पड़ता है। जैसा कि आप सभी जानते हैं ध्यान साधना हेतु एकांतवास की आवश्यकता होती है। इसके लिए हमारे प्राचीन ऋषि मुनि जंगलों और गुफाओं को उत्तम स्थान मानते थे। क्योंकि साधारण मनुष्य जंगल और गुफाओं में जाने से कतराते थे इसलिए हमारे प्राचीन ऋषि मुनि दुर्गम स्थानों पर अपनी योग साधना किया करते थे।

वैसे तो ध्यान लगाने के 112 अलग-अलग मार्ग (कुल ११८ मार्ग हैं जिनमे से ६ गुप्त हैं)  हैं और यह मार्ग हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग प्रकार से लाभदायक हो सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार एक योग का मार्ग सुनिश्चित होता है तथा इसी सही मार्ग को अपना करके ही व्यक्ति अपने लक्ष्य अर्थात मुक्ति को प्राप्त कर सकता है।

आत्म ज्ञान और योग सिद्धियाँ :

बहुत से व्यक्ति योग साधना कुछ विशेष प्रकार की सिद्धियां प्राप्त करने हेतु करते हैं। इन सिद्धियों का उद्देश्य कुछ व्यक्तियों के लिए अपने जीवन को सरल बनाना और किसी की सहायता या परमार्थ कार्य करना होता है। वही कछ व्यक्ति इन सिद्धियों का प्रयोग नकारात्मक कार्यों को करने के लिए करते हैं।


जैसा कि मैंने आपको बताया यह मनुष्य तन ऊर्जा और शक्ति का भंडार है इसकी और आगे व्याख्या करते हुए अब मैं आपको इन शक्ति के केंद्रों के बारे में बताता हूं-

यदि आपने बचपन में शक्तिमान नाम का एक धारावाहिक देखा हो तो आपको याद आएगा के मनुष्य के शरीर में शक्ति के सात चक्र पाए जाते हैं। मनुष्य की आध्यात्मिक शक्तियां इन सात चक्रों में वास करती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति यह चाहता है कि उसके यह सभी चक्र जागृत हो जाएं और वह इन शक्तियों का मालिक बन जाए। बहुत से लोग अपने चक्रों को जगाने के लिए गुरु बनाते हैं और उनसे चक्र को जागृत करने का आग्रह करते हैं। ऐसा गुरु जिसके अंदर अत्यधिक योग बल होता है वह व्यक्ति के सभी चक्रों को जागृत कर सकता है किंतु इस प्रक्रिया में गुरु को अत्यधिक योग बल गवना पड़ता है।

आत्म ज्ञान और कुण्डलिनी शक्ति : 

और अधिक जानने के लिए यहाँ क्लिक करें.....             

अशोक जैन की अन्य किताबें

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

बहुत सुंदर लिखा है आपने सर 👌 आप मुझे फालो करके मेरी कहानी पर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏

3 सितम्बर 2023

1
रचनाएँ
शून्य से अनंत की ओर
0.0
यह पुस्तक आपके अध्यात्मिक सफ़र को एक नया आयाम देगी. अध्यात्म से संबन्धित समस्त जानकारी से युक्त यह पुस्तक प्रत्येक जन मानस के लिए उपयोगी सिद्ध होगी.

किताब पढ़िए