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जीने का दुख....

7 नवम्बर 2021

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**एक प्राचीन रूसी कथा है।** 


एक बड़े टोकरे में बहुत से मुर्गे आपस में लड़ रहे थे। नीचे वाला खुली हवा में सांस लेने के लिए अपने ऊपर वाले को गिराकर ऊपर आने के लिए फड़फड़ाता है। सब भूख—प्यास से व्याकुल हैं। इतने में कसाई छुरी लेकर आ जाता है, एक—एक मुर्गे की गर्दन पकड़कर टोकरे से बाहर खींचकर वापस काटकर फेंकता जाता है। कटे हुए मुर्गों के शरीर से गर्म लहू की धार फूटती है। भीतर के अन्य जिंदा मुर्गे अपने— अपने पेट की आग बुझाने के लिए उस पर टूट पड़ते हैं। इनकी जिंदा चोंचों की छीना—झपटी में मरा कटा मुर्गे का सिर गेंद की तरह उछलता—लुढ़कता है। कसाई लगातार टोकरे के मुर्गे काटता जाता है। टोकरे के भीतर हिस्सा बांटने वालों की संख्या भी घटती जाती है। इस खुशी में बाकी बचे मुर्गों के बीच से एकाध की बांग भी सुनायी पड़ती है। अंत में टोकरा सारे कटे मुर्गों से भर जाता है। चारों ओर खामोशी है, कोई झगड़ा या शोर नहीं है।


**इस रूसी कथा का नाम है—जीवन।**


ऐसा जीवन है। सब यहां मृत्यु की प्रतीक्षा में हैं। प्रतिपल किसी की गर्दन कट जाती है। लेकिन जिनकी गर्दन अभी तक नहीं कटी है, वे संघर्ष में रत हैं, वे प्रतिस्पर्धा में जुटे हैं। जितने दिन, जितने क्षण उनके हाथ में हैं, इनका उन्हें उपयोग कर लेना है। इस उपयोग का एक ही अर्थ है कि किसी तरह अपने जीवन को सुरक्षित कर लेना है, जो कि सुरक्षित हो ही नहीं सकता।


मौत तो निश्चित है। मृत्यु तो आकर ही रहेगी। मृत्यु तो एक अर्थ में आ ही गयी है। क्यू में खड़े हैं हम। और प्रतिपल क्यू छोटा होता जाता है, हम करीब आते जाते हैं। मौत ने अपनी तलवार उठाकर ही रखी है, वह हमारी गर्दन पर ही लटक रही है, किसी भी क्षण गिर सकती है। लेकिन जब तक नहीं गिरी है, तब तक हम जीवन की आपाधापी में बड़े व्यस्त हैं—और बटोर लूं, और इकट्ठा कर लूं? और थोड़े बड़े पद पर पहुंच जाऊं, और थोड़ी प्रतिष्ठा हो जाए, और थोड़ा मान—मर्यादा मिल जाए। और अंत में सब मौत छीन लेगी।


जिन्हें मृत्यु का दर्शन हो गया, **जिन्होंने ऐसा देख लिया कि मृत्यु सब छीन लेगी, उनके जीवन में संन्यास का पदार्पण होता है।** उनके जीवन में एक क्रांति घटती है। 



ARVIND KUMAR KASHYAP

ARVIND KUMAR KASHYAP

बहुत सुंदर.....और भी आप ऐसे ही लिखते रहें......

8 नवम्बर 2021

Manoj Kumar

Manoj Kumar

8 नवम्बर 2021

धन्यवाद

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