एक चिंतन -
वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए यह कहना कितना उचित है कि **मनुष्य इस सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ कृति है?*
आइए जरा विचार करें, ठीक छोटा सा
वायरस आज पूरे विश्व भर में कोहराम मचा दिया, कल तक यही मनुष्य जो अपनी सैन्य शक्ति आणविक शक्ति ,धन शक्ति, विज्ञान व तकनीक शक्ति के दम में फूले नहीं समा रहा था वह मनुष्य आज एक काली पन्नी में लिपटे हुए श्मशान घाट में अपनी बारी का इंतजार कर रहा है।.... इस वायरस के प्रभाव को नेस्तनाबूद करने के लिए हमारे सामने वैक्सीन भी बना दी गई परंतु एक छोटे से वायरस के तांडव के आगे हम सब मजबूर हो रहे हैं। आखिरकार हम मनुष्य प्रकृति के सर्वश्रेष्ठ कृति का तमगा किस आधार पर अपने सिर पर लगा रखे हैं।? क्या है इसके मूल्यांकन का आधार?
कई विद्वान यह तर्क देते हैं कि मनुष्य के पास सोचने समझने की क्षमता है जो अन्य पशुओं में नहीं है।
कई आध्यात्मिक लोगों ने भी इस विषय में अपना मंतव्य प्रकट किया है कि मनुष्य का जीवन सर्वश्रेष्ठ जीवन है क्योंकि मनुष्य अपनी विचार शक्ति के प्रयोग से उस परमपिता परमेश्वर की आराधना कर सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। इस कथन के संदर्भ में यह कहना चाहूंगा कि आपने "गज और ग्राह की सुंदर कथा के बारे में भी सुना होगा। जिसमें गज ग्राह द्वारा अपने पैर को पकड़े रहने के कारण भगवान से प्रार्थना की... और भगवान आकर उस ग्राह को मोक्ष प्रदान करते हुए गज को बचाया। इस कथा के माध्यम से हम यह कदापि नहीं कह सकते हैं कि पशु भी भगवान का पूजन वंदन कर सकते हैं अगर नहीं करते तो हिंदू देवी देवताओं के सानिध्य में यह पशु पक्षी नहीं रहते जैसे माता दुर्गा की सवारी सिंह है, भोलेनाथ की सवारी नंदी बैल ,गले में सर्प की माला ।श्री गणेश की सवारी चूहा। भगवान श्री राम वानरों की सेना के बदौलत ही पूरी लंका पर विजय प्राप्त की। यह सब उदाहरण इस बात का संकेत है कि हम जिस पशु योनि को अघम योनि कहते हैं कहीं ना कहीं हम एक झूठा अहंकार पाले रखे हुए हैं अपनी मनुष्यता पर।
हमारी भारतीय संस्कृति जो कण-कण में उस परमपिता परमेश्वर का वास में विश्वास रखता है। वह परम सच्चिदानंद स्वरूप सभी जीव जंतुओं कीड़े मकोड़े आदि में भी व्याप्त है। तो फिर यदि हम उन पशु पक्षियों कीड़े मकोड़ों को अघम श्रेणी मानते हैं तो कहीं ना कहीं हम उस परम सत्ता उस परम स्वरूप की अवहेलना करते हैं।
मेरा मानना यह है कि हम सबको समान समझे सब में उस परमपिता परमेश्वर के उस परम स्वरूप का दर्शन करें और कहीं ना कहीं सबों में उस परम स्वरूप का दर्शन करना समत्व भाव है, यही सही अध्यात्म है।
🙏इस पर अपने विचार जरुर प्रकट करें🙏 धन्यवाद🙏