किताबे पढनेवाले समझदारी की बाते कर रहे हैं,
प्यार में धोका खाने वाले खुद को दोषी मानकर,मर रहे हैं.
मंजिल पाने निकले मुसाफिर मुसीबतो से डर रहे हैं
छोड दौलत अपनी अमिर तो गरीब अपने ख्वाब ,छोडकर,गुजर रहे हैं.
कुछपल साथ निभानेवले रिश्तो की बात कर रहे हैं,
सुख की तलाश में निकले शक्स दुखो से गुजर रहे हैं.
उंची उडान भरनेवाले परिंदे कुछ पल ठहर रहे हैं,
छोटे छोटे दुखो से गुजरनेवाले उदास होकर
जिंदगी,से, शिकायते करते फिर रहे हैं.
खाली हाथ आये थे सभी को खाली हाथ ही जाना हैं,
बेवजह फिर हम घमंड किस बात का कर रहे.