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जिंदगी एक पेड ही तो है जिन्हे हम छाव देते हैं एक दीन वही हमे घाव देते है
जिंदगी एक पेड ही तो हैं ना जिन्हे हम छाव देते हैं, वही एकदिन हमे घाव देते हैं . जिसप्रकार छाव में पनाह लिये मुसाफिरो में पेड कभी भेदभाव नहीं करता उसी प्रकार,दुःखी भाव लिये दर पे आये इंसानो को दयावान इ
किताबे पढनेवाले समझदारी की बाते कर रहे हैं,प्यार में धोका खाने वाले खुद को दोषी मानकर,मर रहे हैं. मंजिल पाने निकले मुसाफिर मुसीबतो से डर रहे हैंछोड दौलत अपनी अमिर तो गरीब अपने ख्वाब ,छोडकर,गुजर र