जीवन की राहों में
यह किस्सा बड़ा अजीब था
छोटी सी उम्र में
वह तजुर्बे के बहुत करीब था
घर की बागडोर में भूल गया वह अपनी खुशियां
जीवन रूपी पतंग में बांध उसने उड़ा दिए अपने सपने
देखे घर वो
या देखे घर की जिमेदारियाँ
छोटी सी उम्र में वह बहुत बड़ा हो गया
देखो एक छोटा बच्चा
घर की खुशियों के लिए
अपने पैरों पर खड़ा हो गया
बोझ तो उसने दुःख का ढोया था
पिता को जो उसने कच्ची उम्र में खोया था
जीवन मे जो उसके अंधकार आया
वह ना किसी को बतलाता
छोटे भाई- बहनों को हमेशा रात में पढ़ाता था
उन्हें वह अफसर बनाना चाहता था
मेहनत कर उसने सभी को पढ़ाया था
तभी जा के उसका मान भाई-बहनों ने बढ़ाया था