आज मैं बेटी से बहु बनने तक का सफर निभाऊंगी
सोहल श्रृंगार कर सुसारल को जाउंगी
पिता के सर का ताज हूं
अब ससुराल का मान कहलाऊंगी
पिता से थी मेरी पहचान
अब पति के उपनाम को अपनी पहचान बताउंगी
माँ की रही हूं हमेशा लाडली
क्या सास के साथ मेल जोल बढा पाउंगी
क्या सास से माँ का प्यार पाउंगी
क्या में बहु से एक बार फिर बेटी बन पाउंगी?
भाई से हमेशा थी में लड़ती
ससुराल में भाई सा देवर पाउंगी
बहन से प्यारी ननद
मै ससुराल में पाउंगी
करेगे हमेशा बाते
अपनी सहेली उसे मै बनाउंगी
रहेंगे हमेशा साथ
हमेशा प्यार जताउंगी
अपनाउंगी मै उन्हें
क्या ससुराल में मैं बहु से बेटी बन पाउंगी
रहूंगी सभी के साथ मैं
न मै अकेले पिया के साथ घर अपना बसाउंगी
जब बनी हु में घर की बहू
तो कैसे मैं अपनी जिम्मेदारी नही निभाऊंगी
ससुराल पक्ष में मैं कभी माता-पिता को न लाऊंगी
कन्यादान के समय माता-पिता का हाथ छोड़
अपने सास-ससुर को ही माता पिता बनाउंगी
फिर भी क्या मैं
बहु से बेटी बन पाउंगी
देखा है मैंने बेटियों को न अपनी जिम्मेदारी बहु बन कर निभाती है
लेती है साथ फेरे
कुछ दिनों में सब से दूर हो जाती है
ऐसे में कभी न कर पाउंगी
ली है मैंने जिम्मेदारी
जिम्मेदारी पूरी कर के दिखाउंगी
करूँगी सेवा सास ससुर की
उनकी एक बार फिर से बेटी बन जाउंगी
होंगे दो दो माता पिता
में सबसे खुशखुशनसीब कहलाऊंगी
✍🏻नेHa त्रिpathi