सुरेश और महेश सगे भाई थे । दोनों के बीच प्रापर्टी की लड़ाई इतनी बढ़ी की दौनों एक दूजे के खून के प्यासे हो गए। इसके बाद सुरेश एक जैन मणि श्री क्षीरसागर महाराज के सम्पर्क मे आता है। उसके बाद उसके अंदर बहुत से बदलाव आते हैं।
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“जीयो और जीने दो “ ( कहानी -प्रथम क़िश्त)वैसे तो महेश और सुरेश राजपुत सगे भाई हैं पर पिछले तीन वर्षों से उनके बीच छत्तीस का आंकड़ा है। वे एक दूसरे क चेहरा भी देखना भी पसंद नहीं करते हैं । इसकी मूल वजह ह
[ कहानी __ [जीयो और जीने दो दूसरी क़िश्त ] [अब तक क्षीरसागर महाराज ने सुरेश से कहा कि और 2/4 दिन विचार कर लो किसी नए धर्म या पंथ को अपनाना तो सरल है पर उस पंथ की गरीमा को अक्षुण बनाए र
( जीयो और जीने दो-- कहानी 3री क़िश्त)15 दिन बाद जब क्षीरसागर महाराज दुर्ग से चले गए तब सुरेश्वसर जी ने अपने बच्चों व अपनी पत्नी से कहा कि मैं अपने बड़े भाई के सामने झुकने को तैयार हूं । मैं दुर्ग
[ जीयो और जीने दो ----कहानी चौथी क़िश्त ]इस बीच दुर्ग शहर के दायरे में क विशेष घटना हुई । दुर्ग नगर निगम की बैठक में आम सहमति से यह निर्णय लिया गया कि अब वर्तमान बस स्टैन्ड शहर की ज़रूरत के हिसाब से छोट
[ जीयो और जिने दो --- कहानी____ अंतिम क़िश्त ]उधर सुरेश्वर जी का व्यापार बुलंदियों को छूने लगा था । साथ ही उनकी पोटिया स्थित ज़मीन की क़ीमत 10 हज़ार रुपिए फ़ीट हो गई थी । कई बड़े व्यापारी उनकी ज़मीन को खरीदन