[ जीयो और जिने दो --- कहानी____ अंतिम क़िश्त ]
उधर सुरेश्वर जी का व्यापार बुलंदियों को छूने लगा था । साथ ही उनकी पोटिया स्थित ज़मीन की क़ीमत 10 हज़ार रुपिए फ़ीट हो गई थी । कई बड़े व्यापारी उनकी ज़मीन को खरीदने की इच्छा ज़ाहिर कर रहे थे पर सुरेश्वर जी ने उस ज़मीन को बेचने के बारे में अभी सोचा नहीं था ।
एक दिन महेश की पत्नी ने मन बनाया कि अपने देवर से मदद मांगी जाए। क्या हुआ कि उनसे पहले हमारा कोई विवाद था ? आखिर वह है तो मेरा देवर ही । अगले दिन सुमीत्रा देवी भगवान का नाम लेती हुई अपने देवर के घर पहुंच गई । उन्हें देखते ही सुरेश्वर जी और उनकी पत्नी आशा जी बेहद खुश हो गईं । उन दोनों ने आगे बढकर सुमीत्रा जी का चरण स्पर्श करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। फिर सुरेश ने कहा कि भाभी जी आपने यहां आने की तकलीफ़ क्यूं उठायी ? हमें खबर कर देते तो हम आपके घर आ जाते । इतनी मीठी और सौहार्द पूर्ण बातें सुनकर सुमीत्रा जी की आखों में आंसू आ गए। सुमीत्रा जी ने लगभग रोते हुए कहा कि हम लोग बुरी तरह से आर्थिक समस्या से घिर चुके हैं । मदद की गुहार लगाने आई हूं । जवाब में सुरेश्वर जी ने कहा कि भाभी जी आप गुहार न लगाएं, बल्कि हमें आदेश दें कि हमें क्या करना है ? आपके हुक्म का पालन करना हमारा दायित्व है । हम पर आप लोगों का पूरा अधिकार है । तब सुमीत्रा जी ने कहा कि हमारी मोबाइल की दुकान खुलवा दीजिए, तो हमारी सारी समस्या का निदान हो जाएगा । मोबाइल की दुकान से हमारा घर अच्छे से चल रहा था । जबसे इन्हें कारखाना लगाने का धुन सवार हुआ तबसे हम लोग परेशानियों से घिर गए हैं और बर्बादी की कहानियां लिख रहे हैं ।
सुरेश्वर – भाभी जी आप चिन्ता न करें । मेरी दुकान के बाजू वाली गुप्ता जी की दुकान बिक रही है । मैं कल ही उन्हें उनकी मुहमांगी रकम देकर सौदा पक्का कर लेता हूं । लगे तो पैसों का प्रबंध पोटिया वाली ज़मीन का छोटा टुकड़ा बेचकर कर लूंगा । आप यह मानकर चलें कि आप लोगों की दुकान 15 दिनों के अंदर खुल जाएगी । आखिर महेश जी मेरे अग्रज हैं । हम दोनों एक ही माता पिता के संतान हैं । भाई के संकट के समय मैं सक्ष्म होते हुए भी मदद के हाथ न बढाऊं तो मुझे भाई कहलाने का भी हक भी कहां रहेगा और मैं शायद जीवन भर फिर खुद को माफ़ भी नहीं कर पाऊंगा ।
इस बीच महेश जी की मानसिक हालात भी सुधरने लगी थी । अब वह भी अपने छोटे भाई सुरेश्वर जी के साथ जैन धर्म के कार्यक्रमों में शामिल होने लगे थे । 2 महीने बाद महेश जी ने भी क्षीरसागर महाराज से दीक्षा लेकर जैन पंथ स्वीकार कर लिया । उन्हें क्षीरसागर महाराज जी ने नया नाम दिया महेश्वर जी । चूंकि सुरेश्वर जी उनसे कई महीनों पूर्व जैन पंथ अपना कर दीक्षा प्राप्त किए थे अत: उनका कद अपने बड़े भाई से ऊंचा था । महेश्वर जी को अपने छोटे भाई सुरेश्वर जी को प्रणाम करके उनसे आशीर्वाद लेना पड़ता था । महेश्वर जी को इस बात से कोई संकोच नहीं होता था । वे भी पुरी तरह से जैन साधू बनने की राह में अग्र्सर हैं ।
2 महीने बाद आज महेश्वर जी के सुपुत्र की मोबाइल शाप का उद्घाटन है । यह दुकान सुरेश्वर जी के परिवार के आर्थिक सहयोग से खुल रहा है । सुरेश्वर जी ने अपने पुत्र को कहकर अपने भतीजे के लिए एक भव्य शो रूम तैयार करवा दिए हैं । आज उस दुकान का उद्घाटन है। दुकान का उद्घाटन करने छत्तीसगढ जैन संगठन के प्रान्तीय अद्ध्यक्ष “संतोष” जी आने वाले हैं। उनके साथ उनकी धर्म पत्नी “श्रद्धा “जी भी आ रही हैं । मोबाइल शाप का नाम दिया गया है “ क्षीरसागार- कम्युनिकेशन ।
( समाप्त )