shabd-logo

जीयो और जीने की ( अंतिम क़िश्त)

8 फरवरी 2022

21 बार देखा गया 21
[ जीयो और जिने दो --- कहानी____ अंतिम क़िश्त ]

उधर सुरेश्वर जी का व्यापार बुलंदियों को छूने लगा था । साथ ही उनकी पोटिया स्थित ज़मीन की क़ीमत 10 हज़ार रुपिए फ़ीट हो गई थी । कई बड़े व्यापारी उनकी ज़मीन को खरीदने की इच्छा ज़ाहिर कर रहे थे पर सुरेश्वर जी ने उस ज़मीन को बेचने के बारे में अभी सोचा नहीं था ।

एक दिन महेश की पत्नी ने मन बनाया कि अपने देवर से मदद मांगी जाए। क्या हुआ कि उनसे पहले हमारा कोई विवाद था ? आखिर वह है तो मेरा देवर ही । अगले दिन सुमीत्रा देवी भगवान का नाम लेती हुई अपने देवर के घर पहुंच गई । उन्हें देखते ही सुरेश्वर जी और उनकी पत्नी आशा जी बेहद खुश हो गईं । उन दोनों ने आगे बढकर सुमीत्रा जी का चरण  स्पर्श करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। फिर सुरेश ने कहा कि भाभी जी आपने यहां आने की तकलीफ़ क्यूं उठायी ? हमें खबर कर देते तो हम आपके घर आ जाते । इतनी मीठी और सौहार्द पूर्ण बातें सुनकर सुमीत्रा जी की आखों में आंसू आ गए। सुमीत्रा जी ने लगभग रोते हुए कहा कि हम लोग बुरी तरह से आर्थिक समस्या से घिर चुके हैं । मदद की गुहार लगाने आई हूं । जवाब में सुरेश्वर जी ने कहा कि भाभी जी आप गुहार न लगाएं, बल्कि हमें आदेश दें कि हमें क्या करना है ? आपके हुक्म का पालन करना हमारा दायित्व है । हम पर आप लोगों का पूरा अधिकार है । तब सुमीत्रा जी ने कहा कि हमारी मोबाइल की दुकान खुलवा दीजिए, तो हमारी सारी समस्या का निदान हो जाएगा । मोबाइल की दुकान से हमारा घर अच्छे से चल रहा था । जबसे इन्हें कारखाना लगाने का धुन सवार हुआ तबसे हम लोग परेशानियों से घिर गए हैं और बर्बादी की कहानियां लिख रहे हैं ।

सुरेश्वर – भाभी जी आप चिन्ता न करें । मेरी दुकान के बाजू वाली गुप्ता जी की दुकान बिक रही है । मैं कल ही उन्हें उनकी मुहमांगी रकम देकर सौदा पक्का कर लेता हूं । लगे तो पैसों का प्रबंध पोटिया वाली ज़मीन का छोटा टुकड़ा बेचकर कर लूंगा । आप यह मानकर चलें कि आप लोगों की दुकान 15 दिनों के अंदर खुल जाएगी । आखिर महेश जी मेरे अग्रज हैं । हम दोनों एक ही माता पिता के संतान हैं । भाई के संकट के समय मैं सक्ष्म होते हुए भी मदद के हाथ न बढाऊं तो मुझे भाई कहलाने का भी हक भी कहां रहेगा और मैं शायद जीवन भर फिर खुद को माफ़ भी नहीं कर पाऊंगा ।
 
इस बीच महेश जी की मानसिक हालात भी सुधरने लगी थी । अब वह भी अपने छोटे भाई सुरेश्वर जी के साथ जैन धर्म के कार्यक्रमों में शामिल होने लगे थे । 2 महीने बाद महेश जी ने भी क्षीरसागर महाराज से दीक्षा लेकर जैन पंथ स्वीकार कर लिया । उन्हें क्षीरसागर महाराज जी ने नया नाम दिया महेश्वर जी । चूंकि सुरेश्वर जी उनसे कई महीनों पूर्व जैन पंथ अपना कर दीक्षा प्राप्त किए थे अत: उनका कद अपने बड़े भाई से ऊंचा था । महेश्वर जी को अपने छोटे भाई सुरेश्वर जी को प्रणाम करके उनसे आशीर्वाद लेना पड़ता था । महेश्वर जी को इस बात से कोई संकोच नहीं होता था । वे भी पुरी तरह से जैन साधू बनने की राह में अग्र्सर हैं । 

2 महीने बाद आज महेश्वर जी के सुपुत्र की मोबाइल शाप का उद्घाटन है । यह दुकान सुरेश्वर जी के परिवार  के आर्थिक सहयोग से खुल रहा है । सुरेश्वर जी ने अपने पुत्र को कहकर अपने भतीजे के लिए एक भव्य शो रूम तैयार करवा दिए हैं । आज उस दुकान का उद्घाटन  है। दुकान का उद्घाटन करने छत्तीसगढ जैन संगठन के प्रान्तीय अद्ध्यक्ष “संतोष” जी आने वाले हैं।  उनके साथ उनकी धर्म पत्नी “श्रद्धा “जी भी आ रही हैं । मोबाइल शाप का नाम दिया गया है “ क्षीरसागार- कम्युनिकेशन ।

( समाप्त )
5
रचनाएँ
जीयो और जीने दो। (कहानी )
0.0
सुरेश और महेश सगे भाई थे । दोनों के बीच प्रापर्टी की लड़ाई इतनी बढ़ी की दौनों एक दूजे के खून के प्यासे हो गए। इसके बाद सुरेश एक जैन मणि श्री क्षीरसागर महाराज के सम्पर्क मे आता है। उसके बाद उसके अंदर बहुत से बदलाव आते हैं।
1

कहानी (जीयो और जीने दो)

4 फरवरी 2022
5
1
0

“जीयो और जीने दो “ ( कहानी -प्रथम क़िश्त)वैसे तो महेश और सुरेश राजपुत सगे भाई हैं पर पिछले तीन वर्षों से उनके बीच छत्तीस का आंकड़ा है। वे एक दूसरे क चेहरा भी देखना भी पसंद नहीं करते हैं । इसकी मूल वजह ह

2

जीयो और जीने दो ( कहानी दूसरी क़िश्त)

5 फरवरी 2022
2
1
0

[ कहानी __ [जीयो और जीने दो दूसरी क़िश्त ] [अब तक क्षीरसागर महाराज ने सुरेश से कहा कि और 2/4 दिन विचार कर लो किसी नए धर्म या पंथ को अपनाना तो सरल है पर उस पंथ की गरीमा को अक्षुण बनाए र

3

जीयो और जीने दो कहानी 3 री क़िश्त

6 फरवरी 2022
1
1
0

( जीयो और जीने दो-- कहानी 3री क़िश्त)15 दिन बाद जब क्षीरसागर महाराज दुर्ग से चले गए तब सुरेश्वसर जी ने अपने बच्चों व अपनी पत्नी से कहा कि मैं अपने बड़े भाई के सामने झुकने को तैयार हूं । मैं दुर्ग

4

जीयो और जीने दो ( कहानी चौथी क़िश्त)

7 फरवरी 2022
1
1
0

[ जीयो और जीने दो ----कहानी चौथी क़िश्त ]इस बीच दुर्ग शहर के दायरे में क विशेष घटना हुई । दुर्ग नगर निगम की बैठक में आम सहमति से यह निर्णय लिया गया कि अब वर्तमान बस स्टैन्ड शहर की ज़रूरत के हिसाब से छोट

5

जीयो और जीने की ( अंतिम क़िश्त)

8 फरवरी 2022
1
1
0

[ जीयो और जिने दो --- कहानी____ अंतिम क़िश्त ]उधर सुरेश्वर जी का व्यापार बुलंदियों को छूने लगा था । साथ ही उनकी पोटिया स्थित ज़मीन की क़ीमत 10 हज़ार रुपिए फ़ीट हो गई थी । कई बड़े व्यापारी उनकी ज़मीन को खरीदन

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए