( जीयो और जीने दो-- कहानी 3री क़िश्त)
15 दिन बाद जब क्षीरसागर महाराज दुर्ग से चले गए तब सुरेश्वसर जी ने अपने बच्चों व अपनी पत्नी से कहा कि मैं अपने बड़े भाई के सामने झुकने को तैयार हूं । मैं दुर्ग की ज़मीनों से अपना दावा छोड़ रहा हूं और पोटिया की जमीनों हेतु स्वीकृती दे रहा हूं । मैं नहीं चाहता कि हमारा झगड़ा मरते दम तक चले और हमारी अगली पीढी पर भी इस विवाद का साया बरकरार रहे । उनकी बातें सुनकर परिवार के सारे सदस्य बेहद खुश हो गए और सुरेश्वर जी का उत्साहवर्धन करते हुए कहने लगे कि आपने बिल्कुल सही सोचा है । हम लोग तो अपनी दुकान से ही इतना कमा लेते हैं कि उस कमाई का ठीक से उपभोग भी नहीं कर पाते , तो क्यूं कुछ बेजान चीज़ों केलिए अपने ही परिजनों से दुश्मनी मोल लेकर रखें । ऐसी दुश्मनी सबके लिए अहितकारी है ।
सुरेश्वर जी के बड़े भाई महेश को जब पता चला कि उसका छोटा भाई दुर्ग की ज़मीनों से अपना अधिकार त्याग रहा है , तो वह बड़ा खुश हुआ । वह उल्टी सोच का आदमी था अत: कटाक्ष करने लगा कि अब आई अक्ल आई ठिकाने पर । महेश सोचने लगा कि संभवत: सुरेश के सिर पर कोई बड़ी देनदारी होगी । जिसकी पूर्ति वह पोटिया की ज़मीनों को बेचकर करना चाह रहा होगा । वरना वह कपटी अपनी तरफ़ से ही मुझे ऐसा आफ़र नहीं देता । महेश ने अपने छोटे भाई सुरेश से कहा कि मैं दुर्ग की ज़मीनें तो लूंगा साथ ही तुम्हें 5 लाख रुपिए और देने होंगे । कोर्ट कचहरी के चक्कर में मेरे जो पांच लाख रुपिए बर्बाद हुए हैं , उसकी भी भरपाई तुम्हें ही करनी होगी तभी मैं इस बात को स्वीकार करूंगा । सुरेश्वर जी ने यह भी स्वीकार कर लिया । इस तरह दोनों भाइयों के बीच का विवाद समाप्त हो गया । 10 दिनों के भीतर सारे कागज़ात तैयार करवा लिए गए और उन्हें रजिस्टर्ड भी करवा लिए गए । फिर अपने अपने हिस्से में दोनों काबिज़ भी हो गए।
महेश की दिमाग़ में कुछ और चल रहा था । उसने हिसाब लगाया था कि बस स्टैन्ड की ज़मीन की क़ीमत लगभग 20 करोड़ होगी और मोतीपारा व स्टेशन रोड की ज़मीनों की क़ीमत 2/2 करोड़ होगी । महेश अब एक स्टील फ़ेक्टरी लगाने की सोच रहा था । उसने एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी तैयार करवा लिया था । संपूर्ण प्रोजेक्ट की लागत लगभग 50 करोड़ थी । उन्होंने आनन फ़ानन में नगपुरा इंडस्ट्रोयल एरिया में फ़ेक्ट्री की ज़रूरत के मुताबिक एक ज़मीन भी खरीद ली । फिर बैंक से 30 करोड़ का लोन लेकर फ़ेक्टरी का निर्माण कराने लगे । साथ ही विभिन्न आवश्यक मशीनों का आर्डर भी दे दिया
उधर सुरेश जी की टीवी की दुकान भी अच्छी चल रही थी । इस बीच उसके बेटे के प्रयास से उन्हें एल जी की सी & एफ़ भी हासिल हो गई । पैसा उनके घर में और बरसने लगा ।
( क्रमशः)