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काश ! फिर कोई ऐसा सवेरा होता

29 अक्टूबर 2021

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काश ! फिर कोई ऐसा सवेरा होता 

जिसमें मैं तेरा और तू मेरा होता

कभी ज़िन्दगी मेरी, तेरे लिए ख़ास होती

कभी तू मेरी धड़कनों का अहसास होती 

कभी अनकहा तेरा, मैं सुन लिया करता 

कभी बाहों में तुझको, भर लिया करता

बहकती साँसों पे तेरा ही पहरा होता 


कभी चंद लम्हों में, खुशियाँ सागर भर होतीं 

कभी तेरे बग़ैर, मेरी अँखियाँ गागर भर रोतीं 

कभी जलता दिया तेरे नाम से ही शब भर 

कभी होती बेक़रारी, तेरे रूठने से पल भर  

जलते, शम्म बन,गर कहीं अँधेरा होता 

काश ! फिर कोई ऐसा सवेरा होता 


मोहब्बत से मेरी, मिलतीं तुझे, अपार खुशियाँ 

कुछ ऐसे हम,पल भर में जी लेते हजार सदियाँ 

इक साए की तरह मैं, तेरा हमसफ़र बनता 

तेरी मुस्कराहट से, मेरी खुशियों का घर बसता

हर फ़िक्र में, बस तेरा ही चेहरा होता 

काश ! फिर कोई ऐसा सवेरा होता 

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