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मानचंद्र को उसके दोस्त संक्षिप्त में अक्सर उसे मैक कहकर बुलाते थे, जो कि शायद कहने और सुनने में उन्हें अच्छा लगता था। मैक आज सुबह थोड़ा जल्दी उठ गया था, क्योंकि आज उसकी बोर्ड परीक्षा का आख़िरी पेपर था
इस समूचे संसार का, ये अकेले बोझ ढोती है ये, ये धरती माँ है, ये भी किसी की बेटी है सच तो यह है, कि हम बोझ हैं एक बेटी पर ना समझ लोग कहते हैं कि बेटी बोझ होती है घर में अहसासों की एक मुक़म्मल सो
<p>काश ! फिर कोई ऐसा सवेरा होता </p> <p>जिसमें मैं तेरा और तू मेरा होता <br> </p> <p>कभी ज़िन्दग