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बेटी

24 जनवरी 2023

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इस समूचे संसार का, ये अकेले बोझ ढोती है 

ये, ये धरती माँ है, ये भी किसी की बेटी है 

सच तो यह है, कि हम बोझ हैं एक बेटी पर 

ना समझ लोग कहते हैं कि बेटी बोझ होती है


घर में अहसासों की एक मुक़म्मल सोंच होती है 

ग़र आँगन में बेटी की, चहल-पहल रोज होती है

बेइंतहा फ़िक्र है उसे भी, घर के दर-दीवारों की 

बेटी, रोती हुई दीवारों के आँसू पोंछ लेती है

ज़िन्दगी के एक मोड़ पर, वो घर छोड़ देती है 

बेटी रोते हुये मुस्कुराने के बहाने खोज लेती है 

वो भी जीना जानती है जिम्मेदारियों की ज़द में  

फिर भी ज़माने की, कितनी रोक-टोक होती है 


‘कल्पना’ सी बेटी, रुख हवाओं का मोड़ देती है 

हजारों साल से जकड़ी हुई जंजीर तोड़ देती है  

कब तलक समझेंगें आख़िर लोग इतनी बात को 

कि दो-दो खानदानों का, बेटी एक जोड़ होती है 

                                     -  सत्येन्द्र  कुमार    


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