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कौशिक

hindi articles, stories and books related to kaushik


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अगर मैं कहूं कि बलात्कार एक मानुषिक प्रवृत्ति है तो शायद आप इसे मनुष्य का अपमान समझेंगे। लेकिन अगर आप इसे पाशविक प्रवृत्ति कहेंगे तो यह पशु का अपमान होगा, क्योंकि कोई पशु बलात्कार नहीं करता।नवजातों से, नाबालिगों से, युवतियों से, वृद्धाओं से, यहां तक कि लाशों से बलात्कार की खबरें आती रही हैं। अभी हाल

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यह दावा है मेरा मैं तुझे याद आता रहूंगा हवा बनकर सांसों में तेरी समाता रहूंगा तेरी रूह भी हो जाये बेचैन सुनकर जिसे लिखकर ग़ज़लें ऐसी मैं अब गाता रहूंगा सो भी ना सकोगे सुकूं से बिछड़कर मुझसे यादों से अपनी ऐसे मैं तुझे जगाता रहूंगा ख़ैरियत तक पूछेंगे लोग मेरी तुझसे ही एक सवाल बनकर तुझे सताता रहूंगा तुम बु

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*है मुझे स्मरण... जाने जाना जानेमन !*है मुझे स्मरण... जाने जाना जानेमन !वो पल वो क्षणहमारे नयनों का मिलनजब था मूक मेरा जीवनतब हुआ था तेरा आगमनकलियों में हुआ प्रस्फुटनभंवरों ने किया गुंजनहै मुझे स्मरण... जाने जाना जानेमन !तेरा रूप तेरा यौवनजैसे खिला हुआ चमनचांद सा रौशन आननचांदनी में नहाया बदनझूम के ब

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👇इस लिंक पर Click करके पढ़ें:- कवि हो तुम

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*दिशाहीन छात्र राजनीति*राष्ट्र के रचनात्मक प्रयासों में किसी भी देश के छात्रों का अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान होता है। समाज के एक प्रमुख अंग और एक वर्ग के रूप में वे राष्ट्र की अनिवार्य शक्ति और आवश्यकता हैं। छात्र अपने राष्ट्र के कर्णधार हैं, उसकी आशाओं के सुमन हैं, उसकी आकांक्

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प्राकृतिक आपदाएं:- कितनी प्राकृतिक कितनी मानवीय सभी आपदा मनुष्य द्वारा उत्पन्न माने जा सकते हैं। क्योंकि कोई भी खतरा विनाश में परिवर्तित हो, इससे पहले मनुष्य उसे रोक सकता है। सभी आपदाएं मानवीय असफलता के परिणाम हैं। मानवीय कार्य से निर्मित आपदा लापरवाही, भूल या व्यवस्था की असफलता मानव-निर्मित आपदा क

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ज़िंदगी ने इस क़दर रूलाया है सारे ख्वाबों को हमने जलाया है ऐसा था हमारी बेबसी का आलम पतझड़ में भी शाख़ों को हिलाया है देखो सुक़ून से सोया है वो बच्चा लगता है उसकी मां ने सुलाया है ना जाने क्यों रो रही है ये बुढ़िया मैंने जबसे इसे खाना खिलाया है मुसलमान महफूज़ नहीं यहां गद्दार ने यह भ्रम फैलाया है उसका ही स

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हर दिन होली और हर रात दिवाली है जब बिहारी की महबूबा होती नेपाली है ग़र यकीं ना आये तो इश्क़ करके देखो फिर समझ जाओगे क्या होती कंगाली है जिसकी खातिर लड़ता रहा वो ज़माने से आज उसी ने कह दिया उसे तू मवाली है जरूर इज्ज़त करता होगा वो उसकी जो ज़ली

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वो जो कहते थे कि तुम ना मिले तो ज़हर मुझे पीना होगा खुश हैं वो कहीं और अब तो उनके बगैर ही जीना होगा चोट नहीं लगी है दिल पे चीरा लग गया है मेरे दोस्त सह लूंगा दर्द मगर इस दिल को उनको ही सीना होगा इश्क़ बहुत था उनको हमसे लेकिन मजबूर थे वो लगता है शादियों के संग ही बेवफ़ाई का महीना होगा संभाल कर रखा था हम

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तुम मुझे लगती बहुत ही प्यारी हो सच-सच बताओ क्या तुम बिहारी हो अब तो होने लगा है प्यार भी तुमसे लगता है फ़नां होने की बारी हमारी हो जो भी आया खुरच कर घायल कर गया जैसे हमारा दिल इमारत सरकारी होभर जाते पेट नेताओं के भाषण से ही जब महंगाई के साथ बेरोजगारी हो लिखेंगे ग़ज़ल हम अपनी मर्ज़ी से ही दुश्मन तुम या स

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तन्हाई किसी की मुस्तकबिल न होखुशियां इतनी भी मुश्किल न होऔर पाने की आशा होअंतिम लक्ष्य हासिल न होप्यार तो सच्चा होलेकिन उसकी मंजिल न होप्रेम में डूबा होस्नेह-सरिता का साहिल न होमन में समर्पण होमहबूबा संगदिल न होज्ञान का भंडार होपर मानव जाहिल न होउससे भी प्यार होजो उसके काबिल न हो .................

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शेरनी भी पीछे हट गयीबछड़े की मां जब डट गयीहमारी कलम वो खरीद न सकेलेकिन स्याही उनसे पट गयीहमारे मुंह खोलने से पहलेदांतों से जीभ ही कट गयीसच बोलने लगा है अब वोसमझो उमर उसकी घट गयीगौर से देखो मेरे माथे कोबदनसीबी कैसे सट गयीकमीज तो सिला ली हमनेलेकिन अब पतलून फट गयीउसने गले से लगाया ही थाकमबख़्त नींद ही उच

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बहुत हुई आवारगी अब तो संभल जाने दो निभाना है मुझे राष्ट्रधर्म मत रोको जाने दो अंधेरा बहुत गहरा है एक चिराग़ जलाने दो खोल दो पिंजरें सारे परिंदों को उड़ जाने दो वे कोई ग़ैर नहीं हैं औलादें हैं मेरी मां की मत रोको उन्हें मेरे गले से लग जाने दो सुना है बहुत शिकायतें हैं उन्हें मेरी ग़ज़ल से करेंगे वो भी

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तक़दीर में केवल खुशियां कब आती हैं सच्चे प्यार में परेशानियां सब आती हैं छुपा ना रहे जब राज़ कोई दरमियांमोहब्बत में गहराइयां तब आती हैं सोचा भूल गया तुझसे बिछड़के लेकिन तेरे संग गुजारी शामें याद अब आती हैं फैल जाती है खुशबू सारी फ़िज़ाओं में तेरे तन को छूकर हवायें जब आती हैं ...................

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हर राम का जटिल जीवन पथ होगा जब पिता भार्या भक्त दशरथ होगा करके ज़ुल्म करता है वो इबादत कहो फिर कैसे पूर्ण मनोरथ होगा नींद आयेगी तुझे भी सुकून भरी जब तू भी पसीने से लथपथ होगा कृष्ण का भी रथ बढ़ रहा नहीं आगे सुदामा के रक्त से सना राजपथ होगा आज भी दुःशासन कर रहा विचरण कानून खरीदने में वो महारथ होगा

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आज लौटकर मिलने मुझसे मेरा यार आया हैशायद फिर से जीवन में उसके अंध्यार आया हैबचकर रहना अबकी बार चुनाव के मौसम मेंमीठी बातों से लुभाने तुम्हें रंगासियार आया हैबहुत प्यार करता है मुझसे मेरा पड़ोसीमुझे यह समझाने लेकर वो हथियार आया हैगले मिलकर गले पड़ना चाहता है दुश्मनलगता है अबकी बार बनके होशियार आया हैमे

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जुबां से कहूं तभी समझोगे तुम इतने भी नादां तो नहीं होगे तुम अपना दिल देना चाहते हो मुझे मतलब मेरी जान ले जाओगे तुम भड़क उठी जो चिंगारी मोहब्बत की फिर वो आग ना बुझा पाओगे तुम इश्क में सुकूं तभी मिलेगा जब जिस्म से रूह में समाओगे तुम प्यार करना कोई वादा न करना वरना बेवफा कहलाओगे तुम अब तो कहते हैं दुश्म

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किसी की मोहब्बत में खुद को मिटाकर कभी हम भी देखेंगे अपना आशियां अपने हाथों से जलाकर कभी हम भी देखेंगे ना रांझा ना मजनूं ना महिवाल बनेंगे इश्क में किसी के महबूब बिन होती है ज़िंदगी कैसी कभी हम भी देखेंगे मधुशाला में करेंगे इबादत ज़ाम पियेंगे मस्ज़िद में क्या सच में हो जायेगा ख़ुदा नाराज़ कभी हम भी देखेंगे

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चक्षुओं में मदिरा सी मदहोशीमुख पर कुसुम सी कोमलतातरूणाई जैसे उफनती तरंगिणीउर में मिलन की व्याकुलताजवां जिस्म की भीनी खुशबूकमरे का एकांत वातावरणप्रेम-पुलक होने लगा अंगों मेंजब हुआ परस्पर प्रेमालिंगनडूब गया तन प्रेम-पयोधि मेंतीव्र हो उठा हृदय स्पंदनअंकित है स्मृति पटल परप्रेम दिवस पर प्रथम मिलन

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गौर से देखा उसने मुझे और कहालगता है कवि हो तुम नश्तर सी चुभती हैं तुम्हारी बातें लेकिन सही हो तुम कहते हो कि सुकून है मुझे पर रुह लगती तुम्हारी प्यासी है तेरी मुस्कुराहटों में भी छिपी हुई एक गहरी उदासी है तुम्हारी खामोशी में भी सुनाई देता है एक अंजाना शोर एक तलाश दिखत

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