कहतें है दिल्ली दिल वालों का शहर है, अब रमन भी दिलवालों के शहर पहोच गया था देखतें है, रमन का स्वागत दिल्ली शहर कैसा करता है, क्या रमन को दिल्ली रास आयेगी या उसका दिल देहला देगी!
दिल्ली के प्लेटफॉर्म पर आकर रमन की ट्रेन रुकती है, रमन अपनी बेग उठा कर उतरते हुए अपने आप से कहता है, रमन लो आगया भाई दिल्ली, भोपाल में तो आज तक अपनी कोई बात नहीं बनी है, लगता है शायद यहाँ अपनी बात बन जाए, कोई दिलरुबा मिल जाए, जो इस दिल पर दस्तक देकर हमेशा के लिए इस दिल में बस जाए! रमन खुद से बात करता हुआ, मुस्कुराता हुआ ट्रेन से उतर कर अपनी मंजिल की तरफ चल देता है! स्टेशन से बाहर आते ही, उसे एक आदमी दिखाई देता है, जिसके हाथों में एक बोर्ड था! उसपर लिखा था वेल कम टू दिल्ली रमन वर्मा! रमन वो बोर्ड देखकर उस आदमी के पास जाकर कहता है, हैलो आप मेरा ही इंतजार कर रहे हो शायद, मैं ही हूँ रमन वर्मा! बोर्ड लिया आदमी कहता है, वेल कम सर आपका स्वागत है, दिल्ली में मैं आपका p a हूँ . आशीष, आपको पिक करने के लिए आया हूँ! वैसे आपके रहने खाने का बंदोबस्त करवा दिया है, हमने सर चलिए आपको वहाँ ले चलता हूँ, रमन आशीष से कहता है, अब चलोगे भी की पूरी बातें यहाँ पर ही बता दोगे! आशीष,,, sorry सर चलिए चलते हैं!
रमन और आशीष कार में बैठ जातें है, और सरकारी गेस्ट हाउस जाने निकल जातें है, गेस्ट हाउस शहर से बाहर विरान जंगल में था! वहाँ ना कोई शोर शराबा था, ना आस पास कोई व्यवस्था थी, ना कोई दुकाने थी, ना लोगों का वहाँ आना जाना था! एक दम सुनसान जगह पर वो गेस्ट हाउस था! जहाँ आशीष, रमन को अपने साथ ले जा रहा था!
कार में बैठने के बाद रमन आशीष से कहता है, हाँ आशीष अब बताओ तुम दिल्ली में कितने समय से रहे रहे हो और तुम प्रोपर कहाँ के रहने वाले हो! आशीष कहता है, सर मैं दिल्ली से ही हूँ, जबसे मेरा जन्म हुआ है तब से मैं दिल्ली में रहता हूँ, उसके पहले पापा और मम्मी राजस्थान में रहते थे! जबसे वो दिल्ली रहने आए वो दिल्ली के बन गए! और एक बार दिल्ली जिसको रास आजाये वो दिल्ली को नहीं छोड़ता और दिल्ली उसे नहीं छोड़ती! रमन हस कर कहता है, आशीष सुना तो बहोत है, दिल्ली के बारे में अब देख भी लेंगे! आशीष कहता है, सर एक बार अगर आपको दिल्ली भागई तो आप भोपाल कभी वापस ही नहीं जाओगे!
आशीष और रमन यूँही हस्ते हसाते बात करते हुए जा रहे थे! की रमन आशीष से कहता है, आशीष ये शहर के बाहर क्यों ले चल रहे हो और कितनी दूर जाना है, तक्रिबन ३० मिनट से ज्यादा हो गए है, और कितना समय लगेगा हमें! आशीष कहता है, सर शहर के अंदर के सरकारी कॉटर का काम चल रहा है, बस कुछ दिनों में पूरा हो जाएगा, जब तक कुछ दिन आपको गेस्ट हाउस में गुजारने होंगे! गेस्ट हाउस शहर से बाहर है, बस वहीं आपको ले जा रहा हूँ, बस हम पहोचने ही वालें है वहाँ! लीजिए पहोच भी गए! रमन गेस्ट हाउस को देख कर आशीष से कहता है, आशीष गेस्ट हाउस तो बहोत बड़िया है, यहाँ ना शहर के जैसा शोर शराब है, ना कोई पोल्युशन, एक दम शांति है, और मनमोहक नजारे है, हर तरफ हरियाली ही हरियाली है!
आशीष कहता है,, जी सर यहाँ का माहोल दिन के समय में मन को मोह लेता है, पर रात के समय में यहाँ एक शांति सी हो जाती है, सुंसान सा हो जाता है! मुझे तो यहाँ रात के समय में आने से डर लगता है! रमन कहता है,, आशीष काहे का डर लगता है, तुम ऐसे माहोल में कभी गए नहीं हो! हमारे यहाँ तो नाना नानी के गाँव में हम रात के अंधेरे में खेत में घने जंगल में चले जाते थे, मुझे तो ऐसा माहोल बहोत पसंद है,मुझे डर नहीं लगता ऐसी जगाहों पर!
आशीष कहता है,, ठीक है सर चलिए अंदर चलते हैं, रमन और आशीष जब गेस्ट हाउस के अंदर जाते हैं, तब रमन को ऐसा महसूस होता है, की कोई उसके पीछे से गुजर के गया रमन जब पलट कर देखता है, तो उसे कोई भी नजर नहीं आता रमन अंदेखा कर गेस्ट हाउस की खूबसूरती को देखने में खो जाता है! और आशीष से कहता है,,, आशीष गेस्ट हाउस तो बहोत सुंदर है, मुझे यहाँ बहोत अच्छा महसूस हो रहा है! आशीष कहता है,,, सर आप का रूम तैयार है, आप फ्रेश हो कर आराम कर लीजिए सफर से थक गए होंगें आप और कल आपको जोइंन भी तो करना है,, शाम होने पर आई है, अब मुझे जाना होगा, आपके रात के खाने की व्यवस्था हो गई है, पास के गाँव से, रामु काका आकर आपको खाना बनाकर देकर जायेंगे, और बाकी चीजों की व्यवस्था मैंने करदी है, फ्रीज़ में सब कुछ रखा है, और किसी चीज की जरूरत हो तो मुझे रात में फोन मत करियेगा में रात में यहाँ नहीं आऊंगा मुझे बहोत डर लगता है!
इतना बोलकर आशीष अंधेरा होने से पहले वहाँ से निकल जाता है!
रमन फ्रेश होकर अपने रूम में आराम करने चले जाता है, तक्रिबंन ७ बजे दरवाजे पर दस्तक होती है,और साहब साहब की आवाज रमन को सुनाई देती है, रमन उठ कर अपनी आँखो को मसलते हुए दरवाजा खोलता है, और अंगड़ाई लेते हुए कहता हाँह,, कौन हो तुम दरवाजा ठोक कर मेरी नींद खराब करदी तुमने! साहब में रामु पास के गाँव में ही रहता हूँ, आशीष साहब ने तो बताया होगा आपको मेरे बारे में, मैं आपका रसोईया हूँ, खाना बनाने आया हूँ! रमन कहता है,, अच्छा अच्छा तो आप हो रामु काका, रामु काका यार जल्दी से कुछ खाने को बनादो बहोत भूख लगी है, पेट में चूहे दौड़ रहें है! रामु काका,,, जी साहब अभी गरमा गरम बना कर परोसता हूँ!
रामु काका खाना बनाकर रमन को परोस कर देते हैं, तब रमन रामु काका से बात करता है, और गेस्ट हाउस के बारे में पूछता है,, रमन,, अच्छा रामु काका एक बात बताओ यहाँ सब कुछ इतना सुंसान क्यों है, ना आस पास घर है, ना लोगों की चहल पहल है, ऐसे माहोल में तो रहने के लिए ही तो लोग आज कल शहर से बाहर घर बनवा रहें है, तो यहाँ इतना सुंसान क्यों है!
रामु काका,,, साहब मैंने सुना है, की कुछ बरस पहले यहाँ एक लड़की ने खुदको फासी लगा दी थी! वो भी आपही की तरह यहाँ रहने आई थी! उसके मरने के बाद से, यहाँ लोगों का आना जाना कम हो गया है, यहाँ अब कोई रहने नहीं आता आज ये गेस्ट हाउस कई सालों बाद आपके लिए खुला है, वर्ना यहाँ अब कोई रहने नहीं आता है! रमन,,, क्या रामु काका आपभी ना बिना वजह डरा रहे हो ऐसा कुछ भी नहीं होता है! ये सब आप लोगों का वहम है! रामु काका,,, नहीं साहब कहतें है, आज भी आधी रात के बाद उस लड़की की आत्मा पुरे गेस्ट हाउस के आस पास घूमते हुए दिखाई देती है,, आप अपना खयाल रखना और दरवाजा खोलकर बाहर मत जाना! अपने कमरे में ही रहना कोई भी आवाज हो फिर भी कमरे के बाहर मत निकलना! अच्छा साहब अब में चलता हूँ, १० बजते आरहे हैं, मुझे निकलना चाहिए अपना खयाल रखियेगा!
रमन हस्ते हुए कहता है,,, ठीक है, रामु काका आप जल्दी जाइये, वर्ना कहीं उस लड़की की आत्मा आपको ना पकड़ ले!
रामु काका के जाने के बाद रमन खुद से कहता है, देख रमन आज के जमाने में भी लोगों को भूत प्रेत आत्माओं पर विश्वास है, चल भाई रमन तुझे इन सब से क्या लेना देना, अपना पैक् बना और लगा कर सोजा, कल ऑफिस जोइंन भी करना है!
रामु काका के जाने के बाद रमन ड्रिंक बनाकर पी रहा था! तक्रिबंन् रात के ११ बजे थे! की रमन को खिड़कियों के टकराने की आवाज सुनाई देती है, रमन खिड़की के पास जाकर गेस्ट हाउस के बाहर देखता है, तो उसे कोई दिखाई नहीं देता है, तब रमन की नजरे सामने वाले पेड़ पर पड़ती है, पेड़ को हिलता देख रमन कहता है , ये खिड़कियां हवा के चलने के कारण टकरा रही है, इसे बंद कर देता हूँ वर्ना रात भर खामख़ाँ नींद खराब कर देंगी! रमन खिड़की बंद करके वापस ड्रिंक करने चले जाता है, रमन जैसे शराब से भरे प्याले को अपने होठों से लगाता है, फिर से खिड़की खुल जाती है, और जोर से खिड़कियों की टकराने की आवाज आती है, रमन मन ही मन कहता है, अभी तो खिड़की लगा कर आया था! ये फिरसे कैसे खुल गई! रमन खिड़की को फिरसे बंद कर देता है! और वापस ड्रिंक करना शुरू कर देता है!
अभी रमन खिड़की बंद करके आया ही था! शराब पीने बैठा ही था! की उसे ऐसा लग रहा था! की उसके पीछे कोई खड़ा है, रमन झट से अपना प्याला रख कर पीछे मुड़ कर देखता है! तो उसे गेस्ट हाउस में लगे पर्दे हिलते हुए दिखाई देतें हैं! तब उसे लगता है, शायद हवा के चलते पर्दे हिल रहे थे! उसके पीछे कोई नहीं है! कुछ समय बाद फिरसे रमन के पीछे से किसी के जाने की आहट सुनाई देती है, रमन मुड़कर देखता है तो कोई नहीं था! रमन खुद से नशें में बातें करता हुआ उठ कर रूम में सोने के लिए चला जाता है!
रमन बाबू लगता है, आज शराब कुछ ज्यादा ही हो गयी है, नशा कुछ ज्यादा ही हो गया है, नशे के चलते तुम्हें भी रामु काका की कही बातों का भ्रम हो गया है! चल अब सो जाना ही बेहतर!
रमन सोने चला जाता है, रमन की नींद अभी लगी नहीं थी की गेस्ट हाउस में लगी घड़ी का घंटा बजने लग जाता है, टन टन टन टन रमन की नींद खुल जाती है, और गुस्से में चीखने लगता है, कौन है बे जो इतनी रात को घंटा बजा रहा है, रमन अपनी आखों को रगढ़ते हुए, लड़खड़ाते हुए गेस्ट हाउस के हॉल में पहोचता है, वो देखता है, रात के १२ बजे घड़ी का अलाराम बज रहा है, रमन घड़ी का अलाराम बंद कर फिरसे सोने चला जाता है, कुछ २ मिनट बाद फिरसे घड़ी का अलाराम बजता है!
रमन इस बार गुस्से में जाकर घड़ी को तोड़ देता है, घड़ी के तुटने ने के बाद अलाराम बंद हो जाता है, रमन जैसे ही वापस अपने रूम में जाने के लिए कदम बढ़ाता है, अलाराम फिरसे बजने लगता है, और गेस्ट हाउस की लाईट बंद चालू होने लग जाती है, रमन घबरा जाता है, और उसे रामु काका की कही बात याद आती है! तब वो जल्दी से अपने रूम में घुस कर खुद को बंद कर देता है, और अपना फोन निकालकर कर आशीष को फोन करता है, पर रमन के मोबाइल में नेटवर्क ना होने की वजह से उसका फोन आशीष नहीं लग पाता है! कुछ समय तक ये सब चलने के बाद अचनाक से घड़ी का घंटा बजना बंद हो जाता है! और लाईट भी चालू हो जाती है! एक दम सन्नाटा सा हो गया था! अचनाक से सारी आवाजें आना बंद हो गई थी रमन को अब ऐसा लग रहा था! की कब सुबह हो और वो वहाँ से अपनी जाँन बचाकर वहाँ से भाग सके! की रमन को एक आवाज सुनाई देती है, छन छन छन ये आवाज पायल में लगे घुंघरुओं की थी! वो अब काफी घबराया हुआ था! रूम के एक कोने में दुबक कर बैठा था! और सुबह होने का इंतजार कर रहा था! घुंघरुओं की आवाज धीरे धीरे और भी तेज होते जा रही थी! गेस्ट हाउस के पास और आती जा रही थी! रमन अपने कान बंद करके उस आवाज से अपना पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रहा था! पर वो आवाज और भी नजदीक आते जा रही थी! रात के सन्नाटे में, वो आवाज जैसे गूंज रही थी! रमन के हाथों को वो आवाज चिरते हुए उसके कानों तक जा रही थी! की अचानक दरवाजे पर दस्त्क् होती है, थक थक थक थक रमन घबरा जाता है और चिल्लाते हुए अपने कानों को अपने हाथों से और भी जोर से दबा देता है! कुछ देर तक दस्तक होने के बाद घुंघरुओं की आवाजें कम होती जा रही थी! जैसे कोई दरवाजे तक आकर वापस जा रहा था! धीरे धीरे घुंघरुओं की आवाजें कम होते देख रमन गेस्ट हाउस का मेंन दरवाजा खोलने की हिम्मत करता है, और जैसे ही वो दरवाजे के बाहर इधर उधर झाक कर देखता है! की अचनाक से उसके सामने एक खूबसूरत लड़की आजाती है, जो रमन की आँखों में देख कर उसे अपने साथ चलने का हाथों से इशारा करती है, रमन अपनी सुध बुध खोकर उस लड़की के पीछे जाने लगता है, जैसे उस लड़की ने उसको वश में कर लिया हो! वो लड़की बहोत खुबसुत दिखाई दे रही थी! वो आगे आगे चल रही थी! रमन उसके हाथ की कटपुतालि की तरह उसके इशारों पर उसके पीछे पीछे जा रहा था! की अचनाक से रमन के कंधे पर कोई हाथ रख कर उसे कहता है श् श् श् श् आवाज मत करना वर्ना वो तुम्हें और मुझे यहीं खत्म कर डालेगी! वो हाथ वो आवाज रामु काका की थी! रामु काका रमन को उस लड़की के नजरों से धीरे धीरे हटा कर वहाँसे अपने गाँव ले जाता! और रमन को उसके चंगुल से छुड़वाता है! दूसरे दिन रामु काका रमन से कहतें हैं! साहब आपका नसीब अच्छा जो में वहाँ पहोच गया वर्ना वो रात आपके जीवन की आखरी रात होती! रमन रामु काका को धन्यवाद करते हुए कहता है, कल की रात मैं कभी भूल नहीं पाऊँगा! खौफ की वो रात!!!!
क्रमश,,,,,
यह रचना काल्पनिक है, इसका किसी व्यक्ति किसी स्थान किसी समुदाय से कोई संबंध नहीं है, यह रचना मनोरंजन के लिए लिखी गई है,, 🙏🏻
sunny madhwani( udasi)