अब राजेश को जीवन यापन करने के लिए छोटा छोटा मोटा सा काम करना पड़ा।व्यापार ठप हो जाने की वजह से सपना और राजेश किराए के मकान में रहने लगे। 2 साल बीत जाने के बाद भी राजेश के व्यापार में जरा भी सुधार नहीं हुआ। इसी बीच वह दो से तीन भी हो गए ।अब उनके खर्चे भी बढ़ गए थे। लेकिन फिर भी उनकी जिंदगी सही तरह से पटरी पर चल रही थी। सपना के पापा ने कई बार उनकी मदद करनी चाही परंतु राजेश एक स्वाभिमानी इंसान था।ना तो उसने अपने पापा से और ना ही उसने सपना के पापा से कोई मदद लेनी उचित समझी। बहुत हाथ पैर मारने के बाद भी उनके हालात उभरे नहीं बल्कि गिरते चलेंगे जिस कारण उन दोनों के रिश्ते में भी खटास आने शुरू हो गई। राजेश जिस व्यापार में हार डालते हैं वही व्यापार उनका कुछ दिन चलकर बंद हो जाता उनकी तो जैसे किस्मत ने ही साथ छोड़ दिया हो। बार-बार व्यापार बदलने के कारण राजेश को बार-बार किराए का मकान की बदलना पड़ा।सपना तंग आ चुकी थी बार-बार समान ढूंढ होकर दूसरी जगह बसेरा बसाने से। वह अपनी जिंदगी से ऊब चुकी थी।
सपना के पापा ने सपना से कई बार कहा कि बेटा तुम मेरे पास आ जाओ मैं तुम्हें अपने साथ काम करवा दूंगा। क्योंकि मैंने अपनी बेटी का दरबदर सामान ढोकर भटकना अच्छा नहीं लगता था।