किशोर- वय को संभालना बहुत जरूरी है
इस सूटकेस और डैगर कल्चर में अवांछनीय प्रस्ताव ,असभ्य बर्ताव पर सख्ती से न कहना सीखो
........... क्षेत्रपाल शर्मा
बंगाल में कन्या को मामोनी, अर्थात मां मणि, Gem of mother कहकर कन्या को प्रारंभ से सत्कार देने की पृथा है,यही भाव मराठी में आई (मां)का है । दक्षिण भारत में भी यह आदर सम्मान भरा हुआ है। उत्तर भारत में देवी पूजन के समय कन्या लांगुर जिमाने का भाव तो है, पर कई पीढ़ियों की गुलामी और फलस्वरूप इस संक्रमण काल के कुप्रभाव , मोबाइल के प्रभाव और नशे की लत ने किशोरों से एक झपट में संस्कार छीन लिए हैं, झूठ फरेब और दिखावे से, दूसरों के सामने बड़ा दिखावा करने की खोखली गिलेट का आवरण ओढे हुए हैं।
अभी हाल में ,बंगलौर में घटित महालक्ष्मी घटना झकझोर देने वाली है। स्त्री शक्ति वह शक्ति है जिसने भगवान तक .को जन्म दिया है। मेरे इस लेख को लिखने का प्रयोजन यही है कि एक छात्र अपनी सहपाठिन को छिनार का संबोधन कर रहा था। वस्तुत: उसने अपनी मां को ही कलंकित कर दिया। फेसबुक पर यदि आप स्कंद शुक्ला को इस विषय में पढ़ेंगे जिसका संदर्भ नीचे दिया है , तो किशोर की मन:स्थिति जिसमें कि यह उम्र अवयवों के बदलाव की तो है ही यह बदलाव मस्तिष्क का भी हो रहा होता है, इस आयु में कई तरह के विरोधाभासी मनोवेग बच्चों के मस्तिष्क में चलते रहते हैं। इसलिए विशेष रूप से 12 से 20 तक इन पर थोड़ा ध्यान रखें, कहीं देर हुई तो आपके बच्चे के विषय में आपसे अधिक आपके पड़ोसी जानेंगे ,पर आपको संभव है, न बतायें।
शिशु के बाद की अवस्था , जिसे हम किशोर और किशोरियों से भी जान सकते हैं बहुत ही संवेदनशील इसलिए होती है कि इसमें हारमोंस डेवलप करते हैं इन हारमोंस के कारण बच्चों में जिद चिड़चिड़ापन तनाव और बहुत सारी चीज देखने को मिलती हैं उनमें क्रोध भी हो सकता है ।यह उम्र ऐसी होती है कि इतनी कच्ची होती है कि इसमें सही-सही तरीके से उनको अच्छे और बुरे का ज्ञान भी नहीं होता। अध्ययन के तौर पर हम कानपुर में घटे दीक्षा तिवारी डॉक्टर के केस और मुजफ्फरपुर में हुए नौकरी के झांसे में कई लड़कियों को जैसा उनके साथ डीप फेंक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से आवाज बदलकर लालच देकर बुलाया गया और क्रूरतम विश्वास घात किया गया। डा दीक्षा तिवारी चोर और किशोरी के बॉर्डर लाइन पर ही इसलिए है कि उन्हें जिंदगी का ज्यादा तजुर्बा नहीं था, बच्चों ने कहा चलो पार्टी करते हैं और वह हां कह दिया । बच्चों को ना करना सीखना चाहिए। बच्चों के सबसे ज्यादा अगर कोई मित्र हो सकते हैं , अपवाद को छोड़कर तो , वह मां और बाप ही हो सकते हैं ।हर छोटी बड़ी बात का विवरण अपने घर जाकर बच्चों को अपने मां-बाप को सूचित करना चाहिए ।कभी भी किसी के अकारण या सकरन बुलाने पर घर नहीं जाना चाहिए । आप नहीं जानते उनके जीवन शैली क्या है और किसी के यह कहने पर के चलो वहां पार्टी करते हैं तो मित्रता इस हद तक कि नहीं होनी चाहिए कि हम .मित्र से या पार्टी से कोई मित्रता नहीं होती कैसे पार्टी आपका मित्र है यह पासिंग रेफरेंस है एक दो साल का कि आप उसके साथ पढ़ रहे हैं ।आप अध्ययन तक ही सीमित रहिए ।न किसी के घर जाइए और ना अपने घर बुलाए ,और ना किसी की पार्टी पार्टी में शामिल हो। घर का भोजन सर्वोत्तम ।
प्रताप नारायण मिश्र जी ने आप निबंध में पहले ही लिखा था ,
धार उतर गई तरवारिन की तो करछुल के मोल बिकाएं।
यह आपका स्वाभिमान है जिसको आप जितना संभालेंगे आप उतना ही उन्नत होते जाएंगे ।आपकी वाणी में ओज नहीं रहा ,वाणी दूषित हो गई, गाली गलौज भरी हुई हो गई शब्द मुंह से निकल गया तो वह वापस नहीं आना है वह आपके जीवन भर हिट करेगा। वैसे किशोर वय में सोशल मीडिया फेसबुक यूट्यूब ट्वीट आदमी इतना विषाक्त वातावरण पैदा कर दिया है ,तो उसे बचपन उनके लिए बचा पाना संभव ही नहीं है ।जब तक मां-बाप समझ पाते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और किशोर इस हालत में है नहीं ,कि अपने आप संभल जाएं । अकेले रहना , बुरे लोगों के साथ रहने से तो अच्छा है। न्यू फेसबुक से जो ज्ञान बटोरने का धंधा चल रहा है वह कोई ज्ञान नहीं है ,ना वह सूचना है , मात्र टाइमपास/छलावा है जैसे कि परीक्षा के लिए तैयारी करवाना, फिर पेपर लीक हो जाना और इसी तरह हंसते खेलते जीवन के बहुमूल्य समय को बर्बाद करना। आप लोगों के झांसे में ना आए और नहीं विद्या की अर्थी निकालने में लगें । करते हैं तो, जान लीजिए सूर्यपुत्र से सूत पुत्र बनने में बस एक चांस क्लिक का अंतर है।
बच्चों में परिवार की मर्यादाओं का ध्यान नहीं रहता है, ओर वे इस अल्हड़ उम्र में ऐसी हरकत कर बैठते हैं कि परिवार की इज्जत पर दाग धब्बे से बदनाम कर देते हैं। इसीलिए साहित्यकार और नाटककार विलियम शेक्सपियर ने सच कहा था पिता केवल वही बुद्धिमान होता है जिसको अपनी संतान के बारे में पूरी जानकारी होती है। छोटी मोटी आदत है आदतन अपराध का रूप ले लेती है फिर इस व्यवहार के लिए उन्हें कोई पछतावा नहीं होता, वह इस तरह धंसते जाते हैं । परिस्थिति वश नहीं वे पृवृत्तिवश अपराध करने लग जाते हैं ,और जब वह अभ्यास में आ जाता है तो वह पशु बन जाता है
इस समय मुझे वह विजुअल मिल नहीं पाया वरना मैं यहां इसलिए एक में जरूर लगता जो के किशोर भाई में प्रेम के ऊपर बातों को लेकर है। आप फेकू किस्म के इंसान ना बने। एक क्लास रूम में पीछे बैठा एक बच्चा अपने आगे सहपाठी को एक चुपके से सबकी नजर बचाकर फूल देता है और वह चुपके से ले भी लेती है जीवन के कुछ वर्षों बाद भट्टी पर लोहा गरम कर रहा होता है , और वह लड़की हथौड़े से उसे पर चोट मार रही है। मां-बाप की गाड़ी कमाई को सोच समझकर उपयोग करें । जीवन में मंजर या दृष्य़ कब बदल जाए, उसके लिए आप तैयारी अभी से कर लीजिए।
किशोर वय के सामने बहुत बाधाएं हैं समाज की बाधाएं हैं और कई किस्म की बाधाएं हो सकती है, जीवन में गलतियां होंगी लेकिन हमारी समझदारी यह होगी कि हम हर गलती कुछ से सीखे और वैसी गलती दोबारा ना करें। उत्पत्ति का एक सुगम मार्ग है कि हम अपनी गलतियों से सीखेंगे और उनमें सुधार करते हुए आगे बढ़ेंगे। मां बाप के नाम को रोशन करें और उनको अधिक परेशानियों में ना डालें । शिक्षा का मतलब आप कुछ सीखने समझने के लिए विद्या मंदिर में आते हैं ना कि अपने अभि- भावकों को और संकट में डालने के लिए और समाज के लिए श्रृंखलाबद्ध रूप से विषपाई बनाने के लिए । आप हर परिस्थिति में सूझबूझ कर निर्णय लें।और चीजों को सही दिशा दें। किसी की खिल्ली न उड़ाएं, कोई असहयोग का वातावरण दे रहा है तो उसका बहिष्कार करें। हिम्मत बिल्कुल मत हारिए प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सही दिशा की पहल करें।
यह सन 84 की बात होगी मैं आकाशवाणी पुणे में अपनी रिकॉर्डिंग करने वहीं के हिंदी विशेषज्ञ राजाराम नलगे के साथ गया था ,साथ वाले कमरे में उस समय के प्रसिद्ध विनोदी साहित्यकार पुरुषोत्तम लक्ष्मण देशपांडे जी की रिकॉर्डिंग भी हो रही थी कुछ दिन बाद मुझे जो एक स्थानीय समाचार पत्र में पांडे जी की एक मराठी कविता पढ़ने को मिली थी, सोचता हूं वही भाव किशोर और किशोरियों में होना चाहिए
मी गवत आहे ,कापले तरी वाढडार आहे,
हिंदी अर्थ कुछ इस प्रकार होगा कि मैं घास हूं , काटोगे तब भी उगूंगी,
क्यों कि उगना ही मेरा धर्म है, मैं हवा हूं, रोकोगे तो , तो रोक नहीं पाओगे
परिवारों में किशोर वय बच्चों को संभालना बहुत टेढ़ी खीर है। इसमें आपके संस्कार और परंपरा और आदतों को समझकर इस उम्र में बच्चों की गतिविधियों पर हर तरह से नजर रखना जरूरी है।
बच्चे सबसे ज्यादा इमिटेशन से सीखते हैं जिसको हम शब्दों में नकल कह सकते हैं असल बनने में बहुत मुश्किल काम होता है रीजनल और कॉपी का जो अंतर है मानवीय स्वभाव में जन्मजात गुणों को विकसित करना है।
दूसरे बच्चे अपने आसपास तुलना से सीखते हैं फलाने के पास यह चीज है तो उनके पास भी होनी चाहिए उसमें अगर पारिवारिक वित्तीय स्थिति ऐसी नहींभी है तो बैग बोरो एंड स्टील का सिद्धांत अपनाते वह कई बार बनावटी ईमानदारी ओढ़ने का प्रयास करते हैं,बड़ों के आंख में धूल झोंकने का प्रयास इसलिए करते हैं तो उनके एब बड़ों की नजर में ना आ जाए यह सब जीवन जीने के शार्टकट अपनाते है ,अच्छे रास्ते से भटकने पर जल्दी उन का पतन हो सकता है, मां-बाप यह समझते हैं कि बच्चे स्कूल गए हैं बच्चे स्कूल न जाकर घूम फिरने चले जाए रेस्टोरेंट चले जाएं और वहां पार्टी करें पैसा उड़े जो खर्च हुए उनकी पूर्ति करने में उन्हें कई बार घर से ही सही झूठ बोलकर ही सही मां-बाप से पैसा लेना पड़ता है और जिसे करनी वजन परिवार पर पड़ता है तब यह सोचने वाली बात है कि हम स्कूल को आखिर क्या समझ बैठे हैं, थिएटर या स्टूडियो, क्या बच्चा यह समझ के स्कूल जाता है और बच्चों में जो बुरी आदत है उनको सीख के आया जाए यह सोच कर जाता है कि हमें कोई मार तो सकता नहीं तो फिर क्यों ना मटरगश्ती की जाए हम यह मानने को विवश हो जाए की स्कूल थिएटर हाउस से या क्लब हाउस है आपसे कुछ कह नहीं सकता और टीचर की बात आप अनसुनी करेंगे ,तो धर्म को कैसे निभा सकते हैं अभी आपको मालूम है कि पुणे में दसवीं पास करने के बाद बच्चों ने महंगी गाड़ी से दो जान कुचल डालें तो यह आज के युग का सबसे बड़ा अभिशाप है ।मां-बाप समझते हैं कि बच्चा हमारा सही है अच्छा जा रहा है रे पार्टी करने अच्छा जा रहा है फार्म हाउस में ,आप उसके साथ 24 घंटे लगते नहीं रह सकते । जागरूक बच्चों को स्वयं बनना पड़ेगा कि मेरे कदम फिसल न जाए और समय निर्माण का है ना कि संकट का ,।संहार आपके व्यक्तित्व का हो रहा है अगर आप बुरी आदतें सीख रहे हैं आप रेव पार्टियों में जा रहे हैं, शौकीन हो रहे हैं और एक झूठ बोलने लग गये तो वहां अनेक दुर्गुण दोस्ती करने चले आते हैैं।
शेक्सपियर ने कहा है कि अच्छी औलाद से बढ़कर विरासत और कुछ हो नहीं सकती।
स प्रयोजन ही मोबाइल का प्रयोग करें ,मोबाइल में एक से एक गंदी चीज भरी पड़ी है बेहतर हो आप इसका सीमित प्रयोग केवल अध्ययन के लिए करें ,मनोरंजन की यह वस्तु हो नहीं सकती ,और पश्चिमी देशों के मनोरंजन और हमारे अपने मनोरंजन में जमीन आसमान का अंतर हमारे आंखों की शर्म है बाद श्रद्धा भाव और नतमस्तक होने का भाव उत्पन्न करती है हमारे यहां जुड़ाव है दोराब नहीं है हमारे यहां पड़ोसी भी चाचा ताऊ सेपूरा गांव और पूरे मोहल्ले चाचा ताऊ से भरे पड़े ,वह अपने या दूसरे के नहीं हो सकते वह सब हमारे अगर यही भावना रही तो समाज सुधार होगा और अच्छा होगा।
प्रेम बहुत ही गहरी चीज है, यह आयु किशोर किशोरियों के पढ़ने की है।
किसे समझ आया भला प्रेम नाम का रोग?
उलझ उलझ कर रह गये,सुलझे सुलझे लोग।।
जीवन एक रस्सी की मानिन्द है इस में आप फंदे आगे की तरफ लगा सकते अगर आप पीछे की तरफ लगाएंगे तो रस्सी बर्बाद हो जाएगी ,रस्सी रस्सी नहीं रही में आप फंदे जो लगाते हैं वह अच्छे लगाइए ताकि आपका जीवन बना रहे अपने उल्टे फंदे लगना शुरू किया तो आपका जीवन बर्बाद होने में कोई नहीं रोक पाएगा ।हम दूसरों का भी आदर करें और आप अपना स्वाभिमान बचाए रखें अपने मुंह से कोई अप्रिय बात कड़वी बात अपने साथियों के लिए ना बोलें, गाली तो बहुत दूर की बात है । गाली तो देने का सोचो,ही नहीं हमें किन शब्दों का प्रयोग करने से बात बन जाएगी और कभी किसी के लिए छोटे रास्ते से दूसरे को नीचा दिखाएंगे तो आप स्वयं नीचे देख जाएंगे। सद्गुणों से अपने सब व्यवहार से अपने परिश्रम से अपने स्वाध्याय से और अपनी उपलब्धियां से एक आगे वाले की लाइन से लंबी लाइन खींची बड़े बनने का एक स्वीकृत मार्ग है ।दूसरे को नीचा दिखाकर आप खुद बड़े बनने की कोशिश करें ,तो तो वह इस जीवन में संभव नहीं है
'जो दिया उजाला दे न सके
तम के चरणों का दास रहे
अंधियारी रातों में सोए
दिन भर सूरज के पास रहे
जो केवल धुआं उगलता हो
सूरज पर कालिख मलता हो
ऐसे दीपक का जलने से
पहले बुझ जाना बेहतर है।।'
बेहतर है कि आप अपने कर्तव्यों पर ध्यान दें ।आप की पहले प्रायरिटी स्टडीज की है। अच्छे पढ़े-लिखे बुजुर्ग व्यक्तियों की संगत में आधा एक घंटा गुजारें, धर्म ग्रंथ पढ़ा करें आधा एक घंटा अखबारों को भी नियमित रूप से देखा करें ताकि देश प्रदेश की खबर मिले, व्यावसायिक योग्यता विकसित हो मनन करें, पुस्तकों को पढ़ें अपने मन को सत्प्रवृत्तियों व प्रयासों में लगाएं।।
आज का समय एक पासिंग रेफरेंस भर है, कल न जाने उस व्यक्ति से किस रूप में मुलाकात हो। तब एक दूसरे से नजर फेरनी पड़े या शायद न पड़े , यह आज के आपके व्यवहार पर निर्भर करता है।
याद रखें न्याय का तकाजा है कि वह अपराध की सजा फिर जरूर देगा, देर सवेर हो सकती है । अपराध करते ही जिसने देखा है, उसे शत्रु मानने लग जाएंगे शत्रु को जब भी मौका मिलेगा तो आपसे बदला लिए बगैर रहेगा नहीं और इस प्रक्रिया में कोई न कोई बड़ा कांड होकर रहेगा जैसा जबलपुर में मुकुल नाम के लड़के ने नाबालिग लड़की का हंसता खेलता परिवार बर्बाद कर दिया।
और हमेशा ही , शराब ,सट्टा और फरेबी बातों से दूर रहें।और याहू और गूगल एप्रोच की बनावटी चीजों से परहेज़ करें।
'कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन॥ '
रहीम कहते हैं कि स्वाति-नक्षत्र की वर्षा की बूँद तो एक ही हैं, पर उसका गुण संगति के अनुसार बदलता है। कदली में पड़ने से उस बूँद की कपूर बन जाती है, अगर वह सीप में पड़ी तो मोती बन जाती है तथा साँप के मुँह में गिरने से उसी बूँद का विष बन जाता है।
संदर्भ :
https://m.facebook.com/skandshukla22?wtsid=rdr_0uU2JQPwAZJCykx5H
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