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कोई तो हमें थाम लो

रेणु प्रसाद

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बालपन से गुजरते हुए यौवन की दहलीज पर कदम रखने से पहले हर बच्चे को एक बड़ी ही कठिन अवस्था से होकर गुजरना पड़ता है और यही अवस्था उसके भविष्य निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है | अगर उन गलियों की भूल- भुलैया से बचकर वह निकल जाता है तो जिन्दगी बन गयी नहीं तो जीवन भर वे उलझनें उसका पीछा नहीं छोड़तीं | यह है किशोरावस्था .....बचपन और जवानी के बीच का संधिकाल....हार्मोनल चेंजेज से गुजरता हुआ बड़ा ही जोखिम भरा समय | बड़ी ही विचित्र कहानी होती है - न तो मन से पूर्ण विकसित और न ही तन से पूर्ण विकसित और मजे की बात यह है कि समझते वे अपने को किसी से कम नहीं | झल्लाहट तब होती है जब उनकी गिनती न तो बड़ों में होती है और न ही छोटों में |छोटों के बीच हों तो बड़े होने का ताना और बड़ों के बीच बैठ जाएं तो छोटे होने का उलाहना | ऐसे में वे जियें तो जिएँ कैसे ? लगभग सारा किशोर वर्ग यानी ‘टीनएजर्स’ अनेक अलग –अलग कारणों से शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का शिकार है | मन से पूरी तरह समझदार न होने के कारण प्रतिकूल परिस्थितियाँ आने पर मन में एक डर समा जाता है चाहे वह पिता की डांट का डर हो या शिक्षक की डांट का, किसी अनजान व्यक्ति की धमकी का या किसी रिश्तेदार के द्वारा अनैतिक दबाब का डर और इस भय का शासन तब तक मन पर चलता रहता है जब तक कोई सही दिशा निर्देश देने वाला नहीं मिल जाता है| मार्गदर्शक का भी कार्य भी तब तक उतना सरल नहीं होता है जब तक उन्हें वह अपने विश्वास में नहीं लेता| अपने शिक्षण कार्य के दौरान मुझे ऐसी अनेक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा क्योंकि मेरा सम्बन्ध इसी उम्र के बच्चों के साथ था | इस उम्र के बच्चों को समझने और उनका विश्वास जीतने के लिए बड़े धैर्य और संयम की जरुरत होती है ऐसा मेरा अनुभव है | ऐसी स्थिति में चाहे उसके माता- पिता ,शिक्षक या रिश्तेदार हों सभी को अपना व्यवहार संतुलित रखने की आवश्यकता होती है| इस पुस्तक को लिखने का मेरा उद्देश्य कुछ इन्हीं से सम्बंधित परिस्थितियों, समस्याओं और समाधान की ओर सबका ध्यान आकर्षित करना है | मेरी सभी कहानियां किशोर वय के मनोभाव ,उलझनों और भटकाव में घिरती हैं लेकिन उनसे उबारने के लिए उनका हाथ थामने के लिए उनके अभिभावक या शिक्षक या कोई रिश्तेदार आगे आते हैं जिनके सहारे उन्हें भटकाव से मुक्ति मिलती है| चाहे वह ‘बहकते कदम’ की मिस श्यामली हो या ‘विरक्त मन’ की मौली मैम हो अथवा ‘इम्तिहान’ का जतिन | जहां ऐसे मार्ग दिखानेवाले नहीं होते वहीँ ये रास्ता भटक जाते हैं या आत्महत्या करने को अग्रसर हो जाते हैं | इसलिए जरुरत है कि हम इस उम्र की पेचीदगियों को समझे और उसी के अनुरूप व्यवहार करें | वर्तमान में इस उम्र के सामने इंटरनेट ,सोशल मीडिया आदि के कारण चुनौतियां और भी ज्यादा बढ़ गयी हैं | इन्हें हमारे छाँव और मार्गदर्शन की जरुरत है | इस दिशा में भी बहुत कुछ किया जा रहा है लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है | बच्चे के भविष्य के निर्माण की नींव तो इसी समय पड़ जाती है और नींव ही खोखली रहेगी तो भविष्य की इमारत बुलंद कैसे होगी ? इस नींव को हमारे सहारे की जरुरत है और जिस प्रकार एक भवन निर्माण करने वाले कारीगर को पता होता है कि उसे कहाँ कारीगरी दिखानी है उसी प्रकार हमें यह समझना होगा कि उन्हें हमारे सहयोग की कब, कहाँ और किस रूप में जरुरत है | कब उन्हें भावनाओं के स्नेहिल स्पर्श की चाह है और कब उनको मानसिक संबल की आस है |  

koi to hamen thaam lo

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पुस्तक के भाग

1

विरक्त मन

9 अगस्त 2022
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 ‘मौली..मौली क्या कर रही हो ...मैं कब से गाडी में बैठा तुम्हारे आने का इन्तजार कर रहा हूँ और एक तुम हो कि तुम्हारे काम कभी ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेते ..जल्दी करो ’…राजेश ने जोर से बोलते हुए कार

2

विरक्त मन

9 अगस्त 2022
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 ‘मौली..मौली क्या कर रही हो ...मैं कब से गाडी में बैठा तुम्हारे आने का इन्तजार कर रहा हूँ और एक तुम हो कि तुम्हारे काम कभी ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेते ..जल्दी करो ’…राजेश ने जोर से बोलते हुए कार

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बहकते कदम

9 अगस्त 2022
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 ‘मम्मी मैंने कितनी बार आपको बोला है न मेरी चीजों को हाथ न लगाया कीजिए ..फिर भी आप हाथ लगाने से बाज नहीं आती हैं |’ सीमा लगभग चीखते स्वर में बोल पडी |  आज शनिवार था | अभी सुबह के नौ बज रहे थे | अमू

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मुक्ति

9 अगस्त 2022
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 टन...टन....टन असेम्बली की घंटी बजी | स्टाफ रूम में बैठे हम सारे शिक्षक- शिक्षिकाएं उठ खड़े हुए क्लास टीचर्स को अपनी - अपनी क्लास को लेकर असेम्बली ग्राउंड में जाना था और सब्जेक्ट टीचर्स को हर फ्लोर क

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