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विरक्त मन

9 अगस्त 2022

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 ‘मौली..मौली क्या कर रही हो ...मैं
कब से गाडी में बैठा तुम्हारे आने का इन्तजार कर रहा हूँ और एक तुम हो कि तुम्हारे
काम कभी ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेते ..जल्दी करो ’…राजेश
ने जोर से बोलते हुए कार का हॉर्न बजाया | 

‘आ रही हूँ बाबा ,इतना शोर क्यों मचा रहे हो |एक
काम हो तब न खुद तो गाडी में जाकर बैठ जाते हो |घर बंद करने का जिम्मा मुझे दे
देते हो तो सब देखना पड़ता है ...पंखे ,बत्तियां,गैस कुछ खुला न रह जाए  | मुख्य दरवाजे की कुण्डी में ताला लगाते हुए
मौली ने भी तेज आवाज में जवाब दिया | 

‘अरे गुस्सा क्यों होती हो मैं तो इसलिए जल्दी
करने को बोल रहा था कि डॉक्टर के यहाँ पहुँचने में देर न हो जाए ,बड़ी
मुश्किल से एप्वाइंटमेंट मिला है |’राजेश ने धीरे से कहा क्योंकि वे मूड खराब करना
नहीं चाहते थे | 

आज मौली को सिटी हॉस्पिटल में डॉक्टर
मुखर्जी के पास रूटीन चेकअप के लिए नौ बजे का समय मिला था और अभी आठ बज चुके थे
|राजेश ने गाडी आगे बढाई |समय से दस मिनट पहले ही वे वहां पहुँच गए |सारे चेकअप  में उन्हें दो घंटे लग गए | इसके बाद राजेश दवा
लेने के लिए दवा काउंटर के पास लगी लाइन में लग गए |मौली धीरे-धीरे चलती हुई वहीँ
एक बेंच पर बैठने ही वाली थी कि किसी ने पीछे से आवाज लगाईं ..मौली दी |मौली ने
पीछे मुड़कर देखा एक सुदर्शन व्यक्तित्व का
युवा गले में स्टेथोस्कोप डाले तेजी से उसकी ओर बढा चला आ रहा है | 

‘क्यों दीदी पहचाना मुझे?’ पैरों पर
झुकते हुए उसने कहा |मौली ने गौर से उसे देखा फिर पहचान कर खिल उठी –‘अरे ! नितिन
तुम! इतने दिनों बाद और यहाँ कैसे ?’ 

‘मौली दीदी मैं डॉक्टर बन गया हूँ और
यहीं पर इंटर्नशिप कर रहा हूँ |’ 

‘वो तो मैं स्टेथोस्कोप देखकर ही समझ
गयी थी |इतने दिनों बाद ...मुझे लगता है तुम्हारे टेंथ के एग्जाम के बाद हम आज ही
मिल रहे हैं| पर कुछ भी हो बड़ा अच्छा लग रहा है |’ 

‘दीदी, वो मैं टेंथ के बाद दिल्ली
चला गया |वहीँ से बारहवीं की परीक्षा दी फिर ए,एफ.एम.सी. पुणे से मेडिकल की पढ़ाई
की |लगता है आपलोगों ने घर बदल लिया था |कई बार छुट्टियों में मैं जब यहाँ आया और
आपसे मिलने आपके घर गया लेकिन आपलोग वहां नहीं थे |’ नितिन ने बताया | 

‘हाँ हमलोगों ने दूसरा घर ले लिया था
|अभी सेक्टर 18 में रह रहे हैं |आओ न किसी दिन |’ 

‘अवश्य दीदी ,लेकिन अभी तो मुझे जाना
होगा |अभी वार्ड में ड्यूटी है मेरी |ये मेरा कार्ड है इसमें मेरा मोबाईल नंबर है
|कॉल करियेगा |अच्छा नमस्ते.. चलता हूँ ...कॉल करना मत भूलियेगा ...’ 

और वह तेजी से निकल गया | मौली
विचारों में गुम उसे जाते देखती रही | 

‘मौली वहां कहाँ देख रही हो ? देखो
सारी दवाइयां मिल गयीं है |इन्हें बैग में ठीक से रख लो...’ सुनते ही मौली की
तन्द्रा भंग हुई | 

‘अरे जानते हो ,अभी मुझ से मिलकर कौन
गया ...नितिन ..अरे वही नितिन...याद है जब हम सेक्टर 10में रहते थे तो हमेशा मुझसे
मिलने आया करता था |’मौली ने उत्साहित होते हुए कहा | 

‘अच्छा वो जो अपने घर से बहुत परेशान
रहता था |’ 

‘हाँ वही ,अब डॉक्टर बन गया है और
अभी यहाँ इन्टर्नशिप कर रहा है |’ 

‘चलो अच्छा है ,उस समय तो उसकी हालत
देखकर मुझे भी चिंता हो जाती थी ..’.कहते हुए राजेश ने गाडी स्टार्ट की | 

  

घर पहुंचकर मौली का ध्यान किसी काम
में नहीं लग रहा था |जरुरी काम निबटाकर हाथ में चाय का प्याला लेकर वह बालकनी में
जा बैठी |उसे सात साल पहले की बातें याद आने लगीं |नितिन के बारे में सोचने लगी |राजेश
से ब्याह कर वह इस नए शहर में आ गयी थी |राजेश जो सुबह आठ बजे ऑफिस जाते शाम को छह
बजे ही लौटते |दिन भर वह खाली ही रहती इसलिए शहर के एक बड़े स्कूल में हिंदी
शिक्षिका के पद के लिए आवेदन किया और चुन ली गयी |स्कूल की बस घर तक आती, इसलिए
आने जाने की समस्या नहीं थी |पढ़ाने में मन भी लग रहा था और समय भी अच्छा कट रहा था

तभी एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसका अनुभव
कुछ अलग था |  

कक्षा 9बी ..अंतिम पीरियड में मौली
की हिंदी क्लास थी | वह हरिवंशराय बच्चन की कविता ‘निशा निमंत्रण ’पढ़ा रही थी |वह
पंक्तियों की व्याख्या करती हुई विद्यार्थियों को समझा रही थी .... 

हो जाये न पथ में रात कहीं ,मंजिल भी
तो दूर नहीं ,यह सोच थका दिन का पंथी जल्दी-जल्दी चलता है ...दिन जल्दी जल्दी ढलता
है |......इसमें मुसाफिर में थके होने के बावजूद भी अपने लक्ष्य तक पहुँचने की
जल्दी है क्योंकि उसे डर है कि कहीं रात न हो जाए |हर प्राणी जो सुबह काम की तलाश
में निकलता है शाम तक उसमें घर पहुँचने की जल्दी होती है क्योंकि घर पर लोग उसका
इन्तजार कर रहे होते हैं |....मौली ने विद्यार्थियों को और अच्छे से समझाने के लिए
उन्हीं का उदाहरण देते हुए कहा --- जैसे तुमसब को घर जाने की जल्दी होगी और घंटी
बजने का इन्तजार कर रहे होगे |’ 

ध्यान से सुन रही पूरी क्लास एक साथ
चिल्ला पड़ी – ‘यस मिस ‘|उनके साथ एक और आवाज ने मौली का ध्यान खींचा वह थी ‘नो मिस’
| सबको शांत करने के बाद उसने पूछा यह ‘नो मिस’ किसने कहा ?’ 

पिछली बेंच पर बैठा एक लड़का उठ खड़ा
हुआ –‘यस मिस मैंने कहा | मेरा मन घर जाने का नहीं करता है |’ मौली ने देखा उसके
चेहरे पर उदासी के साथ एक उद्दंडता थी जैसे उसे किसी की परवाह न थी | 

‘क्यों तुम्हारे मम्मी-पापा यहाँ
नहीं हैं क्या ?’ 

‘हैं ,मैं उन्हीं के साथ रहता हूँ |
मम्मी डॉक्टर हैं और पापा इंजीनियर हैं |’ 

‘तब क्यों मन नहीं लगता है ?’ 

‘मेरा मन है ...नहीं लगता है बस |’ बड़ी
ढिठाई के साथ उसने जवाब दिया | 

जब तक मौली उसे उसकी इस हरकत के लिए
डांटे या कुछ पूछे घंटी बज गयी और बच्चे जाने के लिए उठ खड़े हुए |  

मौली की बस ड्यूटी थी इसलिए उसे
सेकेंड ट्रिप से जाना था |जैसे ही वह अपने घर के पास के बस स्टॉप पर स्कूल बस से
उतरी तो सामने एक लड़के को साइकिल के साथ खड़ा पाया जैसे वह उसी का इन्तजार कर रहा
हो |उन्हें उतरता देख वह उसके पास आ गया | 

मौली ने देखा अरे यह तो वही लड़का है जिसने
क्लास में नो मिस कहा था |जब तक वह कुछ कह पाती वह सामने आ गया | 

‘गुड इवनिंग मिस मैं नितिन ..पहचाना..आपकी
क्लास 9बी में हूँ | आई एम वेरी सॉरी, मिस मुझे आपसे इस तरह बात नहीं करनी चाहिए
थी |--नितिन के स्वर में सचमुच पछतावा था यह मौली ने महसूस किया | 

‘वो तो सब बाद में ,पहले यह बताओ तुम
यहाँ कैसे ?घर में बताकर आए हो न |’ 

‘यस मिस मैं यहीं आधे किलोमीटर की
दूरी पर रहता हूँ |उसने साथ चलते हुए कहा –मिस आपने मुझे माफ़ कर दिया न |’ 

लो , मेरा घर आ गया ,चलो वहीँ बैठ कर
बातें करते हैं | --मौली बैग से चाभी निकलकर ताला खोलते हुए उसे ड्राइंग रूम में बैठने
को कहकर अन्दर चली गयी और पानी के दो ग्लास लिए बाहर आई |  

‘पहले पानी पियो फिर बताओ कि क्या
परेशानी है ?क्यों तुम्हें घर में मन नहीं लगता है ?क्या तुम्हारे मम्मी पापा बहुत
स्ट्रिक्ट हैं ?’ 

‘नो मिस ,ऐसा कुछ नहीं है ,वैसे ही
मैंने कह दिया था |-उसने नीचे देखते हुए कहा | शायद वह कुछ बताना नहीं चाह रहा था
|लेकिन उसके चेहरे से बेचैनी साफ़ झलक रही थी| 

मौली को लगा कि वह समझ नहीं पा रहा
है कि उसे अपनी बात बतानी चाहिए या नहीं |इसलिए उसने प्यार से कहा --- ‘ठीक है अगर
कोई बात नहीं है तो अच्छी बात है लेकिन अगर कोई समस्या है तो बता सकते हो |क्या
पता मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ |’ 

एक पल को नितिन ने बड़े ही ध्यान से
मौली को देखा शायद वह सोच रहा था कि क्या मेरी परेशानी का हल इनके पास मिल सकेगा
|मौली ने उसके असमंजस को भांप लिया इसलिए बोली –‘तुम अपनी परेशानी मुझसे शेयर कर
सकते हो |विश्वास रखो मैं तुम्हारी टीचर हूँ |मेरा तो काम है अपने विद्यार्थियों
की उलझनों को सुलझाना |मैं किसी से नहीं कहूँगी भरोसा रखो |’ 

प्रॉमिस न मिस, किसी को नहीं बताएंगी
|’ 

‘हाँ प्रॉमिस ,चलो अब बताओ क्या बात
है ?मौली ने उसका विश्वास जीतने के लिए कहा | 

‘मिस, मेरा घर में मन इसलिए नहीं
लगता है कि मेरे मम्मी पापा हमेशा लड़ते रहते हैं |’ 

‘नहीं, ये तो कोई बात नहीं हुई मन न
लगने की ,छोटी मोटी लड़ाई तो हर घर में होती है |’ 

‘नहीं मिस, ये वैसी वाली लड़ाई नहीं
है |वे छोटी-छोटी बात पर लड़ते हैं |एक दूसरे के लिए गालियाँ निकालते हैं |इन्हें
यह भी ध्यान नहीं रहता है कि मैं भी वहीँ हूँ और सारी बातें सुन रहा हूँ |मुझ पर
क्या असर होगा ?’—कहते-कहते नितिन आवेश में आ गया | 

मौली ने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे
शांत करते हुए कहा –‘जब इस तरह की बात होती है तो तुम अपना कमरा बंद कर लिया करो
|न सुनोगे न परेशान होगे |’ 

‘वो भी कर के देख लिया, मिस कोई
फ़ायदा नहीं |मिस, मैं अपने दादा दादी के पास रहता था| क्लास 7तक वहीँ पढ़ा |वहाँ
आगे की पढ़ाई के लिए कोई अच्छा स्कूल नहीं था इसलिए पापा यहाँ ले आये |यहाँ आकर यही
सब देखना पड़ रहा है |शुरू में मुझे कुछ समझ नहीं आता था क्या हो रहा है |जैसे
दोनों ड्यूटी से घर लौटे नहीं कि महाभारत शुरू |एक ग्लास पानी और एक कप चाय के लिए
भी तू-तू मैं-मैं चालू |’ 

नितिन बोलता जा रहा था जैसे आज वह
अपने भरे मन को खाली कर देना चाह रहा हो और मौली ध्यान से उसकी बातें सुन कर जैसे उसे
मन को खाली करने का मौका दे रही थी | 

‘आप नहीं जानती है मिस कई बार मैंने इनकी लड़ाई
टेपरिकार्डर में टेप भी की है कि उनको सुना कर कहा कि देखिए आप किस प्रकार लड़ते
हैं लेकिन उस का भी कोई असर नहीं हुआ |पापा से उत्तर मिला तुम्हारी मम्मी ही तो
शुरू करती है और मम्मी से कि सारी गलती तुम्हारे पापा की है |धीरे-धीरे इस डेढ़ साल
में इन सबका आदी हो गया हूँ |अब मैं अपना ज्यादा दिमाग नहीं लगाता |’ 

‘वेरी गुड ! तुम तो बड़े समझदार निकले
|यही तो मैं बोलना चाह रही थी |तब अब समस्या क्या है? अब मन क्यों नहीं लगता ? 

‘बताता हूँ मिस, बात यहीं तक रहती तो
मुझे फर्क नहीं पड़ता |एक दिन इनके घमासान में मुझे इनके लड़ने की वजह का पता चला
|शायद मम्मी मुझे जन्म देना नहीं चाहती थी क्योंकि उन्हें आगे पढ़ना था, घरवालों
के दबाब में आकर मुझे जन्म दिया |बाद में मुझे दादाजी के पास रखा गया ताकि वे आगे
पढ़ सकें पर वह एम.डी.नहीं कर सकीं | इसके लिए वह पापा को जिम्मेदार ठहराती हैं और
इसी बात को लेकर हमेशा सुनाती हैं |तब से मुझे ऐसा लगता है कि मैं ही इन सबका दोषी
हूँ |--कहते-कहते नितिन की आँखें बरस पड़ीं | 

तेरह-चौदह साल का यह लड़का कितना कुछ
सह रहा है यह देख मौली की आँखें भी नम हो गईं| उसने उठकर उसके सर को सहलाते हुए
चुप करने की कोशिश की | 

.....जानती हैं मिस ,उस दिन मैं
गुस्से में पास के रेलवे ट्रैक तक मरने चला गया था कि जब इन्हें मेरी जरुरत ही
नहीं तो मेरे रहने का क्या फायदा |बहुत देर तक कोई ट्रेन नहीं आयी तो मैं लौट गया....
तब तक मेरा गुस्सा भी शांत हो चुका था .... लगा कि मैं गलत करने जा रहा था |उनके
झमेले में मैं अपना जीवन क्यों बर्बाद करूँ ?तब से जब उनके बीच झगडा शुरू होता है
मैं साईकिल लेकर सड़क पर दूर निकल जाता हूँ |किसी पेड़ के नीचे या किसी पार्क में
शान्ति से बैठकर प्रकृति का आनंद लेता हूँ और घंटे भर में लौट आता हूँ |घर के
प्रति क्या जीवन के प्रति भी मेरी अरुचि दिनोंदिन बढती ही जा रही है |’—अब तक
नितिन ने अपने आपको संभाल लिया था |उसने रुमाल से अपनी आखें पोंछीं | 

थोड़ी देर सन्नाटा छाया रहा |दोनों
में से किसी ने कुछ नहीं कहा |नितिन के मन का बोझ हल्का हो गया था उसके चेहरे का
तनाव समाप्त हो चला था | मौली नितिन के दुख से अभिभूत हो चुकी थी उबरने में थोडा
समय लगा | 

उसने चुप्पी तोड़ते हुए कहा -यू आर अ
ब्रेव बॉय...जीवन से इस तरह निराश नहीं होते |जीवन ईश्वर से हमें मिला सबसे बड़ा
उपहार है |इसे गंवाने या बर्बाद करने का हमें कोई अधिकार नहीं है |अपना जीवन बनाना
या बिगाड़ना हमारे स्वयं के हाथों में है |जैसी भी परिस्थितियाँ हमारे जीवन में
आयें हमें हमेशा उसी में से अपना रास्ता निकलना पड़ता है |’ 

अपनी बात आगे बढाते हुए मौली ने कहा –
बस तुम जो साईकिल लेकर बाहर निकलकर कहीं एकांत में बैठ जाते हो इसको बंद करो |अभी
तुम बहुत छोटे हो कुछ भी हादसा हो सकता है |’ 

‘तब मैं क्या करूँ मिस |उनके झगडे
मुझे पागल कर देंगे |’--नितिन जोर से बोल पड़ा | 

‘अपने इस समय को तुम किसी रचनात्मक
कार्य में लगाओ |तुम अपनी भावनाओं को कागज़ पर उतारना शुरू करो |उस समय जो भी
तुम्हारे दिमाग में आता है लिख डालो |इससे क्या होगा तुम्हारी भड़ास भी निकल जाएगी
और तुम्हारे लिखने की प्रैक्टिस भी हो जाएगी |हाँ ,एक बात और जब भी तुम्हें लगे कि
तुम अपने को नहीं संभाल पा रहे हो या गलत बातें दिमाग में आ रही हैं तो सीधे मेरे
यहाँ आ जाओ |इसे अपना ही घर समझो |ठीक है
न |’ 

‘सच मिस ,मैं आपके पास आ सकता हूँ ?’नितिन
ने हैरान होते हुए कहा क्योंकि कोई टीचर अपने यहाँ क्यों आने को कहेगी | 

‘हां बाबा ,हर शनिवार को स्कूल की
छुट्टी रहती है न, दिन के समय आ जाया करो |साथ बैठेंगे, तुम्हारी पढ़ाई की भी बातें
करेंगे |’ मौली ने नितिन को लगभग पुचकारते हुए कहा | 

‘श्योर मिस ! काफी देर हो चुकी है अब
मुझे जाना चाहिए |पापा के ड्यूटी से लौटने का टाइम हो रहा है |’ 

‘ओके मिस !चलता हूँ बाय |’ 

‘बाय नितिन !संभल कर जाना.... 

गेट तक पहुँच कर नितिन एकदम पलटा और
भागकर मौली के पास पहुंचकर बोला –‘क्लास 11और 12 वाले आपको दीदी कहकर बुलाते हैं
,मैं भी आपको दीदी बुला सकता हूँ ?’ 

‘क्यों नहीं ? तुम तो मेरे छोटे भाई
की उम्र के हो ...मेरे भैया ...’पता नहीं क्यों नितिन पर उसे बहुत प्यार आ रहा था

इतना सुनना था कि वह जिस तेजी से आया
था उसी तेजी से.. बाय दीदी... बोलता हुआ साईकिल पर सवार हो निकल गया | 

मौली उसकी इस हरकत पर मुस्कराए बिना
न रह सकी | 

सोचते-सोचते आज भी मौली के चेहरे पर
मुस्कराहट खिल उठी |  

उसके बाद नितिन हर शनिवार को 11 बजे
तक आता डेढ़ दो घंटे रूककर चला जाता | 

मौली भी उसका इन्तजार करती और नाश्ते
में कुछ ऐसी चीजें बनाकर रखती जो इस उम्र के बच्चों को पसंद होती |नितिन भी बड़े
चाव से खाता |  

एक दिन उसने से कहा –‘दीदी आप खिचड़ी
बनाना जानती हैं ?’ 

‘हाँ आता है, पर तुम क्यों पूछ रहे
हो ?’ 

‘वैसे ही |जब मैं दादाजी के यहाँ
रहता था तो दादी हर शनिवार को खिचड़ी बनाती थी |बड़ा अच्छा लगता था |’ 

‘ऐसा कहो न तुम्हें खिचड़ी खाने का मन
है | शैतान कहीं के |’-मौली ने कहा तो नितिन मुस्करा उठा और बोला – ‘दीदी आपको
कैसे पता चल जाता है |’ 

‘यही तो अंतर है टीचर और स्टूडेंट
में |’ 

उस दिन मौली ने उसको खिचड़ी बनाकर
खिलाई |अब नितिन के चेहरे पर स्वाभाविक मुस्कान रहती |उसने बताया वह रोज की बातों
को डायरी में लिखता है |अब पापा मम्मी की बातें ज्यादा परेशान नहीं करतीं |उसका
पढ़ाई में भी मन लगने लगा था | 

तभी एक दिन वह रविवार को शाम में
अचानक आ पहुंचा ...चेहरे पर तनाव था | 

‘क्या हुआ ?....इस समय अचानक यहाँ ....सब
ठीक है न .. मौली ने घबराते हुए नितिन से पूछा | 

‘आज मम्मी पापा घर में रहते हैं तो
झगडा होना तो स्वाभाविक है |मैं पढ़ाई कर रहा था |झगड़ने की आवाज इतनी तेज थी कि मैं
उन्हें बोलने के लिए उठा कि जरा धीमी आवाज में झगड़ा कीजिये तो जो बातें सुनाई पडीं
उससे यही लगा कि बहुत जल्द ही तलाक लेने वाले हैं |अब क्या होगा दीदी ?मुझ पर ही
तो सबसे ज्यादा असर पड़ेगा |इस साल मुझे बोर्ड देना है |अगर मैं इन सबसे परेशान रहा
तो बोर्ड में अच्छे नम्बर नहीं आएँगे और अच्छे कॉलेज में एडमिशन नहीं मिलेगा |मेरा
तो भविष्य बर्बाद हो जाएगा |’ कहते-कहते वह रुआंसा हो गया | 

मौली को भी एक झटका सा लगा लेकिन
उसने खुद को संयत कर पहले नितिन को बैठा कर पानी दिया फिर समझाने की कोशिश की | 

‘देखो जब दो लोगों के विचार नहीं
मिलते हैं तो उनका अलग हो जाना ही बेहतर होता है |तलाक लेना तुम्हारे मम्मी पापा
का निर्णय है | तुम्हारे लिए तो सच में बुरा हुआ |तुम इसमें कुछ नहीं कर सकते |बस एक
बात है तलाक मिलने में साल- दो साल लग जाते हैं |तुम्हारे पास समय है खूब मन लगाकर
पढो |अच्छे अंक लाओ जिससे दिल्ली में किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले सको |फिर
वहीँ अपनी मेडिकल की तैयारी करो |’ 

मौली की बातों का उस पर असर हुआ
|उसके माथे से चिंता की लकीरें हलकी पड़ीं | कुछ देर रूककर वह चला गया | 

नितिन की मेहनत रंग लाई |बोर्ड में
उसे 95%मार्क्स आए और वह दिल्ली में एडमिशन लेने के कार्य में बिज़ी हो गया इसलिए
मिलने न आ सका | 

उन्ही छुट्टियों के बाद मौली को
शारीरिक अस्वस्थता के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा और घर भी बदलना पड़ गया| इस तरह न तो नितिन
से जाने से पहले मुलाकात हो पाई और न ही उसकी कोई जानकारी मिल पाई |लेकिन उसके
बारे में सोचती रहती कि नितिन को कितनी मानसिक तकलीफों से गुजरना पड़ा था
|माता-पिता के रिश्तों की कडवाहट किस तरह उसके किशोर मन को उद्दंड बना चुकी थी
|अभिभावक क्यों नहीं समझ पाते हैं कि उनके आपसी अहम् का टकराव उनके बच्चे को
मानसिक रूप से असंतुलित कर सकता है और वह गलत कदम भी उठा सकता है |खैर ,उसके
प्रयासों से वह संभल जरुर गया था |जीने का उत्साह भी जाग गया था | 

और आज उसी नितिन से मिलकर मौली को एक
ख़ुशी और संतुष्टि का अनुभव हो रहा था | 

हाँ उसके मन में जिज्ञासा थी कि उसके
मम्मी पापा का क्या हाल था |उसने सोचा जब वह उससे मिलेगी तब पूछ लेगी | 

एक दिन शनिवार को मौली ने फोन कर
रविवार के लंच की दावत दी |बड़ी ख़ुशी से वह मान गया | 

रविवार को लंच के बाद सब ड्राइंग रूम
में बैठे खीर का मजा ले रहे थे ,खीर उसे बहुत पसंद थी इसलिए मौली ने खासकर बनाया
था | 

खाते हुए उसने मुझसे पूछ ही लिया –
दीदी आपको अभी तक याद है कि मुझे खीर पसंद थी | 

‘क्यों तुम्हे क्या लगा मैं भूल
जाऊंगी |तुम्हारी सारी बातें याद हैं |अच्छा एक बात बताओ घर में सबलोग ठीक है न ....हाँ
तुम्हारे मम्मी पापा कैसे हैं ? ‘मौली ने मन की बात पूछ ही ली | 

‘हाँ सब ठीक है दीदी’ चलिए न....
मुझे आपने अपना पूरा घर नहीं दिखाया अभी तक ...दिखाइए न कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ
जैसे उसे घर देखने की जल्दी हो |  

हाँ क्यों नहीं चलो दिखाती हूँ –कहते
हुए वह भी उठ खड़ी हुई |मौली समझ चुकी थी कि वह अब इस विषय पर बात करना नहीं चाहता
था | 

जाते समय बह बोलकर गया कि उसका
इंटर्नशिप का एक महीना ही बचा है और यह काफी व्यस्त रहेगा क्योंकि कुछ असाइनमेंट
सबमिट करने होंगे इसलिए बीच में तो नहीं आ सकेगा लेकिन जाने के पहले जरुर मिलता
जाएगा | 

महीने भर उसके आने का मैं इन्तजार कर
रही थी | वह तो नहीं आया पर उसका एक पत्र आया – 

आदरणीया दीदी , 

अचानक मुझे यहाँ से जाना पड़ा और आपसे
नहीं मिल सका | उस दिन आपके प्रश्न को मैं टाल गया था क्योंकि मैं फिर से मन में
कडवाहट नहीं लाना चाहता था |ज्यादा नहीं सिर्फ आपसे यही शेयर कर सकता हूँ कि सब
अपनी जिन्दगी अपने हिसाब से जी रहे हैं मै उनकी जिंदगी में कभी कभी आने वाले
मेहमान की तरह हूँ |हाँ, पढ़ाई का सारा खर्च वही उठा रहे हैं |खैर छोडिये मैं यह
बताना चाहता था कि आपका उपकार मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ |आपने मेरे कठिन समय में
एक हमदर्द और बड़ी दीदी बनकर जो स्नेह दिया और जो मार्ग सुझाया उसने मुझे और मेरे
जीवन को बिखरने से बचा लिया | पोस्टिंग होते ही खबर करूंगा |जब कभी अवसर मिलेगा
जरूर मिलने आऊंगा | 

 आपका छोटा भाई  

 नितिन  

मौली पत्र पढ़ते हुए सोच रही थी कि नितिन
के जिन्दगी से विरक्त मन में जीवन के प्रति आसक्ति का अंकुर अब पल्लवित हो चुका है
|यह एक अच्छा संकेत है  | 

  

    

   

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रचनाएँ
कोई तो हमें थाम लो
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बालपन से गुजरते हुए यौवन की दहलीज पर कदम रखने से पहले हर बच्चे को एक बड़ी ही कठिन अवस्था से होकर गुजरना पड़ता है और यही अवस्था उसके भविष्य निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है | अगर उन गलियों की भूल- भुलैया से बचकर वह निकल जाता है तो जिन्दगी बन गयी नहीं तो जीवन भर वे उलझनें उसका पीछा नहीं छोड़तीं | यह है किशोरावस्था .....बचपन और जवानी के बीच का संधिकाल....हार्मोनल चेंजेज से गुजरता हुआ बड़ा ही जोखिम भरा समय | बड़ी ही विचित्र कहानी होती है - न तो मन से पूर्ण विकसित और न ही तन से पूर्ण विकसित और मजे की बात यह है कि समझते वे अपने को किसी से कम नहीं | झल्लाहट तब होती है जब उनकी गिनती न तो बड़ों में होती है और न ही छोटों में |छोटों के बीच हों तो बड़े होने का ताना और बड़ों के बीच बैठ जाएं तो छोटे होने का उलाहना | ऐसे में वे जियें तो जिएँ कैसे ? लगभग सारा किशोर वर्ग यानी ‘टीनएजर्स’ अनेक अलग –अलग कारणों से शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का शिकार है | मन से पूरी तरह समझदार न होने के कारण प्रतिकूल परिस्थितियाँ आने पर मन में एक डर समा जाता है चाहे वह पिता की डांट का डर हो या शिक्षक की डांट का, किसी अनजान व्यक्ति की धमकी का या किसी रिश्तेदार के द्वारा अनैतिक दबाब का डर और इस भय का शासन तब तक मन पर चलता रहता है जब तक कोई सही दिशा निर्देश देने वाला नहीं मिल जाता है| मार्गदर्शक का भी कार्य भी तब तक उतना सरल नहीं होता है जब तक उन्हें वह अपने विश्वास में नहीं लेता| अपने शिक्षण कार्य के दौरान मुझे ऐसी अनेक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा क्योंकि मेरा सम्बन्ध इसी उम्र के बच्चों के साथ था | इस उम्र के बच्चों को समझने और उनका विश्वास जीतने के लिए बड़े धैर्य और संयम की जरुरत होती है ऐसा मेरा अनुभव है | ऐसी स्थिति में चाहे उसके माता- पिता ,शिक्षक या रिश्तेदार हों सभी को अपना व्यवहार संतुलित रखने की आवश्यकता होती है| इस पुस्तक को लिखने का मेरा उद्देश्य कुछ इन्हीं से सम्बंधित परिस्थितियों, समस्याओं और समाधान की ओर सबका ध्यान आकर्षित करना है | मेरी सभी कहानियां किशोर वय के मनोभाव ,उलझनों और भटकाव में घिरती हैं लेकिन उनसे उबारने के लिए उनका हाथ थामने के लिए उनके अभिभावक या शिक्षक या कोई रिश्तेदार आगे आते हैं जिनके सहारे उन्हें भटकाव से मुक्ति मिलती है| चाहे वह ‘बहकते कदम’ की मिस श्यामली हो या ‘विरक्त मन’ की मौली मैम हो अथवा ‘इम्तिहान’ का जतिन | जहां ऐसे मार्ग दिखानेवाले नहीं होते वहीँ ये रास्ता भटक जाते हैं या आत्महत्या करने को अग्रसर हो जाते हैं | इसलिए जरुरत है कि हम इस उम्र की पेचीदगियों को समझे और उसी के अनुरूप व्यवहार करें | वर्तमान में इस उम्र के सामने इंटरनेट ,सोशल मीडिया आदि के कारण चुनौतियां और भी ज्यादा बढ़ गयी हैं | इन्हें हमारे छाँव और मार्गदर्शन की जरुरत है | इस दिशा में भी बहुत कुछ किया जा रहा है लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है | बच्चे के भविष्य के निर्माण की नींव तो इसी समय पड़ जाती है और नींव ही खोखली रहेगी तो भविष्य की इमारत बुलंद कैसे होगी ? इस नींव को हमारे सहारे की जरुरत है और जिस प्रकार एक भवन निर्माण करने वाले कारीगर को पता होता है कि उसे कहाँ कारीगरी दिखानी है उसी प्रकार हमें यह समझना होगा कि उन्हें हमारे सहयोग की कब, कहाँ और किस रूप में जरुरत है | कब उन्हें भावनाओं के स्नेहिल स्पर्श की चाह है और कब उनको मानसिक संबल की आस है |
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 ‘मम्मी मैंने कितनी बार आपको बोला है न मेरी चीजों को हाथ न लगाया कीजिए ..फिर भी आप हाथ लगाने से बाज नहीं आती हैं |’ सीमा लगभग चीखते स्वर में बोल पडी |  आज शनिवार था | अभी सुबह के नौ बज रहे थे | अमू

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मुक्ति

9 अगस्त 2022
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 टन...टन....टन असेम्बली की घंटी बजी | स्टाफ रूम में बैठे हम सारे शिक्षक- शिक्षिकाएं उठ खड़े हुए क्लास टीचर्स को अपनी - अपनी क्लास को लेकर असेम्बली ग्राउंड में जाना था और सब्जेक्ट टीचर्स को हर फ्लोर क

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