टन...टन....टन असेम्बली की घंटी बजी | स्टाफ
रूम में बैठे हम सारे शिक्षक- शिक्षिकाएं उठ खड़े हुए क्लास टीचर्स को अपनी - अपनी
क्लास को लेकर असेम्बली ग्राउंड में जाना था और सब्जेक्ट टीचर्स को हर फ्लोर का
अनुशासन देखना था | नए सेशन का पहला
दिन | सभी बच्चे नयी यूनिफार्म में दमक रहे
थे | नयी क्लास में जाने का उत्साह छलका पड़
रहा था |
असेम्बली ख़त्म होने के बाद मैं अपनी कक्षा 6 सी को लाइन में लेकर
क्लासरूम में आयी | सभी बच्चे बैठ
कर विषय की किताब और कॉपी निकालने लगे | मैंने
हाजिरी लेनी शुरू की |--
अमिताभ .......यस मिस
अनोखी .......यस मिस
वैभव ................प्रेजेंट मिस |...इस तरह नाम पुकारते - पुकारते मैं रोल नंबर 40 ,सौविक
बख्शी तक पहुंची |
दो तीन बार नाम
पुकारने पर भी कोई उत्तर नहीं मिला तो मैंने पूछा – क्या सौविक एबसेंट है ?
पूरी क्लास एकसाथ चिल्ला पड़ी –‘नो मिस ,ही इज प्रेजेंट | वह आपके सामने ही फर्स्ट बेंच पर बैठा
है |’
मैंने सामने देखा एक सुन्दर लड़का अपने में खोया बैठा हुआ है | मैंने जोर से बुलाया- ‘सौविक ’
जैसे उसकी तन्द्रा टूटी ‘–य..य..यस.....यस मिस |’ सारी कक्षा हंस पडी |
मैंने उससे और कुछ नहीं कहा आगे अटेंडेंस लेने लग गयी |
उस दिन ज्यादा बातें न हो सकीं क्योंकि सारा समय बच्चों को डायरी
देने और रूटीन लिखवाने में लग गया | शेष
समय उनका परिचय लेने में |
इस तरह लगभग एक सप्ताह बीत चला था | पढ़ाई
ने भी गति पकड़ ली थी | लेकिन सौविक के हाव-भाव में कोई परिवर्तन नहीं देखने
को मिला |
एक दिन मैंने उससे पूछा – ‘पिछली कक्षा में तुम्हारे कितने मार्क्स
थे ?’
‘मिस 85%’
‘अरे वाह !तुम्हारे तो बड़े अच्छे मार्क्स आये थे | इस बार कितना लाने का इरादा है ?’
उसने कोई जवाब नहीं दिया | एक
बच्चे ने उठकर कहा – ‘मिस , ये
पढने में बहुत तेज है पर पिछले सेमेस्टर से इसे न जाने क्या हो गया है ऐसे ही खोया
रहता है खेलता भी नहीं |’
मैंने देखा सौविक उस लड़के की तरफ वैसी ही सूनी निगाहों से देख रहा था
जैसे उनकी बातों से उसे कोई मतलब नहीं |
एक क्लास टीचर होने के नाते हर बच्चे की जानकारी रखना मेरा फर्ज था | इसलिए मैंने एक दिन उसे स्टाफ रूम
बुलाकर बड़े प्यार से उसकी पारिवारिक स्थिति के बारे में जानना चाहा |
‘सौविक ,बेटे घर में कौन
कौन हैं ?’
‘मम्मी ,पापा ,भैया और मैं |’
‘अच्छा ,तुम दो भाई हो ,बहन भी है?’
‘नहीं-नहीं , तीन
भाई और एक बहन |’
‘अच्छा वे कहाँ रहते हैं और कहाँ पढ़ते हैं ?’
‘वे बर्दवान में रहते हैं |’
‘क्यों’-- पूछने पर उसने कोई जवाब नहीं दिया |चुप खडा रहा |
पढ़ाई में भी उसकी प्रोग्रेस कुछ अच्छी नहीं रह रही थी | मैंने अपने वाईस प्रिंसिपल से इस
सिलसिले में बात की | उन्होंने उसके
माता पिता से बात करने की सलाह दी ,सो
मैंने उसकी डायरी में उसके माता पिता को लिख कर भेजा कि सौविक की पढ़ाई को लेकर मैं
उनसे मिलना चाहती हूँ |
बड़े ही जागरूक अभिभावक थे दूसरे दिन ही दोनों मिलने चले आये | मैं कुछ बोलती कि उन्होंने ही बोलना
शुरू कर दिया –‘ वी आर वेरी सॉरी मैम | हम भी बड़े परेशान है | पढने में इतना अच्छा था पर पता नहीं
पिछली गर्मी की छुट्टियों के बाद से ऐसा ही हो गया है | पढने में मन ही नहीं लगता है | हर समय खोया रहता है | ज्यादा पूछने पर चिडचिडा व्यवहार करता
है |’
’घर में आपलोगों का व्यवहार उसके साथ कैसा रहता है ? क्या आपलोग काफी स्ट्रिक्ट है ?’
‘नहीं हमारा व्यवहार सामान्य ही रहता है | दोनों बच्चों के साथ एक जैसा ही | उसके व्यवहार बदलते देख हमने यही सोचा
कि अभी बारह साल का है | इस समय से लड़कों
में कुछ हार्मोनल चेंजेस होने शुरू होते हैं शायद ये उसी का परिणाम है |’
बच्चों के नाम पर याद आया कि उसने तीन भाई बहनों का जिक्र किया था सो
मैंने पूछ ही लिया –‘आपके और तीन बच्चे आपके साथ क्यों नहीं रहते ?’
‘हमारे और तीन बच्चे? ये
किसने कहा आपसे ?
हमारे तो दो ही
बच्चे है |’
‘स्वयं सौविक ने बताया’ – मैंने कहा |
मिस्टर और मिसेज बख्सी ने एक दूसरे की आँखों में देखा और लगा कि
उन्होंने आँखों -आँखों में ही कुछ बातें कीं |
मिसेज बख्शी ने बोलना शुरू किया –‘ मैम, हमलोग सौविक के सामने ये सब बात नहीं
करते हैं | लेकिन आपको बता रहे हैं कि सौविक हमारा
बेटा नहीं है | वह मेरी बहन का बेटा है जो इसको जन्म
देते ही चल बसी |
उस समय इसके
पिता भी शोक में डूबे रहते थे | इस
नवजात शिशु की देखभाल करने वाला कोई भी न था सो मैं इसे अपने साथ ले आयी | मेरा भी एक बेटा दो साल का था दोनों
बच्चों को अपने सीने से लगाकर पाला |
उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली | उससे
उनके दो बेटे और एक बेटी है | अब
जब सौविक बड़ा हो रहा है तो इसके पिता ने कहा कि छुट्टियों में इसे हमारे पास भेज
दिया कीजिये | सो इधर कई सालों से छुट्टियों में वहां
जा रहा है |”
‘क्या उसे पता है कि वो उसके पिता का घर है ?’—मैंने पूछा |
‘पहले छोटा था तो उतना अंतर नहीं कर पाता था लेकिन अब कुछ –कुछ समझ
में आने लगा है |
एक दिन मुझसे
पूछने लगा –‘ मैं अपने बाबा के साथ क्यों नहीं रहता जबकि मेरे भाई –बहन उनके साथ
रहते हैं | ‘
‘हमने समझाने की बहुत कोशिश की कि हमलोग भी तो तुम्हारे बाबा-माँ हैं
|वह छोटे से हमें ही माँ बाबा बोलता है
और वैसा ही व्यवहार हमारा आपस में है जैसा सगी औलाद का अपने माता पिता के के साथ
होता है | अब कुछ बोलता नहीं सिर्फ गुमसुम रहता
है |’
सच में मेरे लिए यह एक नया अनुभव होने के साथ एक चुनौती भी थी | उस समय सौविक के पेरेंट्स को यह बोलकर
विदा किया कि देखती हूँ उससे बात कर उसके मन की गाँठ खोलने की कोशिश करती हूँ |
मैं धीरे धीरे उसका विश्वास जीतने की कोशिश करने लगी | कक्षा में सबके सामने उसकी तारीफ़ करती | कुछ दिनों के लिए उसे मोनीटर बना दिया | कक्षा में पीछे नोटिस बोर्ड सजाने का
काम पांच बच्चों को दिया तो उसमें उसे भी
शामिल किया |
धीरे धीरे उसके चेहरे की उदासीनता मिटने लगी |वह थोडा मुखर होने लगा था | मुझसे अपने कुछ सवाल पूछने से नहीं
हिचकता |
एक दिन इंग्लिश टीचर मिसेज माथुर मेरे पास आई और कहने लगीं कि कल
उन्होंने मेरी कक्षा में माय फैमिली पर एसे लिखने दिया था ,देखिये सौविक ने क्या लिखा है –
पूरे लेख का सार यही था कि मेरी दो फैमिली है एक यहाँ रहती है और
दूसरी बर्दवान में |यहाँ जो मेरे
बाबा, माँ हैं वो मुझे खूब प्यार करते है |मुझे मेरे पसंद की सब चीजें लाकर देते
हैं माँ मेरा खूब ख़याल रखती है |अच्छा
खाना बनाकर खिलाती है और पढने में मदद करती है | भैया
मुझे साईकिल की सैर कराता है | मेरी
दूसरी फैमिली बर्दवान में है हर गर्मी की छुट्टियों में मैं वहीँ जाता हूँ | वहां मुझे बहुत अच्छा लगता है | मेरे दो भाई और बहन सभी मुझे बहुत
प्यार करते है |
इस बार मेरी
छोटी बहन ने कह दिया –दादा आप हमलोग के
साथ क्यों नहीं रहते ? आपके रहने से
कितना अच्छा लगता है | तब से मैं समझ नहीं
पा रहा हूँ कि मैं कहाँ रहूँ | मन
में एक घुटन सी होती है | यहाँ
भी माँ-बाबा है पर फैमिली तो अपने माता पिता से ही होती है न |
सारा पढने के बाद मुझे सौविक की मनोदशा का अंदाजा होने लगा था |
मैंने अपने वाइस प्रिंसिपल की सलाह से एक दिन सौविक और उसके माता-पिता
को साथ बुलाकर बात करने की कोशिश की |
वाइस प्रिंसिपल ---सौविक अपने मम्मी पापा को जो तुम्हारे मन में है
वो बताओ |
सौविक – मैं अपने घर बर्दवान जाना चाहता हूँ |
क्यों बेटा , हमारा
घर तुम्हारा नहीं है क्या ?तुम
तो शुरू से यहीं रहे हो –उसकी माँ की आँखों में आंसू थे |
हाँ माँ ,लेकिन वहां मेरे
पापा हैं , छोटे भाई बहन हैं |
यहाँ भी तो बाबा हैं , भैया
है | इतने अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हो |
‘पापा ने कहा है कि मेरा एडमिशन करा देंगे | मेरी पढ़ाई का नुकसान नहीं होगा |’
‘बेटा हर छुट्टियों में चले जाना लेकिन यहीं रहो |
‘नहीं माँ , आपके
पास छुट्टियों में आ जाया करूँगा | मेरा
यहाँ किसी काम में मन नहीं लगता है| हमेशा वहीँ की याद आती है , सो प्लीज मुझे वहां जाने दीजिए|
मैंने भी समझाने की कोशिश की कि पर वह अड़ा रहा | उसके मन में अपने पिता के साथ रहने की
इच्छा थी |
अंत में यही निर्णय लिया गया कि इस सेमेस्टर के बाद तुम वहां एडमिशन
ले लेना | इतना सुनना था कि कई परतों के बीच दबी
उसकी ख़ुशी , उसकी हंसी अचानक एक साथ उस के चेहरे पर
फूट पडी |जैसे मन की कोई गाँठ खुल गयी हो और वह
अपने को मुक्त महसूस कर रहा हो |
यहाँ उसके माता-पिता (मौसा-मौसी) अत्यंत दुखी थे | उन्होंने उसे अपनी औलाद की तरह जो पाला
था|
पर सौविक के मानसिक विकास और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए यह बड़ा जरुरी
था | जिस रास्ते पर वह जा रहा था आज न कल यह
निर्णय तो उन्हें लेना ही पड़ता |
सेमेस्टर के एग्जाम के बाद एक दिन सौविक अपने माँ बाबा ( मौसा और
मौसी ) के साथ मिलने आया |
उसने बताया कि उसका एडमिशन एक अच्छे स्कूल में हो गया है | कल उसे जाना है इसलिए आशीर्वाद लेने
आया है |
एक अच्छा विद्यार्थी खोने का दुःख तो मुझे था लेकिन इससे बड़ी ख़ुशी इस
बात की थी कि वह अब सामान्य बालक की तरह व्यवहार कर रहा था | मैंने उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना की
और यहाँ आने पर मिलने को कहा |
उसने कहा – अवश्य मिस | अच्छा
मिस मैं अपने दोस्तों से मिलकर आता हूँ | ‘
जब वह अपने अन्य दोस्तों से मिलने गया तो उसके पेरेंट्स ने कहा – ‘हम
आप के और इस स्कूल के शुक्रगुजार हैं कि इतने बड़े निर्णय लेने में सहायता की नहीं
तो हम खुद बहुत कशमकश में थे कि क्या करें | उसके
मोह में हम उसके मन को नहीं समझ पा रहे थे | उसको
खुश देखकर बड़ा अच्छा लग रहा है | इस
बार रिजल्ट भी काफी अच्छा हुआ है | ‘
वह दोस्तों से मिलकर आ चुका था |
‘माँ ,बाबा चलो अभी जाने की तैयारी भी तो करनी है |’
‘अच्छा, प्रणाम मिस |’
वह उत्साह में उनको खींचता हुआ ले जाने लगा |
मैंने मुस्कुरा कर हाथ हिलाया |
संतोष इस बात का था एक बच्चा भटकाव से बाहर आ चुका था |
कई बार हम अपनी परेशानियों में उलझे
रहने के कारण या उसके प्रति मोह में अंधे होने के कारण इन बड़े होते बच्चों के मन को समझने की कोशिश ही
नहीं करते | परिणामतः इनका मासूम मन गलत दिशा की
चकाचौंध की और खिंचा चला जाता है और फिर निराशा ही हाथ लगती है |
टन...टन...टन..अगले पीरियड की घोषणा हो गयी और मैं एक नए आत्मविश्वास
के साथ अगली कक्षा के लिए निकल पडी |
**************************************