भारत का ह्रदय गाँव में बसता है, वर्तमान में हमारे देश की कुल जनसँख्या का ७२.२ प्रतिशत लगभग ६,३८,००० गावों में निवास करता है पर दुर्भाग्य तो देखो प्रतिदिन औसतन ५ से ६ हज़ार ग्रामवासी मजदूरी करने हेतु निकटवर्ती शहरों अथवा दूर देशो की ओर पलायन करने को मजबूर है, अतएव हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहियें कि कैसे हम इन ग्राम वासियों के जीवन स्तर को बेहतर बना उन्हें उनके पैतृक गावों में रोक सकते है, और इसके लिए हमें नितांत आवश्यकता है “खादी क्रांति” की...
हमें प्रत्येक ग्राम वासी की आमदनी बढाने के लिए हर गाँव में एक समानांतर आय के श्रोत की संरचना करनी होगी और इसके लिए हमें भारत वर्ष में जन्म देना होगा “खादी क्रांति” को...
यदि हम एक ओर हर गाँव में सरकार की ओर से बिना किसी ब्याज के सूक्ष्म ऋण की उपलब्धता सुनिश्चित कराएं और उस ऋण से गाँव – गाँव में चरखे लगवाकर स्थानीय ग्राम वासिओं से खेती के साथ साथ खादी का निर्माण कराएं...इस पूरे निर्माण कार्य को मनरेगा – नरेगा इत्यादि सरकारी योजनाओं से संबद्द कर दे एवं साथ ही साथ उनके द्वारा बनाई गयी खादी को उचित दामों पर वस्त्र निर्माण कारखानों तक पहुंचाने के प्रबंध सुनिश्चित करवाएं...एवं दूसरी ओर सरकारी स्कूलों में बच्चो की वर्दी खादी की अनिवार्य कर उचित मूल्य पर इन कारखानों से इसकी उपलब्धता सुनिश्चित कराएं...तो उसके बहुत बेहतर दूरगामी परिणाम देश की आर्थिक व्यवस्था को देखने को मिलेंगे... पहला फायदा ग्राम वासियों का पलायन रुकेगा...दूसरा फायदा खेती जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है उसमे गिरावट नहीं आएगी...तीसरा फायदा सभी मेहनतकश ग्रामवासियों की मासिक कमाई में वृधि...चौथा फायदा देश के ६३८००० गाँव की स्थिति में सुधार...साथ ही साथ देश की प्रति व्यक्ति आय में वृधि और भी न जाने कितने अनगिनत फायदे...