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कुछ जिस्मानी तकल्लुफ़ से....

23 सितम्बर 2019

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कुछ जिस्मानी तकल्लुफ़ से....

कुछ जिस्मानी तकल्लुफ़ से, निकल हम आयें हैं,
मगर, कमबख़्त, दिलों की भगदड़ में, हम कहाँ पराएँ हैं,
रोज़ समझाता हूँ, फ़रिश्ते, चला अपनी छड़ी,
मालूम नहीं, कैसे जुड़ जाती है, फिर एक नयी कड़ी,

निकल जाता हूँ खोजने, अपने आप को, हर पहर,
वहाँ तू , फिर मिल जाती है, एक नए शहर,
हाथों के संगम, एक बार, फिर बढ़ाते हैं धड़कन,
हर बार, मज़बूत कर देती है, मिलन की बंधन,

दूर बैठे, कब तक मुस्कुराते रहूँ,
कब तक, दिलों को तसल्ली दिलाते रहूँ,
मैं भी हूँ एक इंसान, मेरे भी हैं अरमान,
मत कर दूर मुझे, मत बना मुझे मेहमान,

तेरे आँखों की हँसी, आँसू क्यूँ है बरसाते,
क्यूँ मेरे मन की लकीरों को, हैं तरसाते,
रहना चाहता हूँ, समय हर, साथ तेरे,
रुक जाता हूँ, स्वप्न में ही, लेकर फेरे,

तेरी माँग को सहलाता हूँ, हाथों से अपने,
कुछ उम्मीदों को लहराता हूँ, बातों से अपने,
मगर, लौट आता हूँ, ज़िंदगी की डोर पकड़,
फिर भी, तुझे ही पाता हूँ, हर सफ़र,

दूर रहकर, हमने देख किया, मुश्किल कम नहीं,
हमारी इस महफ़िल में, सुख-दुःख सब यहीं,
कुछ जिस्मानी तकल्लुफ़ से निकल हम आयें हैं,
मगर, कमबख़्त, दिलों की भगदड़ में, हम कहाँ पराएँ हैं,...

डॉक्टर सुमंत पोद्दार

23. 9. 2019

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